Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    महात्‍मा गांधी रामगढ़ पहुंचे तो दामोदर नदी किनारे जंगल साफ कर बना था कांग्रेस का अधिवेशन स्थल

    By Uttamnath PathakEdited By:
    Updated: Fri, 19 Mar 2021 11:14 PM (IST)

    रामगढ़ में 18 से 20 मार्च 1940 में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस के 53वें अधिवेशन में उस समय देश के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने इस धरती पर शिरकत की थी। यह अधिवेशन इसलिए भी इतिहास में दर्ज हो गया कि सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग राह बनाई।

    Hero Image
    कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने जाते हुए महात्‍मा गांधी व अन्‍य : स्रोत गांधी वांगमय

    संजय कृष्ण, रांची : आजादी के इतिहास में रामगढ़ एक अहम किरदार के रूप में सामने आता है। 1857 की क्रांति के दरम्यान तो इसकी भूमिका महत्वपूर्ण थी ही, लंबे समय तक यह हजार बागों वाले शहर हजारीबाग का अंग रहा और बाद में जिला भी बना। पर, जिला बनने से पहले रामगढ़ दो कारणों से इतिहास में स्थान पा सका। एक का जिक्र ऊपर हो चुका है, दूसरा है 18 से 20 मार्च 1940 में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस के 53वें अधिवेशन का। उस समय देश के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने इस धरती पर शिरकत की थी। यह अधिवेशन इसलिए भी कांग्रेेस और देश के इतिहास में दर्ज हो गया कि एक तो तेज-आंधी पानी ने नेताओं का स्वागत किया, दूसरे सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी एक अलग राह बनाई। अधिवेशन में करीब दस हजार की भीड़ थी। सुभाष चंद्र बोस की सभा में भी भीड़ कम न थी। महात्मा गांधी ने यहां लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया तो दस हजार श्रोता उन्हें सुन रहे थे। इस अधिवेशन ने देश की दिशा तय की थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ----

    इसलिए अधिवेशन के लिए रामगढ़ का हुआ चुनाव

    रामगढ़ में अधिवेशन करने से पहले कई और स्थानों पर विचार हुआ था। सबसे पहले सोनपुर पर विचार हुआ, जहां पशु मेला प्रसिद्ध है। इसके बाद ऐतिहासिक बौद्ध तीर्थ स्थल राजगीर पर विचार किया गया। फिर पटना के पास फुलवारीशरीफ पर विचार हुआ। लेकिन हजारीबाग के उस समय कांग्रेसी नेता बाबू रामनारायण सिंह ने डा. राजेंद्र प्रसाद को बहुत जोर दिया कि छोटानागपुर हमेशा उपेक्षित रहा है। इस बार यहां की धरती पर आयोजन हो। इस तरह स्थल चयन में रामगढ़ को लोगों ने पसंद किया। कांग्रेसी नेता रामदास गुलारी ने इस स्थान को स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक उपयोगी समझा। डा. राजेंद्र प्रसाद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, 'मेरी भी धारणा थी कि उन सुंदर सुहावने जंगलों के बीच दामोदर नदी के किनारे का अधिवेशन अपने ढंग का निराला होगा।Ó यहां दामोदर नदी के किनारे जंगल काटकर अधिवेशन के लिए जमीन तैयार की गई। बांध बनाया गया था।

    ---------

    आंधी-पानी ने किया स्वागत

    अधिवेशन के पहले दिन 18 मार्च को जोर की आंधी-पानी आई। रहने के लिए जो झोपड़े बने थे, भींग गए। खुले अधिवेशन और विषय-निर्वाचिनी के लिए भी पंडाल बना था। इसके अलावा प्रदर्शनी के लिए भी झोपड़े बनाए गए थे। नदी में कुआं खोदकर पंप लगाया गया था। पानी साफ करने के लिए बड़ी-बड़ी टंकियां पक्की बनी थीं, जिनमें एक समय एक लाख लोगों के लिए दो या तीन दिनों तक के खर्च-भर पानी रह सके। एक बांध भी यहां बनाया गया था। पंडाल के पास में ही घनघोर जंगल था। अधिवेशन के लिए टिकट था। भीड़ काफी थी कि अचानक बादल बरस पड़े। चंद मिनटों में इतनी बारिश हुई कि नीची जमीन पानी में भर गई। बारिश का जोर बढ़ता ही गया। इतना पानी भर गया कि खड़ा रहना भी मुश्किल हो गया। कठिन हो गया। बारिश में ही सभापति मंच पर आए और दो चार शब्द कहकर अधिवेशन समाप्त कर दिया गया। दूसरे दिन रिमझिम पानी बरसता रहा। बाद में लोगों से आग्रह किया गया कि लोग अपने घर चले जाएं। अधिवेशन में मौलाना अबुल कलाम आजाद सभापति चुने गए। मानवेन्द्रनाथ राय भी उमीदवार थे पर उनको थोड़े ही वोट मिले। तीन दिनों तक चले अधिवेशन में देश-दुनिया की निगाहें रामगढ़ पर थीं। आखिरकार, 20 मार्च को यह संपन्न हो गया।

    -----

    यहीं से अलग हो गए थे सुभाष- गांधी के रास्ते

    इसी दौरान एक दूसरी बड़ी सभा हुई। उसे समझौता-विरोधी-सभा कहा गया। उसके मुखिया सुभाषचंद्र बोस थे। स्वामी सहजानन्द सरस्वती और धनराज शर्मा उनके साथ थे। इसी सभा में उन्होंने फारवर्ड ब्लाक का गठन किया। इस सभा के बाद ब्रिटिश सरकार ने सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद कर दिया। सहजानन्द सरस्वती को भी बाद में गिरफ्तार किया गया। तीन साल के लिए जेल में बंद कर दिए गए। यहीं से गांधी-सुभाष के रास्ते अलग हो गए थे।

    -------------

    नहीं हो सकी आकाश से पुष्पवर्षा

    मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में अधिवेशन तो हुआ, लेकिन बारिश ने आकाश से पुष्प वर्षा पर पानी फेर दिया। रांची के प्रमुख व्यवसायी धर्मचंद्र सरावगी एक कुशल पायलट भी थे। विमान से पुष्प वर्षा की जिम्मेदारी इन्हें दी गई थी। अधिवेशन में उद्घाटन के अवसर पर आकाश से पुष्पवर्षा कर अध्यक्ष अब्दुल कलाम आजाद का स्वागत करना था। ठीक समय पर धर्मचंदजी अपने फ्लाइंग क्लब का वायुयान लेकर रामगढ़ की ओर उड़े। किंतु तूफान और झमाझम बारिश के कारण अरमान अधूरे रह गए। विमान संकट में फंस गया। धर्मचंदजी ने बड़े साहस व सूझबूझ से काम लेते हुए विमान को जमशेदपुर हवाई अड्डे पर उतार लिया था।