Buddha Purnima: गौतम बुद्ध को महाने नदी ने दिखाई थी बोधगया की राह, इटखोरी से जुड़ा है कई गहरा नाता; जानें
Buddha Purnima Special Itkhori Chatra Jharkhand News इटखोरी का नामकरण भी भगवान बुद्ध के इटखोरी आगमन से ही जुड़ा हुआ है। महाने नदी के तट पर भदुली में बुद्ध विहार की स्थापना की गई है। इसके चिह्न आज भी मौजूद हैं।

इटखोरी (चतरा), [संजय शर्मा]। भगवान गौतम बुद्ध का झारखंड के चतरा जिले के इटखोरी के साथ और ऐतिहासिक महाने नदी से भी गहरा नाता रहा है। राजशाही ठाटबाट छोड़कर शांति की तलाश में भटकते हुए जब सिद्धार्थ इटखोरी पहुंचे थे तो महाने नदी ने ही सिद्धार्थ को बोधगया की राह दिखाई थी। यहां ज्ञान प्राप्त करने के बाद सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया था। मां भद्रकाली मंदिर परिसर में स्थापित शिलालेख के अनुसार घर त्यागने के बाद सिद्धार्थ शांति की तलाश में भटकते हुए इटखोरी पहुंचे थे। उन्होंने इटखोरी के महाने नदी के तट पर भदुली नामक स्थान में तपस्या भी की थी। किंवदंती है कि तपस्यारत सिद्धार्थ को वापस घर ले जाने के लिए उस वक्त उनकी मासी इटखोरी आई थी।
लेकिन तब सिद्धार्थ तपस्या में इतने लीन हो गए थे कि मासी के घर वापस लौट जाने के आग्रह के बाद भी सिद्धार्थ का ध्यान नहीं टूटा था। तब उनकी मासी के मुंह से इतखोई शब्द निकला था। इसका मतलब होता है यही खो दिया। बाद में इतखोई का ही परिवर्तित नाम इटखोरी पड़ा। किंवदंती हैं कि इटखोरी के भदुली में तपस्या करने के बाद भी जब सिद्धार्थ को शांति नहीं मिली तो वे इधर-उधर भटकने लगे। फिर अचानक सिद्धार्थ महाने नदी के किनारे-किनारे उत्तर दिशा में चल पड़े। चलते-चलते सिद्धार्थ सीधे बोधगया पहुंच गए। फिर बोधगया में महाने नदी को पार करने के बाद निरंजना नदी तट पर सिद्धार्थ पुनः तपस्या में लीन हो गए और ज्ञान की प्राप्ति कर बुद्धत्व प्राप्त किया।
बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद भी इटखोरी आए थे बुद्ध
बुद्धत्व को प्राप्त करने से पूर्व भगवान बुद्ध के इटखोरी आगमन के तो कई तथ्य मिलते हैं। इटखोरी का नामकरण भी भगवान बुद्ध के इटखोरी आगमन से ही जुड़ा हुआ है। लेकिन राहुल सांकृत्यायन की एक पुस्तक विनय पटिका ने ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध के इटखोरी आगमन को लेकर नई बहस छेड़ दी है। विनय पटिका पुस्तक में एक घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध बोधगया से सारनाथ गए थे। सारनाथ से लौटने के क्रम में बोधगया के समीप भगवान बुद्ध एक वन खंड में भटक गए थे।
उसी वन खंड में बनारस के कुछ साहूकार के लड़के एक शीतल झरने में स्नान करने तथा वन भोज करने आए थे। झरना में स्नान करने के दौरान एक साहूकार लड़के के साथ वन खंड में आई उसकी महिला मित्र सभी लड़कों के आभूषण लेकर फरार हो गई। उस महिला मित्र को वन खंड में ढूंढने के दौरान ही साहूकार के लड़कों की मुलाकात भगवान बुद्ध से हुई। पुस्तक के अनुसार भगवान बुद्ध ने वन खंड में ही साहूकार के लड़कों को उपदेश दिया था।
विनय पटिका पुस्तक में उल्लेखित वन खंड की भौगोलिक स्थिति मां भद्रकाली मंदिर परिसर को ही दर्शाती है। क्योंकि मंदिर परिसर के समीप ही तमासिन का झरना है। हालांकि राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक में वन खंड को लेकर स्थान का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन माना जाता है कि उस कालखंड में भी जंगल बोधगया से दक्षिण दिशा में ही स्थित था।
वर्तमान समय में इटखोरी के मां भद्रकाली मंदिर परिसर का जंगली क्षेत्र बोधगया से दक्षिण की दिशा में ही पड़ता है। ऐसे में राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक विनय पटिका से यह संकेत मिलता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बाद भी भगवान बुद्ध इटखोरी आए थे। वैसे इस विषय पर फिलहाल शोध करने की आवश्यकता है। शोध के बाद अगर इस बात के प्रमाण मिल गए कि बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद भी भगवान बुद्ध इटखोरी आए थे, तो बौद्ध धर्म में इटखोरी की ख्याति और बढ़ जाएगी।
महाने नदी के तट पर हुई बुद्ध विहार की स्थापना
यह शायद भगवान बुद्ध से महाने नदी के जुड़ाव का ही प्रतिफल था कि आगे चल कर इसी महाने नदी के तट पर भदुली में बुद्ध विहार की स्थापना की गई। इसके चिन्ह आज भी पवित्र महाने नदी के तट पर स्थित भदुली में मौजूद हैं। पुरातात्विक खुदाई के बाद पुरातत्व विभाग ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पाल काल के समय भदुली में बुद्ध विहार की स्थापना की गई थी। इसका निर्माण पाल वंश के शासक राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था। वर्तमान समय में भदुली में साढ़े चार फीट ऊंचा बौद्ध स्तूप मौजूद है।
काले पत्थर को तराश कर बनाए गए इस स्तूप में भगवान बुद्ध की 1004 छोटी प्रतिमाएं तथा चार बड़ी प्रतिमाएं अलग-अलग मुद्राओं में उत्कीर्ण है। स्तूप में भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा परिनिर्वाण मुद्रा में है। इसके अलावा मां भद्रकाली मंदिर परिसर के म्यूजियम में भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ मनौती स्तूप तथा बौद्ध धर्म से संबंधित कई पुरावशेष विद्यमान हैं। बौद्ध धर्मावलंबी माँ भद्रकाली की प्रतिमा को बौद्ध देवी माँ तारा की प्रतिमा के रूप में पूजते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि इस पवित्र भूमि से भगवान बुद्ध का गहरा जुड़ाव है।
बनेगा दुनिया का सबसे ऊंचा प्रार्थना चक्र
झारखंड सरकार भी अब महाने नदी को महत्व देने लगी है। यही वजह है कि सरकार ने महाने नदी के तट पर दुनिया का सबसे ऊंचा प्रार्थना चक्र बनाने का निर्णय लिया है। भद्रकाली मंदिर परिसर में पर्यटन विकास के लिए बनाए गए छह सौ करोड़ के मास्टर प्लान में दो सौ करोड़ रुपये का सिर्फ प्रार्थना चक्र है। इसका निर्माण बौद्ध स्तूप के पश्चिम में महाने नदी के तट पर होगा। बताया गया है कि महाने नदी के तट पर बनने वाले प्रार्थना चक्र की ऊंचाई 30 मीटर होगी। वर्तमान समय में दुनिया का सबसे ऊंचा प्रार्थना चक्र चीन में स्थित है। इसकी ऊंचाई 26 मीटर है।
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