झारखंड में कुड़मी बनाम आदिवासी, समानांतर रैलियां कर दिखाएंगे ताकत; टकराव की आशंका
झारखंड में कुड़मी समुदाय का एसटी श्रेणी में शामिल होने की मांग को लेकर विवाद बढ़ रहा है। कुड़मी संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया है, जिसके विरोध में आदिवासी संगठन भी उतर आए हैं। दोनों पक्षों ने रैलियों की घोषणा की है, जिससे टकराव की आशंका है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि कुड़मी आदिवासी नहीं हैं और उनकी मांग आदिवासियों के अधिकारों पर हमला है।

झारखंड में कुड़मी बनाम आदिवासी। (फोटो जागरण)
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड की राजनीतिक और सामाजिक हलचल में कुड़मी बनाम आदिवासी का विवाद फिर नए सिरे से उभर रहा है।
राज्य में ओबीसी में शुमार कुड़मी समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग कर रहा है। इस मांग को लेकर कुड़मी संगठनों ने आंदोलन की कमान संभाली है, जो अब पूरे राज्य में फैल चुका है।
रांची से लेकर छोटे-छोटे जिलों तक रैलियों की तैयारी की जा रही है। उधर इसके खिलाफ आदिवासी संगठनों ने परस्पर मोर्चाबंदी की है। इनका तर्क है कि कुड़मी आदिवासी नहीं हैं और उनकी मांग गलत है।
इन संगठनों ने 12 अक्टूबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में रैली की घोषणा की है। इसके समानांतर अगले वर्ष 11 जनवरी को कुड़मी संगठनों ने इसी स्थान पर महारैली का एलान कर दिया है। इससे पहले ये कुड़मी बहुल क्षेत्रों में रैलियां करेंगे।
कुड़मी समन्वय समिति के नेताओं का कहना है कि यह मांग सदियों पुरानी है। वे दावा करते हैं कि कुड़मी मूल रूप से जंगल पर निर्भर समुदाय हैं, जिनकी परंपराएं और जीवनशैली आदिवासी संस्कृति से जुड़ी हुई हैं।
समिति के संयोजक ने कहा कि हम किसी का हक नहीं छीन रहे, बल्कि अपना संवैधानिक अधिकार मांग रहे हैं। यह आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन दृढ़ता से चलेगा।
आदिवासी संगठनों का कड़ा विरोध, हकमारी का आरोप
आदिवासी संगठनों ने इस मांग का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया है। इनका मानना है कि कुड़मी को एसटी सूची में शामिल करना आदिवासियों के अधिकारों पर हमला होगा। उनके अनुसार, यह हकमारी का प्रयास है, जो राज्य के संसाधनों और आरक्षण को कमजोर करेगा।
आदिवासी नेता कहते हैं कि झारखंड आदिवासियों का गढ़ है। हमने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान तक अपनी जमीन और संस्कृति की रक्षा की है। कुड़मी हमारी श्रेणी में घुसपैठ कराना चाहते हैं, जो अस्वीकार्य है। विरोध की लहर रांची, गुमला, सिमडेगा जैसे आदिवासी बहुल जिलों से फैल रही है।
संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि मांग पूरी हुई तो बड़े पैमाने पर आंदोलन होगा। यह सिर्फ आरक्षण का मुद्दा नहीं, बल्कि पहचान का सवाल है। हम अपनी धरोहर किसी को सौंपने वाले नहीं हैं। आदिवासी संगठन यह भी दावा करते हैं कि कुड़मी की जीवनशैली कृषि आधारित है, न कि जंगलों पर निर्भर, इसलिए वे एसटी मानदंडों पर खरे नहीं उतरते।
चरम पर होगी दोनों पक्षों की राजनीति
दोनों पक्षों ने समानांतर रैलियों की योजना बनाई है। कुड़मी समन्वय समिति ने नवंबर से दिसंबर के बीच हजारीबाग, चंदनकियारी, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो में बड़ी रैलियां आयोजित करने की घोषणा की है। इन रैलियों में हजारों समर्थक जुटेंगे और मांगों का एक संयुक्त घोषणापत्र जारी होगा।
11 जनवरी को रांची के मोरहाबादी मैदान में कुड़मी अधिकार महारैली होगा, जहां केंद्रीय नेताओं को आमंत्रित किया जाएगा। जवाब में आदिवासी संगठनों ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है।
वे कुड़मी संगठनों के कार्यक्रमों के समानांतर स्थानों पर इकट्ठा होंगे ताकि, विरोध कर ताकत दिखा सकें। इससे टकराव की आशंका है। यह विवाद आने वाले दिनों में झारखंड की सियासत में गर्माहट भी पैदा करेगा।
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