Kurmi Community: कुड़मियों के आदिवासी बनने की चाह से छिड़ी रार, सरना समिति का कड़ा विरोध प्रदर्शन
झारखंड बंगाल और ओडिशा में कुड़मी समुदाय की एसटी दर्जे की मांग से तनाव बढ़ गया है। सरना समिति विरोध कर रही है जबकि कुड़मी समुदाय अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। कुड़मी संगठनों ने आंदोलन की चेतावनी दी है। राजनीतिक दलों का समर्थन मिलने से मामला और गंभीर हो गया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड समेत बंगाल और ओडिशा में प्रभावशाली कुड़मी समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग ने एक बार फिर तनाव को बढ़ा दिया है। कुड़मी संगठनों द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर हाल ही में आयोजित आंदोलनात्मक कार्यक्रम के बाद आदिवासी संगठनों, विशेष रूप से सरना समिति ने इस मांग का कड़ा विरोध शुरू कर दिया है।
केंद्रीय सरना समिति का कहना है कि आदिवासी पहचान जन्मजात होती है और कुड़मियों को एसटी का दर्जा देना अनुचित होगा। इस मांग के विरोध में सरना समिति ने 14 सितंबर को रांची में बाइक रैली निकालने की घोषणा की है, जिससे दोनों समुदायों के बीच तनाव और गहरा सकता है।
कुड़मी समुदाय का दावा है कि वे ऐतिहासिक रूप से आदिवासी रहे हैं और 1931 के ब्रिटिश गजट में उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था। हालांकि, 1950 में उन्हें इस सूची से हटाकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किया गया, जिसे वे ऐतिहासिक भूल मानते हैं।
टोटेमिक कुड़मी/कुरमी विकास मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शीतल ओहदार के अनुसार हमारा समाज आदिम काल से आदिवासी है और हम अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे।
इसके जवाब में सरना समिति ने तर्क दिया है कि कुड़मी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि आदिवासियों से भिन्न है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि कुड़मियों को एसटी दर्जा देने से मूल आदिवासियों के अधिकार, नौकरियां और सरकारी सुविधाएं प्रभावित होंगी।
आंदोलन और आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी
कुड़मी संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया और संसद के समक्ष अपनी बात रखी। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो झारखंड, बंगाल और ओडिशा में आर्थिक नाकेबंदी की जाएगी।
पूर्व में कुड़मी संगठनों के आंदोलन ने रेल मार्ग और हाइवे को अवरुद्ध कर क्षेत्र में व्यापक व्यवधान उत्पन्न किया था। दूसरी ओर सरना समिति ने 14 सितंबर को रांची में बाइक रैली की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य कुड़मियों की मांग का विरोध करना और आदिवासी पहचान की रक्षा करना है।
आदिवासी संगठनों का कहना है कि यह मांग सामाजिक एकता को खतरे में डाल सकती है। कुड़मियों की मांग को राजनीतिक दलों का समर्थन मिलता रहा है, खासकर चुनावी मौसम में। पूर्व में इस मांग को केंद्र सरकार के समक्ष अनुशंसित किया था, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। यह विवाद झारखंड के दो प्रभावशाली समुदायों कुड़मी और आदिवासी के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है।
कुड़मियों का दावा है कि उनकी आबादी झारखंड में 22%, ओडिशा में 25 लाख और बंगाल में 30 लाख से अधिक है, जिससे वे एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं। दूसरी ओर, आदिवासी संगठन अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान, विशेष रूप से जनगणना कालम में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर पहले से ही केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।