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    कुड़मी समुदाय का आदिवासी दर्जे के लिए आंदोलन, 3 राज्यों में रेल और सड़क मार्ग हो सकते हैं प्रभावित

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 02:32 PM (IST)

    झारखंड बंगाल और ओडिशा में कुड़मी समुदाय ने आदिवासी दर्जे के लिए फिर से आंदोलन शुरू कर दिया है। 20 सितंबर से रेल रोको और रास्ता जाम करने का एलान किया गया है। आदिवासी समाज इस मांग का विरोध कर रहा है जिससे टकराव की आशंका है। कुड़मी नेताओं का कहना है कि दर्जा न मिलने से उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।

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    झारखंड समेत बंगाल-ओडिशा में रेल और सड़क मार्ग हो सकते हैं प्रभावित (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड, बंगाल और ओडिशा में कुड़मी समुदाय का आदिवासी का दर्जा पाने का आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ रहा है। वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आने वाले कुड़मी खुद को जनजातीय घोषित करने के लिए केंद्र पर दबाव बना रहे हैं। कुड़मी संगठनों ने इसके लिए अबतक कई आंदोलन भी किए हैं।

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    हाल ही में नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर भी इस समुदाय के लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया। कुड़मी नेताओं का कहना है कि यह दर्जा न मिलने से शिक्षा, नौकरी और आरक्षण में उनके हक का हनन हो रहा है। आंदोलन के अगुआ शीतल ओहदार के मुताबिक इस बार अभियान को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए संदेश भेजे जा रहे हैं और बड़े पैमाने पर लोगों से आंदोलन में शामिल होने को कहा गया है।

    यह न केवल सामाजिक न्याय की मांग है, बल्कि समुदाय की पहचान की लड़ाई भी है। 20 सितंबर से रेल टेका (रेल रोको) और डहर छेका (रास्ता जाम) का एलान किया गया है। यह अनिश्चितकालीन आंदोलन है। पूर्व में ऐसे आंदोलन के दौरान झारखंड के मुरी, गोमो, नीमडीह, घाघरा, हंसडीहा, छोटा गम्हरिया, डुमरी, गंजिया बराज आदि स्थानों पर रेलवे स्टेशनों पर धरना और ब्लाक किया गया था।

    इसके अलावा बंगाल में खेमासुली, कस्तौर, पुरुलिया, झारग्राम और ओडिशा के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर भी समुदाय के लोगों ने रेल पटरियों को जाम कर दिया था। कुल 100 से अधिक जगहों पर रेल को रोका गया था, जिससे सैकड़ों ट्रेनें प्रभावित हुई थी। इसके अलावा सीमावर्ती क्षेत्रों में हाइवे पर भी बुरा असर पड़ा था।

    आदिवासी समाज का विरोध, समानांतर आंदोलन की चेतावनी

    कुड़मी संगठनों की मांग का सबसे कड़ा विरोध आदिवासी संगठन कर रहे हैं। केंद्रीय सरना समिति और अन्य आदिवासी समूहों का तर्क है कि कुड़मी का इतिहास आदिवासियों से अलग है और उनकी मांग सरासर अनुचित है। 14 सितंबर को रांची में आदिवासी समाज ने बाइक रैली निकाली, जिसमें चेतावनी दी गई कि कुड़मी संगठनों की मांग आदिवासी अधिकारों पर कब्जा करने की साजिश है।

    कुड़मी कभी आदिवासी नहीं थे और यह राजनीतिक षड्यंत्र है। यदि आंदोलन हुआ तो आदिवासी संगठन समानांतर प्रदर्शन करेंगे और उग्र आंदोलन होगा। कुड़मी संगठनों को इससे चुनौती मिली है, इसलिए वे अभियान को अधिक प्रभावी बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यह टकराव सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है।

    इस बार ज्यादा पुख्ता तैयारी

    पिछले आंदोलनों की अपेक्षा इस बार कुड़मी संगठनों की तैयारी और मजबूत है। 2023 में हुए आंदोलन में मुरी, गोमो आदि स्टेशनों में हंगामा हुआ था। नौ ट्रेनें रद और आठ डायवर्ट की गई थी। 2022 में बंगाल के पुरुलिया और झारग्राम में रेल रोकी गई।

    कोलकाता हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया था। इन घटनाओं से रेल राजस्व को करोड़ों का नुकसान हुआ था। आदिवासी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआई) अपनी रिपोर्ट में कुड़मी की जनजातीय पृष्ठभूमि का मानने से पहले ही इनकार कर चुका है।