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    जानें क्या है साइलेज पैकिंग मशीन, जिससे झारखंड के किसानों की आय दोगुनी हुई

    By Madhukar KumarEdited By:
    Updated: Mon, 31 Jan 2022 03:47 PM (IST)

    इनकी प्रेरणा से किसानों ने मक्का की खेती करना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि वह ढ़ाई रुपये प्रति किलोग्राम की दर से सीधे किसानों से डंठल खरीदते है तथा मशीन में प्रोसेसिंग के बाद उसे छह रुपए किलो बिक्री करते है।

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    इंजीनियर पति-पत्नी के सहयोग से किसानों की आय हुइ दोगुनी

    गढ़वा, जागरण संवाददाता। प्रखंड में साइलेज हरा चारा पैकिंग मशीन की स्थापना से किसान और पशुपालकों के आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलने लगे है। मड़वनिया गांव निवासी अभिनव किशोर तीन वर्ष पूर्व झारखंड प्रदेश के 24 सदस्यीय किसानों के दल के साथ इजरायल गए थे। वहां साइलेज निर्माण की विधि को नजदीक से देखने के बाद गांव आकर साइलेज पैकिंग मशीन की स्थापना की। उक्त मशीन को 25 लाख रुपया खर्च कर चाइना से मंगाया गया है।

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    झारखंड के पहला साइलेज पैकिंग मशीन

    मड़वनिया गांव में स्थापित होने वाला यह झारखंड का पहला साइलेज पैंकिंग मशीन था। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की पांच वर्षों तक विभिन्न कंपनियों में सेवा देने के बाद अभिनव इलाके के किसान और पशुपालकों की दशा और दिशा सुधारने के उद्देश्य से अपने घर लौट आएं हैं तथा गांव में ही इस व्यवसाय से जुड़कर काम कर रहे हैं। वह गांव-गांव जाकर किसानों को अपनी खाली पड़ी जमीनों में मक्का की खेती करने और दाना के साथ साथ डंठल बेचकर अपनी आय दोगुनी करने के लिए प्रेरित करने लगे।

    पति-पत्नी के सहयोग से दोगुनी हुई किसानों की आमदनी

    बताते चले कि अभिनव की पत्नी अंशु सिंह भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर पाकुड़ में डेयरी व्यवसाय से जुड़ी हुई है। सिंह दंपति ग्रामीणों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए गो पालन और दुग्ध व्यवसाय को सबसे अच्छा रास्ता मानते है। अभिनव ने बताया कि किसान यदि एक एकड़ में खेती कर मक्का का डंठल बेचते है तो उन्हें 50 हजार रुपया का शुद्ध आमदनी होगी। इनकी प्रेरणा से किसानों ने मक्का की खेती करना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि वह ढ़ाई रुपये प्रति किलोग्राम की दर से सीधे किसानों से डंठल खरीदते है तथा मशीन में प्रोसेसिंग के बाद उसे छह रुपए किलो बिक्री करते है।

    हरा चारे की समस्या खत्म हुइ

    उनके यहां का साइलेज पटना,गया,हजारीबाग,रांची,बोकारो,जमशेदपुर और लातेहार के डेयरी फार्मो में भेजा जाता है। पहले यही साइलेज पशुओं को खिलाने के लिए पंजाब और हरियाणा से अपने राज्य में मंगाया जाता था। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व भागोडीह गांव में गव्य विकास विभाग की ओर से हरा चारा लगाने के लिए स्थल का चयन किया गया था। लेकिन ग्रिड निर्माण और कुछ ग्रामीणों के विरोध के कारण यह महत्वपूर्ण योजना ठंडे बस्ते में चला गया।

    हरा चारा को संरक्षित करने की प्रक्रिया है साइलेज

    अभिनव ने बताया कि हरा चारा को लंबे समय तक संरक्षित करने की प्रक्रिया ही साइलेज है। यह पशुओं के लिए रेडी टू इट के समान है। इसे साल भर पशुओ को खिलाया जा सकता है। इसके सेवन से पशुओ में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही दूध का फैट और एसएनएफ बढ़ता है। जिससे पशुपालकों को बाजार में दूध की अच्छी कीमत मिलती है। उन्होंने बताया कि साइलेज पैंकिंग का काम शुरू होने पर 25 लोगों को नियमित रोजगार मिल रहा है। साथ ही लगभग एक सौ किसान उनसे जुड़कर अपनी आय दोगुनी कर रहे है।

    क्या कहते हैं किसान

    पहली बार अपनी 35 कट्ठा जमीन पर मक्का की खेती की थी। डंठल बेचकर उन्होंने 50 हजार रुपया का मुनाफा कमाया था। जबकि दाना बेचने पर महज 10 से 15 हजार रुपये की ही आमदनी हुई थी। साइलेज पैकिंग मशीन की स्थापना से उनके जैसे कई किसानों की आमदनी दोगुनी हुई है।

    राजीव कुमार मेहता,मड़वनिया, रमना

    ढ़ाई बीघा खेत में मकई का फसल लगाया था। जिससे उन्हें 42 हजार रुपये की आमदनी हुई थी। इसलिए वह बराबर ठंड के दिनों में मकई की खेती करते है। मक्का की खेती के लिए बीज, खाद भी समय पर उपलब्ध करा दिया जाता है।

    बबलू मेहता, मड़वनिया, रमना