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    कुपोषण के खिलाफ नई जंग: रांची के स्कूलों में अनोखी पहल, बच्चे खुद उगाएंगे अपनी सब्जियां

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 08:01 PM (IST)

    प्रोजेक्ट सुपोषण के तहत सरकारी स्कूलों में किचन गार्डन विकसित किए जा रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य मिड-डे मील को अधिक पौष्टिक बनाकर बच्चों में कुपोषण से लड़ना है। शिक्षकों अभिभावकों और ग्रामीणों को जोड़ते हुए यह योजना झारखंड जैसे राज्यों के लिए एक नई राह दिखा रही है जो बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य को आयाम देगी। पहले चरण में 1771 स्कूलों में डेवलप किया जा रहा है।

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    सरकारी स्कूलों के बच्चे अब किचन गार्डन की सब्जियों का लेंगे स्वाद।

    कुमार गौरव, जागरण रांची। झारखंड जैसे राज्य में जहां कुपोषण एक गंभीर चुनौती है, वहां सरकारी स्कूलों में शुरू की गई एक नई पहल उम्मीद की किरण जगा रही है। 'प्रोजेक्ट सुपोषण' नाम की इस अनोखी योजना के तहत स्कूलों में ही पोषणयुक्त किचन गार्डन बनाए जा रहे हैं, ताकि बच्चों को मिलने वाले मिड-डे मील की पौष्टिकता बढ़ाई जा सके।

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    रांची जिले में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट सिर्फ बच्चों को ताजी सब्जियां देने तक सीमित नहीं है, बल्कि कुपोषण की लड़ाई को एक नया आयाम दे रहा है और अन्य राज्यों के लिए भी एक नई राह दिखा सकता है। पहले चरण में 1771 स्कूलों में इस पहल को शुरू किया गया है, जिसका सीधा फायदा बच्चों के स्वास्थ्य पर दिखेगा।

    क्यों शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट?

    झारखंड में बच्चों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के लगभग 42% बच्चे कुपोषित हैं। इस गंभीर स्थिति से निपटने और बच्चों को पौष्टिक भोजन देने के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक (DSE) बादल राज ने यह अनूठी पहल शुरू की है। इस प्रोजेक्ट का मकसद सिर्फ बच्चों को खाना खिलाना नहीं है, बल्कि उन्हें खेती, वेस्ट मैनेजमेंट और पर्यावरण के बारे में भी सिखाना है।

    कैसे काम करेगा 'प्रोजेक्ट सुपोषण'?

    इस योजना के तहत, स्कूलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

    1. जमीन वाले स्कूल: जहां जमीन और बाउंड्री दोनों हैं, वहाँ बड़े किचन गार्डन बनाए जा रहे हैं।
    2. जमीन पर बाउंड्री नहीं: इन स्कूलों में भी जमीन का उपयोग किया जाएगा।
    3. बिना जमीन वाले स्कूल: जिन स्कूलों के पास जमीन नहीं है, वहाँ रूफटॉप गार्डनिंग (छत पर खेती) की विधि अपनाई जा रही है।

    स्कूलों में मौसमी सब्जियों के साथ-साथ सहजन, केला, अमरूद, पपीता और जामुन जैसे फलदार पौधे भी लगाए जा रहे हैं। दिसंबर 2025 तक जिले के सभी 2128 सरकारी स्कूलों में यह योजना पूरी तरह से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।

    सामाजिक भागीदारी का महत्व

    इस प्रोजेक्ट की सबसे खास बात यह है कि इसमें सिर्फ शिक्षक और बच्चे ही नहीं, बल्कि अभिभावक और ग्रामीण भी शामिल हैं। वे 'वालंटियर' के रूप में किचन गार्डन की देखरेख करेंगे। इससे उगी हुई सब्जियों की चोरी रोकी जा सके। इस तरह यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक सरकारी योजना न रहकर एक सामुदायिक आंदोलन बनता जा रहा है।

    'प्रोजेक्ट सुपोषण' एक ऐसा कदम है जो न केवल बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाएगा, बल्कि उन्हें प्रकृति और आत्मनिर्भरता का पाठ भी पढ़ाएगा। यह एक छोटी सी पहल है, जो आने वाले समय में बच्चों के भविष्य को नई दिशा दे सकती है।

    किचन गार्डेन के ये हैं लाभ

    • ताजा और स्वस्थ भोजन : किचन गार्डेन से ताजी सब्जियां और फल प्राप्त होने से छात्रों को स्वस्थ भोजन मिल सकता है
    • पोषण शिक्षा : छात्रों को खेती और पोषण के बारे में सिखाने का अवसर मिल सकता है
    • आत्मनिर्भरता : स्कूल अपनी आवश्यकता के लिए स्वयं सब्जियां उगा सकता है, जिससे खर्च कम हो सकता है
    • पर्यावरण शिक्षा : छात्रों को प्रकृति और पर्यावरण के महत्व के बारे में सिखाने का अवसर मिल सकता है।