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उठ उठ करमसेनी... झारखंड में कर्मा पूजा की धूम

प्रकृति पर्व करमा पूजा केे मौके पर झारखंड में हंसी खुशी का माहौल है। आद‍िवासी इलाकों में उत्‍साह के साथ नाच गान चल रहा है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 11:44 AM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 03:50 PM (IST)
उठ उठ करमसेनी... झारखंड में कर्मा पूजा की धूम
उठ उठ करमसेनी... झारखंड में कर्मा पूजा की धूम

रांची, जेएनएन। उठ उठ करमसेनी, पाही गिस विहान हो। चल चल जाबो अब गंगा असनांद हो। प्रकृति पर्व करमा पूजा केे मौके पर आद‍िवासी चेहरे न‍िहाल हो रहे हैं। झारखंड के चप्‍पे चप्‍पे में प्रकृति के संरक्षक त्‍योहार को लेकर उत्‍साह से भरे हैं। आदिवासी समाज में प्रचलित इस लोक पर्व में जगह जगह कर्मा नृत्य का भी आयोजन क‍िया जा रहा है।

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मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने कर्मा पर्व के मौके पर ट्वीट कर प्रदेशवास‍ियों को बधाई दी है। सीएम ने ल‍िखा सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। झारखंंड की पहचान और संस्कृति के मूल में प्रकृति की पूजा है। हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रकृति के संरक्षक रहे हैं। हमें मिलकर झारखंंड को और हरा भरा बनाना है। 

कर्मा पूजा पर्व आदिवासी समाज का प्रचलित लोक पर्व है इस त्यवहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे कर्मा नृत्य कहते हैं । यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मॉस की एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़, सहित देश विदेश में पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते है और दूसरे दिन कुल देवी देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच गा कर मनाया जाता है। बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा और भुंइयां कर्मा आदि वासीय नृत्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य में ‘करमसेनी देवी’ का अवतार गोंड के घर में हुआ ऐसा माना गया है, एक अन्य गीत में घसिया के घर में माना गया है। 

कर्मा की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर विशेष गीत भी गाये जाते हैं।

कर्मा पूजा कथा इतिहास : कहा जाता है कर्मा धर्मा दो भाई था दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद कर्मा की शादी हो गयी उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी। यहाँ तक की वह धरती माँ के ऊपर ही माड़ पैसा देदी थी जिससे कर्मा को बहुत दुःख हुआ। वह धरती माँ के पीरा से बहुत दुखी था और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया। उसके जाते ही सभी के कर्म किसमत भाग्य चला गया और वहां के लोग दुखी रहने लगे। 

धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गयी और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गयी आस पास कही पानी न था दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा की उसमे पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा की जबसे कर्मा भाई यहाँ से गए हैं तबसे हमारा कर्म फुट गए है यहाँ का पानी सुख गया है , अगर वे मिले तो उनसे कहा देना। कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुवे थे, उसने भी धर्म से कहा की जब से कर्मा गए है तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते है अगर वे मिले तो उनसे कह दीजियेगा और उनसे उपाय पूछ कर बताइएगा। 

धर्म वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया की जबसे कर्मा यहांसे गया है उनके सर के बोझ तबतक नहीं उतरते जबतक 3-4 लोग मिलकर न उतारे सो यह बता कर्मा से बता करा निवारण के उपाय बताना । धर्म वहाँ से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की कर्म से पूछ कर बताना की जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते है सो इसके लिए क्या उपाय करें। धर्म आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा की कर्मा धुप व गर्मी से परेशान है उसके शरीर पर फोड़े परे हैं और वह व्‍याकुल हो रहा है। 


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