बिहार विधानसभा चुनाव में झामुमो का 16 सीटों पर दावा, रांची में लग रहा टिकट के दावेदारों का जमावड़ा
बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है लेकिन टिकट के दावेदारों का जमावड़ा झारखंड की राजधानी रांची में देखने को मिल रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार में अपनी सियासी जमीन मजबूत बताकर 16 सीटों पर दावेदारी की है जिससे राज्य का चुनावी समीकरण जटिल हो गया है। रांची में झामुमो मुख्यालय में टिकट की आस में नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ रही है।

राज्य ब्यूरो, रांची। बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है, लेकिन टिकट के दावेदारों का जमावड़ा झारखंड की राजधानी रांची में देखने को मिल रही है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार में अपनी सियासी जमीन मजबूत बताकर 16 सीटों पर दावेदारी की है, जिससे राज्य का चुनावी समीकरण जटिल हो गया है।
रांची में झामुमो मुख्यालय में टिकट की आस में नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ रही है। इस बीच, कटोरिया सीट से दावेदारी पेश करने वाली रेखा सोरेन ने कहा कि कटोरिया सीट हेमंत दा की झोली में डाल दूंगी। रेखा सोरेन की कटोरिया पर नजर है।
वह 2010 में कटोरिया से भाजपा विधायक रहे सोनेलाल हेम्ब्रम की पुत्री हैं और इस बार झामुमो के टिकट पर कटोरिया से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उन्होंने इसके लिए औपचारिक आवेदन भी जमा किया है। रेखा सोरेन अकेली नहीं हैं।
रांची में झामुमो मुख्यालय में रोजाना दर्जनों दावेदार टिकट के लिए आवेदन दे रहे हैं। एक सितंबर को झामुमो अध्यक्ष और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पटना दौरे के दौरान भी उनसे मिलने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
बिहार में राजनीतिक जमीन की तलाश
झामुमो बिहार में अपनी सियासी पैठ बढ़ाने को बेताब है। झामुमो की बिहार इकाई ने कटोरिया, चकाई, ठाकुरगंज, कोचाधामन, रानीगंज, बनमनखी, धमदाहा, रुपौली, प्राणपुर, छातापुर, सोनवर्षा, झाझा, रामनगर, जमालपुर, तारापुर और मनिहारी सीटों पर दावेदारी पेश की है।
पार्टी का मानना है कि सीमांचल और कोसी क्षेत्र में आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के बीच उसकी मजबूत पकड़ है। ये क्षेत्र मतदाता समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
हालांकि, गठबंधन की सियासत में 16 सीटें हासिल करना आसान नहीं है। झामुमो ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन में सहमति बनाने की कोशिश तेज कर दी है। पार्टी का लक्ष्य कम से कम छह से आठ सीटें हासिल कर बिहार विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज करना है।
गठबंधन की राह में चुनौतियां
बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद ने पहले ही कांग्रेस और वाम दलों के साथ सीट बंटवारे पर चर्चा की है।
ऐसे में झामुमो की 16 सीटों की मांग को पूरा करना राजद के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अगर गठबंधन में सहमति नहीं बनी तो झामुमो कुछ सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला भी ले सकती है।
यह महागठबंधन की एकता को प्रभावित कर सकता है। झामुमो की इस सक्रियता ने बिहार के चुनावी समीकरणों को और जटिल कर दिया है।
सीमांचल और कोसी क्षेत्र में उसकी दावेदारी न केवल महागठबंधन, बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए भी चुनौती बन सकती है।
ये क्षेत्र एनडीए की मजबूत पकड़ वाले माने जाते हैं। झामुमो की रणनीति से विपक्षी गठबंधन को नई ताकत मिल सकती है, लेकिन गठबंधन में सीटों का तालमेल नहीं होने पर यह उल्टा भी पड़ सकता है।
कार्यकर्ताओं में उत्साह, रणनीति पर जोर
झामुमो के कार्यकर्ता बिहार में नई राजनीतिक जमीन तैयार करने को लेकर उत्साहित हैं। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक नीतियां और आदिवासी-दलित केंद्रित एजेंडा बिहार के मतदाताओं को आकर्षित करेगा। रांची से लेकर पटना तक सियासी गहमागहमी बढ़ी हुई है।
हेमंत सोरेन की सक्रियता और रेखा सोरेन जैसे दावेदारों का जोश झामुमो के उत्साह को दर्शाता है। अब देखना यह है कि गठबंधन की सियासत में झामुमो अपनी कितनी सीटें हासिल कर पाती है और बिहार के चुनावी रण में उसका प्रदर्शन कैसा रहता है।
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