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    हैरान रह जाएंगे जानकर, इन दस कारणों से देश-दुन‍िया में मशहूर रहा है झुमरीतिलैया

    By M EkhlaqueEdited By:
    Updated: Thu, 03 Feb 2022 05:42 PM (IST)

    Jharkhand Tourism देश-दुन‍िया में झारखंड का झुमरीत‍िलैया शहर इतना मशहूर क्‍यों है यहां आप क्‍या-क्‍या देख सकते हैं। इस शहर की क्‍या व‍िशेषता है। आख‍िर झुमरीत‍िलैया इतना मशहूर कैसे हो गया इन तमाम सवालों का यहां पढ़‍िए जवाब-

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    Jharkhand Tourism: झारखंड का झुमरीत‍िलैया शहर इतना मशहूर क्‍यों है...।

    झुमरीतिलैया, (अनूप कुमार)। Jhumritilaiya Famous City बहुत पुरानी फिल्म 'हसीना मान जाएगी' का एक गीत है- मैं जोगन बन जाऊंगी... मैं झुमरीतिलैया जाऊंगी...। जी हां, आज से करीब 70 वर्ष पहले 1950 के आसपास जब कोई इस शहर का नाम कोई सुनता था तो विश्वास नहीं होता क‍ि इस नाम का भी कोई शहर भी होगा। लेकिन, वर्ष 1950 के बाद इस शहर का नाम मशहूर हो गया।

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    इसमें बड़ा योगदान रहा यहां के रेडियो श्रोताओं का। स्व. रामेश्वर प्रसाद वर्णवाल और गंगा प्रसाद मगधिया जैसे करीब एक दर्जन श्रोता ऐसे थे, जो देश-दुन‍िया के सभी रेड‍ियो स्‍टेशनों में इस शहर के नाम से ही फरमाइशी गीत सुनने की फरमाइश भेजते थे। इन्‍होंने रेड‍ियो के व‍िभ‍िन्‍न कार्यक्रमों में इतनी फरमाइश भेजी क‍ि हर ओर झुमरीत‍िलैया सुनाई देने लगा। वर्ष 1990 तक ऐसा कोई दिन नहीं होता, जब झुमरीतिलैया का नाम रेडियो सिलोन, विविध भारती, विनाका गीतमाला जैसे फरमाइशी गीतों के कार्यक्रम में नहीं सुनाई देता हो।

    दरअसल झुमरीतिलैया नाम यहां कोडरमा जिले के दो गांवों झुमरी और तिलैया को मिलाकर बना। बाद में कोडरमा जिला का यही सबसे प्रमुख शहर बन गया। ऐसा नहीं कि पहले यह शहर मशहूर नहीं था। इससे पहले भी माइका उत्पादन को लेकर कोडरमा की ख्याति विदेश तक थी। यहां का लाल रूबी माइका, ग्रीण माइका और सफेद माइका विदेश में प्रसिद्ध रहा है। लेकिन तब प्रसिद्धि कोडरमा की ही थी।

    स्‍टेशन से बाहर न‍िकलते ही पहुंच जाते हैं झुमरीत‍िलैया

    वैसे झुमरीतिलैया व कोडरमा में बहुत अंतर नहीं है। यदि आप कोडरमा स्टेशन पर उतरते हैं तो कोडरमा में होते हैं। लेकिन जैसे ही स्टेशन से बाहर निकलते हैं आप झुमरीतिलैया में पहुंच जाते हैं। यहां से यदि कोडरमा शहर जाना हो तो करीब सात किलोमीटर दूरी तय कर कोडरमा जाना पड़ता है, जहां जिला मुख्यालय है। यानी स्टेशन कोडरमा, शहर झुमरीतिलैया और फिर कोडरमा शहर के लिए सात किलोमीटर दूरी तय करना। बाहर के लोगों को थोड़ा विचित्र जरूर लगता है, लेकिन यहां के लोगों में इसे लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं।

    माइका के ल‍िए देश-दुन‍िया में रही है इसकी पहचान

    कोडरमा की समृद्धि का सबसे बड़ा माध्यम माइका था। करीब 1870-80 के दौरान यहां रेलवे लाइन निर्माण के दौरान मिट्टी के कार्य के दौरान यहां जमीन से बहुमूल्य, बहुपयोगी और कई विशिष्ट गुणों से भरपूर माइका का पता चला। बाद में यहां करीब दो हजार माइका की खदानें तैयार हुए। तब सबसे बड़े माइका उत्पादन एवं निर्यात करनेवाली कंपनी सीएच प्राइवेट लिमिटेड देश की दस सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में अपना स्थान रखती थी। सीएच परिवार के 60 वर्षीय सुधीर भदानी कहते हैं 1940 में करीब 15 कारें कंपनी में थीं। इनमें प्वायंटिया, ब्यूक, शेवरलेट, पैकार्ड प्रिंस, रोवर, हिलमन, लैंड मास्टर, फ्रेजर जैसी कंपनियों की कारें थी। लैंड मास्टर ही बाद में एंबेस्डर बना।

    यद‍ि यहां आइए तो एक बार कलाकंद जरूर खाइए

    यह एक विशिष्ट प्रकार की मिठाई है, जो दूध के छेना से बनती है। 1970 के आसपास भाटिया परिवार के लोग इसे बनाते थे, जो कालांतर में कलाकंद के नाम से मशहूर हुआ। आज सफेद और केसरिया कलाकंद की प्रसिद्धि पूरे देश में है। यहां की जलवायु और पानी के कारण ही यहां रसदार और क्रिमी कलाकंद प्रसिद्ध है, जो दूसरे जगह पर नहीं बन पाता है।

    देश का पहला सैनिक स्कूल त‍िलैया डैम के पास बना

    वर्ष 1963 में देश का पहला सैनिक स्कूल यहीं तिलैया डैम के नजदीक बना। वर्ष 1962 में चीन से युद्ध में पराजय के बाद तत्कालीन रक्षामंत्री वीके कृष्णमेनन ने देश की सरहदों की रक्षा के लिए शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूप से सक्षम सैन्य अधिकारी तैयार करने के लिए सैनिक स्कूल की परिकल्पना की। उनकी इसी परिकल्पना को सबसे पहले सैनिक स्कूल तिलैया के रूप में कोडरमा में उतारा गया। इसके बाद एक-एक कर देश के विभिन्न हिस्सों में 18 सैनिक स्कूल खुले। आज इसकी संख्या बढ़कर 24 हो गई है। हाल ही में सरकार ने 100 और सैनिक स्कूल खोलने की घोषणा की है।

    तिलैया डैम के रूप में यही शुरू हुई नदी घाटी पर‍ियोजन

    झुमरीतिलैया से 15 किमी दूर बराकर नदी पर बना है तिलैया डैम। वर्ष 1953 में इसकी स्थापना हुई। तब के प्रधानमंत्री के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले नदी घाटी परियोजना के रूप में इसकी स्थाना प्रायोगिक तौर पर की था। यहां दो-दो मेगावाट क्षमता का दो जलविद्युत परियोजना संचालित है। इसी के आधार पर देश के दूसरे राज्यों में प्रांतों में नदी घाटी परियोजनाओं की शुरूआत की गई।

    डोमचांच के स्टोन च‍िप्‍स की मांग अभी ब‍िहार तक

    वर्ष 1980 के दशक में जिले के डोमचांच, मरकच्चो, ढाब, चंदवारा इलाकों में भूगर्भ में बहुतायत में पत्थर मिलने शुरू हए। इसके बाद कोडरमा स्टोन क्रशरों का खुलना शुरू हुई। करीब चार दशक तक इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिले। आज भी डोमचांच के स्टोन चिप्स की मांग पूरे बिहार झारखंड में है।

    पारसनाथ के बाद ध्वजाधारी धाम सबसे ऊंचा धाम

    पारसनाथ के बाद झारखंड के सबसे ऊंचे पर्वतों में एक है कोडरमा का ध्वजाधारी धाम। माना जाताहै कि ब्रह्मा पुरत्र कर्दम ऋषि ने वर्षों तक यहां तपस्या की थी। इसी कर्दम ऋषि के नाम पर कोडरमा का नाम कोडरमा पड़ा। कोडरमा जिला मुख्यालय में स्थित इस पर्वत की तलहटी मेें कई भव्य मंदिर है। यहां की खुबसूरती देखने लायक है। बड़ी संख्या में पर्यटक यहां हर साल पहुंचते हैं।

    कोडरमा स्टेशन से चार रूटों के ल‍िए खुलती ट्रेनें

    कोडरमा स्टेशन झारखंड के प्रमुख स्टेशनों में एक है। कोडरमा जंक्शन से वर्तमान में चार रूटों के लिए ट्रेन खुलती है। इसमें हावड़ा, नई दिल्ली के अलावा हजारीबाग, बरकाकाना, गिरिडीह मधुपुर शामिल है। आनेवाले दिनों में यह स्टेशन देश महत्वपूर्ण स्टेशनों में एक होगा। कोडमरा से 10 किलोमीटर दूर गझंडी स्टेशन में 6 दिसंबर 1906 को ग्रैंड कार्ड सेक्शन की स्थापना की गई थी।

    पर्यटक स्थल का बड़ा केंद्र बन गया है झमुरीत‍िलैया

    झुमरीतिलैया शहर आज पर्यटन का बड़ा केंद्र बन गया है। यहां से 100 किलोमीटर के दायरे में हजारीबाग नेशनल पार्क, इटखोरी, बोधगया, जैनियों का तीर्थस्थल पारसनाथ, बोधगया,राजगीर, नालंदा समेत कई महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है, जहां झुमरीतिलैया को केंद्र बनाकर सैर सपाटा किया जा सकता है। यहां का तिलैया डैम, वृंदाहा व पेट्रो जलप्रपात भी पर्यटकों को खूब लुभाते हैं।

    यह साझी संस्कृति का शहर, खूब होते हैं आयोजन

    झुमरीतिलैया शहर साझी संस्कृति के लिए भी विख्यात है। यहां सालों भर विभिन्न भजन मंडलियों का धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन यहां खूब होते है। इसमें राणी सती का महोत्सव, बसंत महोत्सव, जैनियों का विविध आयोजन शामिल है। यहां सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।