8 करोड़ खर्च कर भी सिर्फ 2300 पौधे बचे: हाईकोर्ट ने NHAI से पूछा- बाकी कहां गए?
झारखंड उच्च न्यायालय ने एनएचएआई से पूछा कि 8 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी केवल 2300 पौधे कैसे बचे, बाकी पौधे कहां गए। अदालत ने इस मामले में एनएचएआई ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, रांची। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में हजारीबाग से बरही तक एनएच-33 के चौड़ीकरण के दौरान पौधरोपण के मामले में बुधवार को सुनवाई हुई।
सुनवाई के बाद अदालत ने एनएचएआइ से विस्तृत जानकारी मांगी है। अदालत ने पौधरोपण के लिए स्वीकृत आठ करोड़ रुपये के इस्तेमाल के बाद जमीनी रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया है। पूछा है कि इस राशि में कितनी राशि खर्च हुई, कितने पौधे लगाए गए और कितने पौधे जीवित हैं? मामले की अगली सुनवाई पांच जनवरी को होगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश के आलोक में एनएचएआइ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए। कोर्ट ने एनएचएआइ से यह जानकारी मांगी कि सड़क के दोनों ओर पौधरोपण के लिए कितनी राशि खर्च की गई और कुल कितने फंड का उपयोग हुआ?
इस पर प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने अदालत को बताया कि हजारीबाग से बरही के बीच एनएच-33 के दोनों ओर पौधारोपण के लिए लगभग आठ करोड़ रुपये का फंड निर्धारित था, जिसका उपयोग करते हुए 20 हजार पौधे लगाए गए हैं। कोर्ट ने सवाल उठाया कि इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद कितने पेड़ वास्तव में जीवित हैं। इस पर एनएचएआइ की ओर से बताया गया कि करीब 2300 पौधे जीवित हैं।
इस पर अदालत ने एनएचएआइ के अधिकारी को निर्देश दिया कि वे शपथ पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट करें कि एनएचएआइ की नीति के अनुसार सड़क किनारे रहने वाले स्थानीय लोगों को पौधारोपण में शामिल किया गया था या नहीं।
रखरखाव में स्थानीय लोगों को भी शामिल करें
प्रार्थी ने कहा कि एनएचएआइ की नीति के तहत इसके रखरखाव में एनजीओ एवं स्थानीय लोगों को भी शामिल करना है। लेकिन इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। पीपल, महुआ जैसे पौधों को लगाने से स्थानीय निवासी भी इस पेड़ की रक्षा करेंगे और काटेंगे नहीं। पेड़ -पौधों को बचाने की जिम्मेवारी स्थानीय लोगों को दी जा सकती है।
इस संबंध में इंद्रजीत सामंता ने जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका में सड़क चौड़ीकरण के दौरान सड़क किनारे स्थित पेड़ों को काटने के बजाय अन्य स्थान पर प्रतिरोपित करने का आग्रह अदालत से किया गया है। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि बार-बार पौधरोपण तो किया जाता है, लेकिन उचित रखरखाव के अभाव में पौधे सूख जाते हैं।
केवल पौधा लगा देना पर्याप्त नहीं है, उनकी नियमित देखभाल जरूरी है। रखरखाव नहीं होने के कारण पौधे बड़े नहीं हो पाते और पूरी कवायद महज खानापूर्ति बनकर रह जाती है।

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