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    Jharkhand Politics: झारखंड विधानसभा में इतिहास बन जाएगी कुर्सी नंबर-82, अब खाली रहेगी यह सीट; ये है पूरा मामला

    Updated: Fri, 06 Dec 2024 01:38 PM (IST)

    Jharkhand News झारखंड विधानसभा में कुर्सी नंबर-82 अब इतिहास के पन्नों में समाहित हो गई है। यह कुर्सी अब खाली रहेगी जिस पर झारखंड गठन के बाद से एंग्लो-इंडियन समुदाय के विधायक बैठते थे। ग्लेन जोसेफ गालस्टेन झारखंड में नई विधानसभा के गठन के साथ ही अंतिम एंग्लो-इंडियन विधायक बन गए हैं। कानून में संशोधन के बाद यह स्थिति बनी है।

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    झारखंड विधानसभा में इतिहास में समहित हो जाएगी कुर्सी नंबर 82

    प्रदीप सिंह, रांची। Jharkhand Political News Hindi: झारखंड विधानसभा में कुर्सी नंबर-82 अब इतिहास के पन्ने में शामिल होकर अतीत का हिस्सा गया। अब यह कुर्सी खाली रहेगी। इसपर झारखंड गठन के बाद से ही एंग्लो-इंडियन समुदाय से आनेवाले विधायक बैठा करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

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    झारखंड में नई विधानसभा के गठन के साथ ही भारतीय संसदीय प्रणाली के ग्लेन जोसेफ गालस्टेन अंतिम एंग्लो-इंडियन विधायक साबित हुए। इससे पहले कर्नाटक में दो साल पहले एंग्लो-इंडियन समुदाय से आने वाले विधायक का कार्यकाल खत्म हुआ था।

    उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद 1952 से 2020 तक भारत की संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए दो सीटें आरक्षित की गई थी।

    इन दो सदस्यों को भारत सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति और राज्यों में मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल विधानसभा में मनोनीत करते रहे हैं। झारखंड विधानसभा में एंग्लो-इंडियन के लिए एक सीट आरक्षित थी।

    भारत सरकार 10-10 साल के अंतराल पर आरक्षण की तरह एंग्लो-इंडियन की सीटों का कार्यकाल बढाती रही। लेकिन संविधान के 104वें संशोधन के तहत लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं से यह व्यवस्था खत्म कर दी गई थी।

    भारत के संविधान के अनुच्छेद-331 के तहत राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को लोकसभा और विधानसभा में नामित किया जाता था।

    25 जनवरी 2020 से परंपरा समाप्त, कानून में संशोधन

    उस वक्त केंद्र में रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री थे। वर्ष 2020 में 25 जनवरी से यह व्यवस्था पूरे देश में लागू हो गई थी।

    लेकिन इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि झारखंड में दिसंबर-2019 में विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए और 25 जनवरी 2020 के पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एंग्लो-इंडियन समुदाय से ग्लेन जोसेफ गालस्टेन को मनोनीत कर दिया।

    तब हड़बडी में 24 जनवरी को ही ग्लेन जोसेफ गालस्टेन ने स्पीकर रबीन्द्र नाथ महतो के कक्ष में शपथ ली थी।

    हमारे बारे में गलत अवधारणा फैलाई गई - गालस्टेन

    बातचीत में ग्लेन जोसेफ गालस्टेन कहते हैं - पूरे देश में एंग्लो-इंडियन समुदाय के बारे में गलत अवधारणा फैलाई गई कि उनका समुदाय भाजपा विरोधी है।

    हकीकत यह है कि इस समुदाय के लोग विभिन्न दलों कांग्रेस, टीडीपी और भाजपा में हैं। कुछ लोग नहीं चाहते थे कि उनकी आवाज संसद या फिर विधानसभा में सुनाई पड़े।

    ऐसे लोगों ने गलत तथ्य और जानकारी देकर संविधान में संशोधन कराकर इस व्यवस्था को खत्म कराया। भारत सरकार के पास मौजूद जनगणना की रिपोर्ट में बिहार, कर्नाटक, झारखंड सहित कई राज्यों में एंग्लो-इंडियन समुदाय की संख्या शून्य बताई गई, जो सच्चाई से कोसों दूर है।

    जनगणना में कहा गया है कि पूरे देश में एंग्लो-इंडियन की संख्या महज 299 है, जबकि देशभर में इस समुदाय की संख्या तीन लाख के आसपास है।

    केंद्र सरकार चाहे तो खोल सकती है दरवाजा

    ग्लेन जोसेफ गालस्टेन कहते हैं कि अभी भी अध्याय समाप्त नहीं हुआ है। यदि केंद्र सरकार चाहे तो एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए संसद और विधानसभा के दरवाजे खोल सकती है।

    इसके लिए इस समुदाय को विश्वास में लेना होगा। संख्या बल कम होने की वजह से इस समुदाय की आवाज पर कोई ध्यान नहीं दे पाता।

    कांग्रेस ने भी कभी भी इस मुद्दे पर आवाज नहीं उठाई। गालस्टेन आशावादी हैं- कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया कायम है।

    15 सालों तक झारखंड की सेवा की। एक संभावना यह है कि 2026 में नए परिसीमन होने तक इंतजार करें और यदि महफूज सीट मिले तो वह चुनकर विधानसभा में पहुंचे।

    वे चाहते हैं कि ऐसे बच्चों के लिए झारखंड में एक स्कूल खोलें, जो महंगी शिक्षा वहन करने में सक्षम नहीं हैं।