झारखंड से नेपाल 'बच्चों का सौदा', मुफ्त शिक्षा के नाम पर आदिवासी बच्चों को बौद्ध मठों में भेजा, क्या यह धर्मांतरण की साज़िश है?
झारखंड के आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा के नाम पर नेपाल के बौद्ध मठों में ले जाया गया। चाईबासा पुलिस ने मानव तस्करी का केस दर्ज किया है। 27 बच्चों की ...और पढ़ें

चाइबासा पुलिस के सामने नेपाल से बच्चों की वापसी की गुहार लगाते अभिभावक।
डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों से गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा, रहना-खाना और उज्ज्वल भविष्य का लालच देकर नेपाल के बौद्ध मठों में ले जाया जा रहा है। मामला सामने आने के बाद चाईबासा पुलिस ने मानव तस्करी का केस दर्ज कर लिया है।
पुलिस ऐसे 27 बच्चों की जांच कर रही है।अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह सिर्फ शिक्षा का प्रलोभन है या इसके पीछे बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन की कोई सुनियोजित साजिश चल रही है? दिलचस्प बात यह है कि 27 बच्चों में से रांगामाटी गांव के 11 बच्चों के परिजन चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि उनके बच्चों को छल से ले जाया गया, वापस लाओ।
बाकी 16 बच्चों के माता-पिता ने लिखित में सहमति दे दी है कि उनके बच्चे वहीं मठ में पढ़ाई करें। आदिवासी इलाकों में गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठा कर ही मानव तस्करी का ट्रेंड रहा है। सरकार को इनसे सख्ती से निपटना चाहिए।
मामला क्या है?
11 नवंबर 2025 को पश्चिमी सिंहभूम के अलग-अलग इलाकों से कुल 27 आदिवासी बच्चे (उम्र 10-16 साल) नेपाल भेजे गए। इनमें चाइबासा मुफस्सिल थाना क्षेत्र से 11 बच्चे, चक्रधरपुर से 10, कुमारडुंगी से 4 और झींकपानी से 2 दो बच्चे शामिल हैं।
इन बच्चों को नेपाल के नमोबुद्ध मेडिटेशन सेंटर, सेडोल भक्तपुर (द्रांड्र रिन्पोचे ब्रांच) में ले जाया गया। लालच दिया गया था कि वहां मुफ्त में अच्छी पढ़ाई, रहना-खाना और भविष्य बन जाएगा।
नेपाल से लौटे बच्चों ने खोली पोल
नेपाल से अब तक 11 बच्चे किसी तरह भागकर या नेपाल पुलिस की मदद से लौट आए हैं। इन बच्चों की आपबीती सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
- वहां कोई स्कूल नहीं था, कोई किताब नहीं दी जाती थी।
- सिर्फ ब्लैकबोर्ड पर नेपाली, हिंदी और अंग्रेजी लिखकर पढ़ाई का नाटक होता था।
- दिन में दो बार ध्यान कराया जाता था, बाल मुंडवाए जाते थे, मठ की ड्रेस पहननी पड़ती थी।
- बाहर निकलना पूरी तरह प्रतिबंधित था।
- नियम तोड़ने पर हल्का शारीरिक दंड भी मिलता था।
- भाषा नहीं समझ आती थी, बच्चे डरे-सहमे रहते थे।
दो बच्चे तो सिर्फ 600 रुपये लेकर बस और ट्रेन बदल-बदल कर भाग निकले। चार अन्य बच्चों को नेपाल पुलिस ने 21 दिन तक सुरक्षित रखा और फिर परिजनों को सौंप दिया।
पुलिस ने की कार्रवाई
चाईबासा के आहतू और मुफस्सिल थाने में मानव तस्करी का केस दर्ज। रांगामाटी गांव के मुंडा राम जोंको, खूंटपानी के नारायण कांडेयांग औरबासिल हेम्ब्रम सहित अन्यकोआरोपीबनायागयाहै।पुलिस का कहना है कि बच्चों की सुरक्षित वापसी और आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।
बड़ा सवाल: धर्म परिवर्तन की साजिश?
- नेपाल में बौद्ध मठों में आदिवासी बच्चों को ले जाकर बाल मुंडवाना, ध्यान कराना, बौद्ध धर्म की शिक्षा देना।
- स्कूल-किताब के नाम पर सिर्फ धार्मिक ट्रेनिंग।
- बाहर निकलने पर पाबंदी, शारीरिक दंड।
यह सब देखकर स्थानीय लोग और सामाजिक संगठन एक ही सवाल उठा रहे हैं। क्या झारखंड-ओडिशा के आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा के नाम पर बौद्ध बनाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है? पुलिस अब इस एंगल से भी जांच कर रही है। नेपाल विदेश तो है, लेकिन सीमा से सटा हुआ। ऐसे में बच्चों को बिना उचित दस्तावेज और अभिभावक की लिखित सहमति के विदेश ले जाना अपने आप में गैरकानूनी है। क्या नेपाल के अलावा अन्य कोई देश तो इसमें शामिल नहीं हैं, जांच होना शेष है
अभी तक का अपडेट
- 11 बच्चे सुरक्षित लौट चुके हैं।
- बाकी बच्चों को वापस लाने की कोशिश जारी।
- जिला प्रशासन और चाइल्ड वेलफेयर कमिटी भी सक्रिय।
आदिवासी इलाकों में गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर बच्चों को इस तरह लुभाना और फिर मठों में बंद करना बेहद गंभीर मामला है। अगर यह सचमुच धर्म परिवर्तन का खेल है, तो यह झारखंड के आदिवासी समाज के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
पुलिस और प्रशासन से उम्मीद है कि बाकी बच्चे जल्द सुरक्षित घर लौटें और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।