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    Jharkhand Hundru Waterfall: देखिए सरकार! यहां जुगाड़ की नाव, जोखिम में जान... हादसा हुआ तो कौन लेगा जिम्मेवारी?

    Jharkhand Hundru Waterfall झारखंड प्राकृतिक संसाधनों और मनोरम स्‍थलों से भरापूरा है। यहां की तमाम खूबसूरत वादियां और उनका मनोहारी दृश्‍य सीधे हृदय में जा बसते हैं। लेकिन पर्यटन के मानचित्र पर विस्‍तृत फैलाव के बावजूद यहां के ढेर सारे टूरिस्‍ट प्‍लेस बेहतर सुविधाओं की राह ताक रहे हैं।

    By Alok ShahiEdited By: Updated: Fri, 15 Apr 2022 07:28 PM (IST)
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    Jharkhand Hundru Waterfall: झारखंड प्राकृतिक संसाधनों और मनोरम स्‍थलों से भरापूरा है।

    रांची, [प्रदीप सिंह]। Hundru Waterfall Ranchi झारखंड की राजधानी रांची के चारों तरफ ऐसे मनमोहक जलप्रपात हैं, जिसे निहारने के लिए लोग खींचे चले आते हैं। हर साल लाखों पर्यटकों यहां आकर अपनी थकान उतारते और ऊर्जा ग्रहण करते हैं, लेकिन ये पर्यटन स्थल और यहां मिल रही सुविधाएं कितनी सुरक्षित है, इसपर कभी किसी का ध्यान नहीं गया। देवघर के समीप त्रिकुट पर्वत पर ले जाने वाले रोपवे में आई खामी के कारण हुई दुर्घटना ने सबका ध्यान खींचा है, लिहाजा अब पर्यटकों की सुरक्षा की बात होने लगी है तो ऐसे जलप्रपात के पास सुरक्षा संसाधन के नाम पर कुछ नहीं है।

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    सर्वाधिक सुंदर और मनमोहक जलप्रपात हुन्डरू को निहारने के लिए 700 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। 320 फीट ऊपर से नीचे पहाड़ों से गिरता झरना एक जलाशय का निर्माण करता है। पर्यटकों के लिए कुछ संसाधन तो हैं लेकिन वे सारे जोखिम से भरे हुए। स्थानीय लोगों ने सेल्फी के लिए बांस बांधकर कुछ प्लेटफार्म बना दिए हैं जो सुरक्षा के लिहाज से जोखिम भरा है।

    सबसे अधिक जोखिम वैसे पर्यटक उठाते हैं जो पहाड़ से गिरती हुई जलधारा को करीब से निहारने के लिए जुगाड़ नाव का सहारा लेते हैं। इसके बदले स्थानीय युवक पैसे वसूलते हैं। ट्रक के ट्यूब से बांसों को बांधकर तैयार किया गया यह जुगाड़ नाव रस्सी के सहारे संचालित किया जाता है। इसके जरिए पर्यटक धारा के काफी करीब चले जाते हैं। हमने जब जानकारी ली तो पता चला कि इसकी कोई अधिकृत अनुमति पर्यटन विभाग से नहीं है।

    स्थानीय स्तर पर इसे संचालित किया जाता है। अरसे से यह चल रहा है कि लेकिन पर्यटन विभाग ने कभी रोका नहीं। यही नहीं, जलप्रपात के आसपास गोतखोर या प्रशिक्षित लोगों की तैनाती भी नहीं रहती, जो विपरीत परिस्थितियों में पर्यटकों को बचा सकें। सबकुछ स्थानीय ग्रामीणों पर निर्भर है। जब कोई हादसा होता है तो यही पर्यटकों के लिए आगे आते हैं। जलप्रपातों में अक्सर दुर्घटना होती रहती है। यहां सालों भर पर्यटकों का जुटान होता है। बरसात और ठंड के दिनों में इनकी तादाद कुछ ज्यादा ही हो जाती है।