Jharkhand Sthaniya Niti: झारखंड के साथ अस्तित्व में आए उत्तराखंड व छत्तीसगढ़ में क्या है स्थानीयता नीति
Jharkhand Sthaniya Niti झारखंड में सरकार ने 1932 का खतियान लागू कर दिया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि झारखंड के साथ नए राज्य के रूप में गठित छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड में स्थानीयता के क्या मानक तय किए गए हैं।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Sthaniya Niti वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड राज्य गठन को मंजूरी दी थी। इसके बाद तीनों राज्य अस्तित्व में आए थे। इन तीनों राज्यों में लोग अगल राज्य गठन के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे। चूंकि ये तीनों राज्य जिस प्रदेश के अंग थे, इतने बड़े थे कि विकास की रोशनी इन तक नहीं पहुंच पा रही थी। झारखंड बिहार का हिस्सा था। छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था। झारखंड बिहार का हिस्सा था। जनता के संघर्ष की बदौलत यह तीनों राज्य बने। इन तीनों राज्यों में जश्न का माहौल बना।
इन राज्यों में इस तरह बनाया गया नियम
अलग राज्य बनने के कई वर्ष बाद इन राज्यों ने स्थानीयता की परिभाषा तय की। इन राज्यों ने एक मानक तय किया। उत्तराखंड ने तय किया है कि 15 साल तक राज्य में निवासी करने वालों को स्थानीयता के दायरे में रखा जाएगा। इसी तरह छत्तीसगढ़ ने तय किया है कि राज्य में पैदा लेने वाले, 15 साल से राज्य में रहने वाले और तीन वर्ष तक लगातार शिक्षा ग्रहण करने वाले स्थानीयता के दायरे में आएंगे। इसी तरह झारखंड में भाजपा की रघु़वर दास सरकार ने तय किया था कि 1985 का कट आफ डेट मान्य होगा। फिलहाल राज्य में स्थानीयता के लिए 1985 से राज्य में निवास करना अनिवार्य है। अभी यही नीति प्रभावी है।
झामुमो और आजसू कर रही थी मांग
हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा और सुदेश महतो की आजसू पार्टी लगातार यह मांग करती आ रही थी कि झारखंड में स्थानीयता के लिए 1932 का खतियान मानक बनाया जाए। भाजपा इस पक्ष में नहीं थी। लेकिन जैसे ही वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव आया, हेमंत सोरेन ने इसे मुद्दा बना दिया। जनता से वादा किया कि झारखंड में 1932 का खतियान लागू करेंगे। अब चूंकि यहां उनकी सरकार है, सो उन्होंने इसे लागू कर दिया है। अब विधानसभा में विधेयक आएगा और पारित होकर राज्यपाल के पास जाएगा। राज्यपाल की हरी झंडी के बाद यह झारखंड में प्रभावी हो जाएगा।
इसी से तय होगा राजनीतिक सफर
बुधवार की शाम प्रोजेक्ट भवन सचिवालय का अद्भुत नजारा था। मुख्यमंत्री कार्यालय के मुख्य द्वार से लेकर सचिवालय के गेट तक सरकारी कर्मियों की खचाखच भीड़ थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के समर्थन में खूब नारेबाजी और आतिशबाजी हुई। भीड़ का उत्साह देख हेमंत सोरेन अपनी कार का हुड पकड़कर खड़े हो गए और आत्मविश्वास से भरकर कहा- 'मेरी सरकार को कोई हिला नहीं सकता।' उनके इस हुंकार की वजह हाल के दिनों में लगातार लिए जा रहे नीतिगत फैसले हैं, जिसके दम पर वे आगे का राजनीतिक सफर तय करेंगे।
हेमंत के तरकश के दो मारक तीर
1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार बनाना और ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाना 27 प्रतिशत करना भी उनके तरकश के सर्वाधिक मारक तीर हैं, जो आने वाले दिनों में उनके प्रतिद्वंद्वियों को असहज करेंगे। इस कदम के संकेत उन्होंने पांच सितंबर को आहूत विधानसभा के सत्र के दौरान दे दिए थे। विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था कि वे 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति बनाने और ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में काम आगे बढ़ाएंगे। एक सप्ताह बाद ही उन्होंने इसे कर दिखाया।
हेमंत के साथी दल भी होंगे असहज
दोनों जटिल मांगों पर आगे बढ़कर हेमंत सोरेन ने साथी दल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल की मुश्किल बढ़ाई है। कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने फिलहाल इसका स्वागत किया है, लेकिन 1932 के खतियान का मसला कांग्रेस को असहज करने के लिए काफी है। इसका असर कई विधानसभा क्षेत्रों में पड़ेगा। वहीं राजद की राजनीति भी इससे प्रभावित होगी। राजद का आधार क्षेत्र भी इसके अनुकूल नहीं है।
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