Jharkhand Sthaniya Niti: आंध्रप्रदेश जैसी स्थानीय नीति, तमिलनाडु जैसी आरक्षण नीति, झारखंड आंदोलनकारी का सुझाव
Jharkhand Sthaniya Niti झारखंड में स्थानीयता नीति को लेकर बहस का दौर जारी है। विपक्ष अगल सुर अलाप रहा है और सत्ता पक्ष अलग। ऐसे में अब झारखंड आंदोलनकारी रहे सूर्य सिंह बेसरा ने एक नीति तैयार की है। इसे सीएम को सौंपेंगे।

रांची, डिजिटल डेस्क। Jharkhand Sthaniya Niti झारखंड अलग राज्य गठन में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा है कि आंध्र प्रदेश की तरह झारखंड में स्थानीयता नीति लागू करने की जरूरत है। वहीं, तमिलनाडु की तरह यहां आरक्षण नीति लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा 1932 का खतियान लागू करने की घोषणा के बाद पक्ष-विपक्ष की राजनीति तेज हो गई है। ऐसे में उन्होंने एक गैर सरकारी स्थानीयता नीति का प्रारूप तैयार किया है, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए।
2015 में बनी थी स्थानीय नीति प्रारूप समिति
पूर्व विधायक ने बताया कि उनकी पहल पर वर्ष 2015 में स्थानीय नीति प्रारूप समिति बनी थी, जिसमें स्वर्गीय पद्मश्री डा रामदयाल मुंडा, स्वर्गीय बीपी केसरी, स्वर्गीय ईश्वरी प्रसाद, स्वर्गीय डाक्टर निर्मल मिंज, प्रोफेसर संजय बसु मल्लिक, पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो, डा वासवी कीड़ों, अधिवक्ता रश्मि कात्यायन एवं प्रभाकर तिर्की शामिल थे। उसपर सरकार को ध्यान देना चाहिए। इससे विवाद नहीं होगा। उन्होंने कहा कि गैर सरकारी स्थानीय नीति प्रारूप को वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, गृह सचिव राजीव अरुण एक्का एवं झारखंड सरकार की सचिव वंदना दादेल को सिपुर्द करेंगे।
सरकार की नीति को लेकर गरम हो रही राजनीति
पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि 14 सितंबर को झारखंड कैबिनेट ने जिस तरह से 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने की घोषणा की, उससे समर्थन और विरोध की राजनीति तेज हो गई है। ऐसे में अब जरूरी है कि सर्वमान्य यानी वैकल्पिक स्थानीय नीति पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि झारखंड के बुद्धिजीवी, संविधान विशेषज्ञ एवं कानून विदों से राय परामर्श कर गैर सरकारी वैकल्पिक स्थानीय नीति का प्रारूप तैयार किया गया है।
आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु की नीति का अध्ययन जरूरी
उन्होंने स्थानीय नीति के प्रारूप का हवाला देते हुए कहा है कि झारखंड में भारत का संविधान के अनुच्छेद- 371 (डी) में आंध्र प्रदेश राज्य के लिए विशेष उपबंध की तर्ज पर स्थानीय नीति तथा संविधान में प्रविधानों के अनुरूप नौवीं अनुसूची के तहत तमिलनाडु की तर्ज पर आरक्षण नीति बनाया जाना चाहिए।
अंतिम सर्वे व झारखंडी संस्कृति को किया जाए अनिवार्य
बेसरा ने कहा है कि वर्ष 2002 में झारखंड हाई कोर्ट द्वारा सुझाए गए संशोधनों पर बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा- 85 के तहत अविभाजित बिहार के 1982 में लिए गए संकल्प यानी जिले के अंतिम सर्वे सेटलमेंट में जिनके नाम दर्ज हैं उन्हीं के आश्रितों को स्थानीय निवासी माना जाए, इसके साथ ही झारखंड की भाषा संस्कृति एवं परंपरा जोड़ा जाए।
स्थानीयता नीति के लिए इन सर्वे को रखा जाए ध्यान में
सूर्य सिंह बेसरा का कहना है कि अविभाजित बिहार राज्य की स्थापना 1912 में हुई थी, उससे भी पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य शासनकाल में तथा आजाद भारत में भी अलग-अलग समय में पहले कैडेस्ट्रेल सर्वे एवं बाद में रीविजनल सर्वे हुई थी, जिस प्रकार 1833, 1869, 1907, 1913, 1925, 1927, 1932, 1934, 1958, 1964, 1975, 1976, 1981, एवं 1995 आदि। उन्होंने कहा कि 1932 के खतियान को आधार मानते हुए उससे पहले एवं उसके बाद जिला स्तरीय अंतिम सर्वे सेटेलमेंट के खतियान को शामिल करते हुए स्थानीय नीति निर्धारित किया जाना सर्वमान्य होगा
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