यहां झूला झूलने से टंकी में भरता है पानी, जलता है बल्ब, होती है सिंचाई; पढ़ें जादुई झूले की खबर Ramgarh News
Jharkhand Ramgarh News रामगढ़ के पतरातू के इंजीनियर ने झूला बनाया है। यह ऊर्जा जल व पर्यावरण संरक्षण तीनों का मिश्रण है। पिछले एक वर्षों से इसका सफल प ...और पढ़ें

भुरकुंडा (रामगढ़), [राकेश पांडेय]। कल्पना करें कि आप अपनी बगिया में बैठे झूला झूल रहे हों और खुद-बखूद आपकी बगिया की पटवन हो जाए। बगैर बिजली-मोटर के आपकी छत पर रखी टंकी में पानी भर जाए। साथ ही घर में लगे बल्ब व पंखे भी बगैर बिजली के जलने और चलने लगे तो आश्चर्यचकित न हों। झारखंड के रामगढ़ जिले के पतरातू के इंजीनियर एसएन सिंह ने ऐसा ही जादुई झूला बना लिया है। पिछले एक वर्षों से इसका सफल प्रयोग भी चल रहा है।
दामोदर वैली तट स्थित सिद्धपीठ छिन्नमस्तिके का मंदिर, यहां देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालु भी हाजिरी लगाते हैं। कोयलांचल का ब्लैक डायमंड जो सूबे ही नहीं, देश को भी रोशन करता है। यही पहचान है रामगढ़ जिले की। इसी जिले का पतरातू जो राजधानी रांची से सटे मनोरमवादियों के बीच बलखाती घाटी एवं सैकड़ों एकड में फैले डैम में साइबेरियन पक्षियों के जमघट से खूबसूरत बन गया है। यह लेक रिसाॅर्ट सैलानियों को बर्बस ही अपनी ओर खिंचता है।

आइटीआइ कल्पतरू के संचालक एसएन सिंह जादुई झूला का आविष्कार कर रामगढ़ जिले को देश के मानस पटल पर स्थापित कर दिया है। आरएसएस के उतर-पूर्व संचालक सिद्धिनाथ सिंह ने धनबाद स्थित बीआइटी सिंदरी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है। शुरू से ही कुछ अलग सोचने व करने वाले एसएन सिंह ने चापानल से पानी निकलने की विधि का अध्ययन किया है। इसके बाद दो पिस्टनों की मदद से एक झूला बनाया। झूला झूलने से एक पिस्टन ऊपर व दूसरा नीचे जाता है। दोनों पिस्टन का आउटपुट एक जगह है। इससे चापानल वाली विधि से लगातार धारा प्रवाह पानी निकलता है।

यहां पानी सात-आठ मंजिला आवास में करीब 60 फीट की उंचाई तक बगैर बिजली-मोटर के चढ़ जाता है। पतरातू के कल्पतरू आइटीआइ संस्था व रांची के किसलय विद्या मंदिर में यह झूला लगा हुआ है। हालत यह है कि दिनभर बच्चे झूला झूलते रहते हैं और पानी की कभी कमी नहीं होती। बड़ी बात यह है कि यह झूला मात्र 10 हजार रुपये की लागत में बन जाता है। इसका नाम स्प्रींग पंप झूला है। दो वर्ष पूर्व आइआइटी खड़गपुर में आयोजित सेमिनार में इस खोज पर खूब वाहवाही हुई थी।

खेल-खेल में जल का उपयोग है उद्देश्य: सिद्धिनाथ सिंह
इंजीनियर सिद्धिनाथ सिंह बताते हैं कि इस झूला का उद्देश्य खेल-खेल में पानी का उपयोग करना है। उनकी सोच है कि सभी विद्यालयों, काॅलेजों व हाॅस्टलों में यह झूला लग जाए तो वहां हो रहे जल की बर्बादी रुक जाएगी। वे कहते हैं कि इस झूले में डायनेमो या टरबाइन को लगाकर गति ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में डायवर्ट कर बल्ब जलाया जाता है। साथ ही पंखा भी चलाया जा सकता है।
झूला को उठाकर आसानी से किसी भी खेत में रखा जा सकता है। झूला से बल्ब जलाकर रात में सिंचाई भी की जा सकती है। एसएन सिंह कुछ न कुछ खोज करते रहते हैं। पांच वर्ष पूर्व उन्होंने एक मशीन बनाई थी जिसमें एक पैर दबाने पर एक नल से पानी तो दूसरा पैर दबाने पर दूसरे नल से साबुन का पानी निकलता है। कोरोना संक्रमण के दौरान इसका उपयोग कई कंपनियों में हो भी रहा है।

एक किलोवाट बिजली पैदा होगी
इस झूला से 1 किलोवाट (1000 वाट) बिजली पैदा की जा सकती है। इससे दर्जनों बल्ब व पंखे चल सकते हैं।
सराह चुके हैं वैज्ञानिक
आइआइटी खड़गपुर में सम्मेलन के दौरान देश के वैज्ञानिकों ने इसे जमकर सराहा था। आइआइटी रिसर्च सेंटर दिल्ली ने इस पर शोध की अनुमति मांगी थी। इसे दे दिया गया है।

बिजली-पानी की समस्या देख आया ख्याल
एसएन सिंह ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े हैं। गांवों में बिजली पानी की समस्या देखी है। खेत ऊंचाई पर और पानी कुछ दूरी पर गड्ढे में देखकर उनके मन में कुछ योजना बनी। गरीब ग्रामीण बिजली और मोटर में डीजल का खर्च उठाने में सक्षम नहीं देख उन्होंने इसकी खोज की। नई पीढ़ी में जल संरक्षण को लेकर जागरुकता आएगी।

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