Jharkhand Politics: गीता बन गईं प्रवक्ता, सीता चली गईं हाशिए पर; झारखंड बीजेपी में सियासी हलचल
झारखंड की राजनीति में पाला बदलने वाले नेताओं की किस्मत हमेशा चर्चा में रही है। सीता सोरेन ने भाजपा में शामिल होकर दुमका से चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। वहीं गीता कोड़ा को हार के बावजूद भाजपा में प्रवक्ता बनाया गया। चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को आदिवासी वोटों की उम्मीद है।

प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड की सियासत में पाला बदलने वाले नेताओं की कहानी हमेशा चर्चा का विषय रही है। इस बार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कई बड़े नेताओं ने दल बदला, लेकिन नतीजे उनकी उम्मीदों के विपरीत रहे।
खास तौर पर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा की कहानी सुर्खियों में रही।
सिंहभूम से लोकसभा का चुनाव हारने के बावजूद जहां गीता कोड़ा को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में प्रवक्ता की अहम जिम्मेदारी मिली, वहीं सीता सोरेन हार के बाद पार्टी में हाशिए पर चली गईं।
दूसरी ओर, पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की भाजपा में भूमिका बढ़ रही है और उन्हें आदिवासी वोटों को आकर्षित करने के लिए पार्टी आलाकमान ने खुली छूट दी है।
सीता सोरेन: बड़े तामझाम से भाजपा में, लेकिन हार का सामना
सीता सोरेन जामा से तीन बार की विधायक रही थीं। लोकसभा चुनाव- 2024 से ठीक पहले झामुमो छोड़कर उन्होंने भाजपा का दामन थामा। यह कदम झारखंड की सियासत में एक बड़े झटके के रूप में देखा गया। सीता ने अपने ससुर शिबू सोरेन को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि पिछले 15 सालों से उन्हें और उनके परिवार को पार्टी में उपेक्षा का सामना करना पड़ा।
भाजपा ने दुमका लोकसभा सीट से अपने सिटिंग सांसद सुनील सोरेन का टिकट काटकर सीता को मैदान में उतारा। पार्टी को उम्मीद थी कि शिबू सोरेन के परिवार से आने वाली सीता आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में कर लेंगी। हालांकि, दुमका में झामुमो के नलिन सोरेन ने उन्हें कड़े मुकाबले में हरा दिया।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद सीता ने पार्टी के भीतर ही कुछ नेताओं पर भितरघात का आरोप लगाया। उन्होंने पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व मंत्री लुईस मरांडी और सारठ विधायक रणधीर सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि इन नेताओं ने पर्दे के पीछे से झामुमो को जिताने के लिए काम किया। इसके बावजूद विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सीता को जामताड़ा से टिकट दिया, लेकिन वहां भी उन्हें कांग्रेस के इरफान अंसारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
झामुमो में उनकी वापसी की अटकलें भी चलीं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने इस पर कोई उत्साह नहीं दिखाया। सीता की सियासी जमीन कमजोर होने और पार्टी में उनकी अनदेखी ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया। हाल ही में, सीता ने सीबीआइ की विशेष अदालत से पासपोर्ट रिलीज करने की गुहार लगाई हैं, जो कानूनी मसलों में उनके उलझने की ओर इशारा करता है।
गीता कोड़ा: हार के बावजूद प्रवक्ता की भूमिका
भ्रष्टाचार को लेकर विवादों में रहे पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सिंहभूम से कांग्रेस सांसद थीं। उन्होंने भी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थामा। भाजपा ने उन्हें सिंहभूम से टिकट दिया। हालांकि, वह झामुमो की जोबा माझी से हार गईं।
लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद, भाजपा ने गीता को पार्टी की कोर कमेटियों में अहम जिम्मेदारियां दीं। उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र बनाने वाली कमेटी, राज्य सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने वाली कमेटी और अभिनंदन व विजय संकल्प सभाओं की कमेटी में शामिल किया गया। हाल ही में, गीता को पार्टी का प्रवक्ता नियुक्त किया गया, जो उनकी सियासी प्रासंगिकता को दर्शाता है।
चंपई सोरेन: आदिवासी वोटों के लिए भाजपा की बड़ी उम्मीद
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के दिग्गज नेता रहे चंपई सोरेन ने भी 2024 में पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। कोल्हान क्षेत्र में टाइगर के नाम से मशहूर चंपई के भाजपाई होने का यह कदम झामुमो के लिए बड़ा झटका था। भाजपा ने उन्हें सरायकेला से विधानसभा चुनाव में उतारा, जहां से वह लगातार सात बार विधायक रहे हैं।
चंपई के आने से भाजपा को कोल्हान की 14 विधानसभा सीटों पर मजबूती की उम्मीद है, जहां आदिवासी वोटरों की अच्छी-खासी तादाद है। हालांकि वे इसमें सफल नहीं रहे। चंपई के पुत्र भी घाटशिला सुरक्षित सीट से चुनाव हार गए।
अब भाजपा आलाकमान ने चंपई को आदिवासी मुद्दों को उठाने के लिए फ्री हैंड दिया है। वह लगातार आदिवासी अस्मिता, बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे भाजपा के कोर मुद्दों पर सक्रिय हैं।
पार्टी को उम्मीद है कि चंपई का प्रभाव कोल्हान और संताल परगना में आदिवासी वोटों को भाजपा की ओर खींच सकता है, जहां 2019 में पार्टी को करारी हार मिली थी।
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