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    Jharkhand Politics: झारखंड में आदिवासियों की मिनी असेंबली पर तकरार

    By Sanjay KumarEdited By:
    Updated: Tue, 07 Dec 2021 02:51 PM (IST)

    Jharkhand Politics झारखंड में आदिवासियों(Tribals in Jharkhand) की मिनी असेंबली कही जाने वाली ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल(Tribal Advisory Council) (टीएसी) ...और पढ़ें

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    Jharkhand Politics: झारखंड में आदिवासियों की मिनी असेंबली पर तकरार

    रांची(प्रदीप सिंह)। Jharkhand Politics: झारखंड में आदिवासियों(Tribals in Jharkhand) की मिनी असेंबली कही जाने वाली ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल(Tribal Advisory Council) (टीएसी) का विवाद एक दफा फिर सतह पर है। पहले राज्य सरकार राजभवन की अनुशंसा से टीएसी के गठन की अधिसूचना जारी करती थी, लेकिन पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू(Draupadi Murmu) ने जब दो बार अनुशंसा की फाइल लौटाई तो झारखंड सरकार(Jharkhand Government) ने नियम में संशोधन किया। इसमें मुख्यमंत्री को एडवाइजरी कौंसिल(Advisory Council) गठित करने का अधिकार दे दिया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री के आदेश पर कौंसिल गठित कर दी गई।

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    नए राज्यपाल रमेश बैस(Ramesh Bais) ने जब कार्यभार संभाला तो उन्हें यह विवाद विरासत में मिला। उन्होंने भी नई नियमावली से जुड़ी फाइल कल्याण विभाग से तलब की। उधर लोकसभा में यह मामला गोड्डा के सांसद निशिकांत दूबे ने उठाया तो इसके जवाब में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा(Arjun Munda) ने कहा कि उनके मंत्रालय को भी इस संबंध में जानकारी मिली है। केंद्रीय मंत्री ने बगैर राजभवन की अनुशंसा के ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल के गठन को गलत बताया है।

    केंद्रीय विधि मंत्रालय(Union Law Ministry) ने भी इसमें परामर्श देते हुे कहा है कि गर्वनर की अनुमति के बाद ही ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल के सदस्यों की अधिसूचना निकाली जा सकती है। मंत्रालय का यह भी मत है कि इसमें राज्यपाल के अधिकारों को नजरंदाज किया गया है। केंद्र की इस पहल से झारखंड में राजनीतिक तकरार पैदा हो सकता है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पूर्ववर्ती राज्यपाल पर इसे लेकर निशाना भी साधा था। अब नए सिरे से पूरे मामले पर विवाद खड़ा होने के बाद इसे तूल मिलने की संभावना है।

    क्या करती है ट्राइबल एडवाजरी कौंसिल:

    ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल आदिवासियों के हित, सामाजिक और आर्थिक उत्थान से लेकर आदिवासी बहुल इलाकों में चलाए जाने वाले योजनाओं की प्राथमिकता तय करती है। कौंसिल की पिछली बैठक में आदिवासी जमीन पर कब्जे को लेकर एक उपसमिति गठित की गई। इसके अलावा आदिवासियों को जमीन गिरवी रखने के बावजूद बैंकों द्वारा लोन नहीं देने के मसले पर भी चर्चा हुई। निर्देश दिया गया कि सदस्यों की उपसमिति के अलावा वित्त विभाग के अधिकारी इसमें हस्तक्षेप करें और बैंक के अधिकारियों संग समन्वय स्थापित करें। आदिवासियों की जमीन को लेकर बनाए गए सीएनटी और एसपीटी एक्ट के उल्लंघन समेत अन्य विषय भी बैठक में प्रमुखता से उठाए गए। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कौंसिल के अध्यक्ष है।

    कौन-कौन है ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल में:

    झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कौंसिल के अध्यक्ष और अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग (अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को छोड़कर) के मंत्री चंपाई सोरेन कौंसिल के उपाध्यक्ष हैं। 15 विधायकों को कौंसिल का सदस्य बनाया गया है और दो मनोनीत सदस्य नियुक्त किए गए हैं। सदस्यों में विधायक प्रो. स्टीफन मरांडी, नीलकंठ सिंह मुंडा, बाबूलाल मरांडी, बंधु तिर्की, सीता सोरेन, दीपक बिरूआ, चमरा लिंडा, कोचे मुंडा, भूषण तिर्की, सुखराम उरांव, दशरथ गगराई, विकास कुमार मुंडा, नमन विक्सल कोनगाड़ी, राजेश कच्छप और सोनाराम सिंकू शामिल हैं। अनुसूचित जनजाति से मनोनीत सदस्यों में बोड़ाम, पटमदा, पूर्वी सिंहभूम जिले के विश्वनाथ सिंह सरदार और चिलदाग ग्राम, अनगड़ा, रांची जिले के जमल मुंडा शामिल हैं।

    भाजपा कर रही विरोध, झामुमो ने बताया सही:

    भाजपा ने कौंसिल के गठन का आरंभ से विरोध किया। कौंसिल में शामिल भाजपा के विधायकों ने इसकी बैठकों से भी दूरी बनाई है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का कहना है कि यह असंवैधानिक तरीके से गठित कौंसिल है। उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि कौंसिल का गठन विधिसम्मत तरीके से किया गया है। राज्यपाल को कौंसिल के गठन में नजरंदाज करने का आरोप गलत है। मोर्चा ने छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यकाल में लिए गए निर्णय का भी हवाला दिया है। जिसमें उन्होंने अपने स्तर से ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल का गठन किया था।