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    Jharkhand Politics: आदिवासी वोटों में सेंधमारी नहीं कर पाए चम्पाई, उनके राजनीतिक करियर पर पड़ेगा असर

    By Pradeep Singh Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Tue, 18 Nov 2025 09:14 PM (IST)

    भाजपा ने चम्पाई सोरेन को झामुमो से आदिवासी वोट पाने के लिए शामिल किया, पर वे सफल नहीं हुए। झामुमो ने 2024 में 27 आदिवासी सीटें जीतीं। घाटशिला उपचुनाव में भी भाजपा हार गई। झामुमो प्रवक्ता ने इसे चम्पाई की राजनीतिक आत्महत्या कहा, पर चम्पाई आदिवासी मुद्दों पर लड़ाई जारी रखने की बात कर रहे हैं।

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    आदिवासी वोटों में सेंधमारी नहीं कर पाए चंपाई सोरेन।

    राज्य ब्यूरो, रांची । कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की अग्रणी कतार के नेताओं शामिल रहे पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन को इस उद्देश्य से भाजपा ने दल में सम्मिलित कराया था कि वे अपने प्रभाव का उपयोग कर आदिवासी वोटों में सेंधमारी कर पाएंगे।

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    इससे झामुमो को झटका मिलेगा, लेकिन एक वर्ष के अंतराल में वे अपनी खास उपयोगिता सिद्ध नहीं कर पाए। मोर्चा के आधार वोट में कोई सेंधमारी नहीं हुई और यह निरंतर मजबूत हुआ। पार्टी ने पहले की अपेक्षा शानदार प्रदर्शन करते हुए गठबंधन दलों के साथ एक छोड़ 2024 के विधानसभा चुनाव में 28 में से 27 आदिवासी सुरक्षित सीट झटक लिए।

    हाल ही में संपन्न घाटशिला सुरक्षित सीट पर उपचुनाव में दोबारा चम्पाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भाजपा ने टिकट इस आस में दिया था कि चम्पाई के आभामंडल का लाभ उठाकर यह सीट झामुमो के कब्जे से निकाल पाएंगे, लेकिन पुत्र का राजनीतिक करियर आरंभ करने में चम्पाई सोरेन को असफलता हाथ लगी।

    सितंबर 2024 में चम्पाई सोरेन ने झामुमो छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। यह कदम भाजपा की लंबी रणनीति का हिस्सा था, जिसका मकसद झारखंड के आदिवासी वोटों को अपने पाले में लाना था।

    चम्पाई को उनकी झामुमो में लंबी पारी और आदिवासी नेतृत्व की छवि के कारण भाजपा ने महत्वपूर्ण माना था। भाजपा को अपेक्षा थी कि वे संताल और कोल्हान क्षेत्र में झामुमो के वोटों को तोड़ सकेंगे। इस अपेक्षा को वे पूरा नहीं कर पाए।

    चुनावी मैदान में चित

    चम्पाई सोरेन की भाजपा में एंट्री के बावजूद भाजपा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पिछड़ गई। चम्पाई सिर्फ अपनी सरायकेला सीट बचा पाए। घाटशिला उपचुनाव के हालिया परिणाम ने चम्पाई सोरेन की राजनीतिक विरासत पर भी संशय लगाया है। यह हार चम्पाई के लिए भी व्यक्तिगत झटका थी।

    पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गजों ने यहां उनके पुत्र के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने चम्पाई के भाजपा में जाने को राजनीतिक आत्महत्या तक करार दिया है। चम्पाई के जाने के बावजूद झामुमो ने आदिवासी सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत की और चम्पाई के जाने का कोई असर नहीं पड़ा।

    चम्पाई सोरेन अभी भी आदिवासी मुद्दों जैसे भूमि अधिकार, जनसांख्यिकी बदलाव के दावों पर मुखर हैं। घाटशिला उपचुनाव में हार के बाद भी उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई जनजातीय समाज की रक्षा के लिए जारी रहेगी।