Jharkhand News: साहबों में सिर-फुटव्वल... सत्ता के गलियारे में आए चार दर्जन नए खिलाड़ियों में गुत्थमगुत्थी
Jharkhand News झारखंड में एक साथ चार दर्जन नए खिलाड़ी प्रमोशन पाकर सत्ता के गलियारे में आए हैं। नई भूमिका तलाशने वाले ये साहब एक-दूसरे से आगे बढ़ने की चाहत में अपने लिए नई फिल्डिंग सजा रहे हैं। आप भी जानिए सत्ता के गलियारे की बातें कही-अनकही...

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand News झारखंड में पिछले दो महीनों से सियासी उलटफेर की संभावनाएं बनी हुई हैं। लेकिन हेमंत सोरेन की सदस्यता रद किए जाने के मामले में राज्यपाल रमेश बैस अपना पत्ता नहीं खोल रहे। ऐसे में सरकारी कामकाज भी अटक-लटक कर चल रहा है। झारखंड की ब्यूरोक्रैसी भी आने वाले फैसले को लेकर चौकन्ना है। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़े इस मामले में आरोप है कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने नाम पर खान आवंटित कराया। इस बीच राज्यपाल पर हेमंत सोरेन और झामुमो के लगातार दबाव बनाए जाने के बाद अब गवर्नर ने एक बार फिर से भारत निर्वाचन आयोग से मंतव्य मांगा है। आशीष झा के साथ यहां पढ़ें राज्य ब्यूरो का साप्ताहिक कॉलम कही-अनकही...
नीम चढ़ा करैला
जब दो बड़े लड़ रहे हों तो छोटों का पिटना तय है। इसमें कोई नई बात भी नहीं है और कुछ अनहोनी जैसा मामला भी नहीं। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ नियमित होने की उम्मीद लगाए कर्मचारियों के साथ। दरअसल, पैसे वाले विभाग ने आगे बढ़कर सभी पुराने मामलों पर एक साथ निर्णय ले लिया लेकिन कार्मिक को यह चाल पसंद नहीं आई। लगा दिया अड़चन, कर दिया विरोध और अटक गया मामला। कैबिनेट की बैठक के दिन अचानक से उम्मीदों पर कुठाराघात हुआ। पता चला कि रोस्टर में कुछ गड़बड़ी हुई है। अब दो वर्षों से जो विभाग कुछ नहीं कर पा रहा था वह कैसे बर्दाश्त करता कि एक झटके में कोई काम पूरा करा ले जा रहा है सो लगा दी अड़चन। ऐसे भी कार्मिक विभाग में कई ऐसे लोग हैं जिनके अंदर का तीतापन सभी को खलता है, नीम चढ़े करैले की तरह।
सत्ता के गलियारे में एक साथ चार दर्जन नए खिलाड़ी आए हैं और वो भी प्रमोशन पाकर। नई भूमिका में सभी नए इलाकों में जाकर नई फिल्डिंग सजाना चाह रहे हैं और इसके लिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने की चाहत में जुट भी गए हैं। कई लोगों ने अपनी पसंद की जगहों के लिए तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। जिलाें की कमान पाने की चाहत तो सभी की है लेकिन यह मिलना अभी संभव नहीं है। ऐसे में अगल-बगल के बेहतर ठिकानों पर भी नजर गड़ाए हुए हैं। हर कोई नए बंगले की तलाश में है और ऐसे में पता नहीं किसकी नजर किस बंगले पर जा टिके। कुछ को तो अपनी पसंद के ठिकानों पर पहुंचने के रास्तों की ऐसी बादशाहत है कि जब चाहें मंजिल पा लें या फिर यूं कहें कि मंजिल को अपने पास बुला लें।
हाथ वाली पार्टी में बड़े सूरमाओं की वापसी तो हुई लेकिन उनको अभी कोई काम नहीं दिया गया है। जो पहले तेजतर्रार होने के कारण अपनी अलग पहचान बनाए हुए थे, उन्हें ही शांत करा दिया गया है। चुप्पी साधने की हुनर सीखने की सलाह दे दी गई है। इनकी धीमी रफ्तार ना सिर्फ अपनों को बल्कि दूसरों को भी खल रही है। अभी-अभी दूसरे दलों से लौटे इन नेताओं को दूसरी ओर से भी इशारे मिलने लगे हैं। आखिर चुप्पी साध कर ही रहना है तो हमारे यहां क्या खराबी थी। हाथ वाली पार्टी में ऐसे भी बातें किसी से छिपती नहीं। चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। पुराने मठाधीश आखिर करें भी तो क्या, पार्टी बदला, पाला बदला लेकिन भाग्य नहीं बदल पाए। अब इस स्थिति से पार पाने के लिए वे धीमी रफ्तार का ही फार्मूला अपनाए हैं।
किताब-कापी वाले विभाग के नए साहब ने कुछ लोगों की चिंता बढ़ा दी है। जब से यह तेजी से वायरल हुआ कि साहब औचक निरीक्षण करते हैं, तब से उनकी परेशानी अधिक बढ़ गई है। पहले क्या ठाठ से नौकरी हो रही थी। यदा-कदा निरीक्षण के नाम पर किसी स्कूल में जाकर आधा-एक घंटा बिता दिए। निरीक्षण उन्हें करना था लेकिन अब उनका ही निरीक्षण हो रहा है। अब डर सता रहा है कि स्कूल में कमियां मिलीं तो जवाब-तलब उनसे ही होगा। इसकी शुरुआत भी हो गई है। इस डर से साहब के आफिस में संपर्क बढ़ाया जा रहा है कि साहब के पहुंचने से पहले ही उनके पास सूचना पहुंच जाए ताकि चीजों को दुरुस्त करवाया जा सके। परेशानी तो उनकी भी बढ़ी है जो स्कूलाें में पूरी तरह 'सरकारी' व्यवस्था बनाए हुए थे। पता नहीं कब साहब का आना हो जाए।
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