Jharkhand News: झारखंड से आई राहत की खबर, नवजातों को जान का जोखिम कम; 30 से घटकर 27 हुई शिशु मृत्यु दर
Jharkhand News झारखंड से राहत की खबर है। यहां शिशु मृत्यु दर 30 से घटकर अब 27 हो गई है। हालांकि देश में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार जन्म पर 30 है। झारखंड के लिए चिंता की बात यह है कि यहां शहरों में शिशुओं की मौत अधिक होती है।

रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। झारखंड के नौनिहाल तंदुरुस्त हुए हैं। राज्य में पिछले साल शिशुओं (शून्य से एक वर्ष) की जन्म से एक साल के भीतर होनेवाली मौत की दर बढ़ गई थी। राहत की बात यह है कि अब इसमें हालात सुधरे हैं। अब राज्य में शिशु मृत्यु दर घटकर 30 से 27 हो गई है। इस मामले में झारखंड की स्थिति बेहतर है, क्योंकि अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 30 है। देश में पिछले साल यह दर 32 थी। रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया द्वारा पिछले दिनों जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की रिपोर्ट में यह बातें सामने आई हैं।
पिछले साल मई माह में जारी एसआरएस रिपोर्ट में झारखंड में शिशु मृत्यु दर 29 से बढ़कर 30 हो गई थी। वर्ष 2018 में हुई शिशुओं की मौत के आधार पर जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, एक हजार जीवित जन्म पर 30 शिशुओं की मौत एक साल के भीतर हो गई थी। वर्ष 2019 में हुई मौत के आधार पर पिछले दिनों जारी एसआरएस की रिपोर्ट के अनुसार, अब राज्य में यह दर 30 से घटकर 27 हो गई है।
अभी भी राज्य में 27 बच्चों की मौत जन्म के एक साल के भीतर हो रही है। राहत की बात यह है कि शिशु मृत्यु दर के मामले में झारखंड पश्चिमी बंगाल को छोड़कर अन्य सभी पड़ोसी राज्यों से बेहतर स्थिति में है। उन जिलों में शिशु मृत्यु दर झारखंड की दर से अधिक है। देश के विभिन्न राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो यह दर सबसे अधिक मध्य प्रदेश में है जहां अभी भी एक हजार जन्म पर 46 शिशुओं की मौत पहले साल हो जाती है। दूसरी तरफ, मिजोरम और नगालैंड में यह दर महज तीन है।
बता दें कि झारखंड सहित पूरे देश में शिशु मृत्यु दर (एक हजार जन्म पर शिशुओं की एक साल के भीतर होनेवाली मौत) लगातार घट रही है। लेकिन झारखंड में दो वर्षों तक जहां यह दर स्थिर बनी हुई थी, वहीं पिछले वर्ष यह दर बढ़ गई थी। पिछले वर्ष ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में यह दर बढ़ी थी। साथ ही मेल व फीमेल दोनों शिशुओं में यह दर बढ़ी थी। इस साल मेल शिशुओं की मौत की दर 25 तथा फीमेल शिशुओं की यह दर घटकर 29 हो गई है। राज्य में शिशु मृत्यु दर कम होने के प्रमुख कारकों में संस्थागत प्रसव और टीकाकरण में सुधार माना जा सकता है।
झारखंड के शहरी क्षेत्र में मृत्यु दर राष्ट्रीय दर से अधिक
वैसे तो झारखंड में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय दर से कम है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में इससे उलट स्थिति है। झारखंड के शहरी क्षेत्रों में एक हजार में 23 शिशुओं की मौत जन्म के पहले साल हो जाती है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर महज 20 है। पिछले साल भी झारखंड के शहरी क्षेत्र में यह दर 26 थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 23 थी। झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर पिछले साल 30 से बढ़कर 31 हो गई थी, लेकिन इस साल यह दर घटकर 28 हो गई है।
राज्य/देश कुल ग्रामीण शहरी
- भारत 30 34 20
- झारखंड 27 28 23
- बिहार 29 29 27
- छत्तीसगढ़ : 40 41 34
- उत्तर प्रदेश 41 44 31
- ओडिशा 38 39 30
- पश्चिमी बंगाल 20 21 18
झारखंड में कब कितनी शिशु मृत्यु दर
वर्ष शिशु मृत्यु दर
- 2016 32
- 2017 29
- 2019 29
- 2020 30
- 2021 27
शिशु मृत्यु दर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता मापने के लिए महत्वपूर्ण सूचकांक मानी जाती है। इस दर से पता चलता है कि किसी राज्य या देश में संस्थागत प्रसव, टीकाकरण आदि की स्थिति कैसी है। सरकारों द्वारा संचालित की जानेवाली स्वास्थ्य योजनाओं की अंतिम व्यक्ति तक पहुंच का आकलन भी इस दर से होता है। सरकारें इस दर को आधार बनाकर भविष्य की योजनाएं भी तय करती हैं। झारखंड के लिए राहत की बात यह है कि पिछले एक दशक में इस दर में लगातार कमी आई है।
सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले साल यह दर आंशिक रूप से बढ़ गई थी, लेकिन इस वर्ष इसमें कमी आई है। झारखंड में शिशु मृत्यु दर 30 से घटकर 27 हो गई है। इसका मतलब यह हुआ कि यहां अभी भी एक हजार शिशुओं के जनम पर 27 बच्चों की मौत एक साल के भीतर हो जाती है। इतने बच्चे अपना पहला जन्म दिन नहीं मना पाते। भले ही इस मामले में झारखंड की स्थिति अपने अधिसंख्य पड़ाेसी राज्यों से बेहतर है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कई राज्यों में यह दर काफी कम है। मिजोरम और नगालैंड में तो यह दर महज तीन है।
झारखंड में भी इस दर में व्यापक कमी लाने की दिशा में सभी को प्रयास करने की जरूरत है। इसके लिए संस्थागत प्रसव, टीकाकरण आदि में और सुधार लाना होगा। राज्य में संस्थागत प्रसव की स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद महिलाओं की होनेवाली जांच में भी सुधार पर जोर देने की आवश्यकता है। राज्य में अभी भी जिला अस्पतालों व अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में आपरेशन से प्रसव तथा शिशुओं के इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
राज्य के सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की भी भारी कमी है। राज्य के नौनिहाल स्वस्थ और तंदुरुस्त रहें, इसके लिए इन कमियों को शीघ्र दूर करने की आवश्यकता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उम्मीद है कि राज्य सरकार इन सभी बिंदुओं पर विचार करते हुए इसमें सुधार लाने का प्रयास करेगी। राज्य के नन्हे-मुन्हे स्वस्थ होंगे। यह जरूरी भी, क्योंकि वे राज्य और देश के भविष्य हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।