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    Marry Christmas 2022: एक ऐसा चर्च जो क्रिसमस मनाने का करता है विरोध, 25 दिसंबर को नहीं मानता ईसा का जन्मदिन

    By Jagran NewsEdited By: Mohit Tripathi
    Updated: Sat, 24 Dec 2022 08:41 PM (IST)

    ईसाइयों के साथ दूसरे धर्मों के लोग भी क्रिसमस और न्युईयर का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं लेकिन झारखंड में ऐसा चर्च भी है जो क्रिसमस का विरोध करता है। चर्च का मानना है कि भगवान ईशू का जन्म कब हुआ था इसकी कोई चर्चा बाईबिल में नहीं है।

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    झारखंड में एक ऐसा चर्च भी है जो क्रिसमस का विरोध करता है। (प्रतीकात्मक फोटो)

    रांची, नीलमणि चौधरी: क्रिसमस की तैयारी जोरों पर है। ईसाई के साथ गैर ईसाई भी इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वहीं झारखंड की राजधानी में एक चर्च ऐसा भी है, जहां क्रिसमस नहीं मनाया जाता है। सेवेंथ डे एडवेंस्टि नामक इस चर्च के अनुयायी यह मानते हैं कि बाइबिल में ईसा मसीह के जन्म की ताऱीख नहीं दी गई है, इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से क्रिसमस के अवसर पर चर्च में विशेष प्रार्थना या समारोह का आयोजन करना कहीं से उचित नहीं है।

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    वेंथ डे एडटवेंस्टि चर्च क्यों नहीं मनाता क्रिसमस

    सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट चर्च की पश्चिमी झारखंड इकाई के अध्यक्ष पास्टर सुजल किस्कू कहते हैं कि क्रिसमस पर विशेष प्रार्थना करना इतिहास के किसी राजवंश की कहानी को ईसाइयत के आध्यात्मिक आदर्शों पर थोपना है। इसलिए सेवेंथ डे एडटवेंस्टि चर्च ईसा का जन्मोत्सव मनाने से परहेज करता है।

    पास्टर सुजल कहते हैं कि ईसा मसीह की जीवनी न्यू टेस्टामेंट में मार्क्स, मैथ्यू, ल्यूक और जॉन द्वारा लिखित सुसमाचारों में है। इनमें से किसी ने ईसा के जन्म की तारीख नहीं बताई है। न्यू टेस्टामेंट में ईसा के बाद के कई सौ साल बाद तक ईसाइयत के प्रचार का उल्लेख मिलता है। इनमें से कहीं भी क्रिसमस मनाने की चर्चा नहीं है। इसलिए किसी खास दिन उनकी विशेष प्रार्थना के बजाय हर दिन होनी चाहिए।

    ऐसे मनाने लगे क्रिसमस

    पास्टर सुजल किस्कू दावा करते हैं कि इतिहास में वर्णित एक प्रमुख तारीख को ईसा के जन्म दिवस के रूप में आरोपित किया गया है। पास्टर के अनुसार, बेबीलोन के इतिहास और दंतकथाओं में निमरोद नामक एक राजा था। उसके दरबारियों ने उसके बेटे मितरस को चमत्कारी कहना शुरू कर दिया। मितरस का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। जनता को मितरस का जन्म दिन मनाने और उसकी पूजा के लिए बाध्य किया गया। सालों-साल की यह परंपरा ईसाइयत ग्रहण करने के बाद भी बरकरार रही।

    बेबीलोन से यह रोम पहुंचा। रोमन सम्राट कांटेस्टाइन के इसाई धर्म को राजधर्म घोषित करने के बाद 25 दिसंबर को ईसा का जन्म दिन क्रिसमस के रूप में मनाया जाने लगा। वहीं निमरोद की पत्नी और बेटे की मूर्ति को लोग मदर मेरी और जीसस की मूर्ति मानकर घरों और सार्वजनिक जगहों पर स्थापित करने लगे।

    इस तरह 25 दिसंबर ईसा मसीह के जन्मोत्सव और फिर सांताक्लाज के उपहार और ऐसी ही कई चीजों के साथ मिलकर ईसाई धर्म के सबसे बड़े धार्मिक त्योहार का रूप ग्रहण करता चला गया। पश्चिमी देशों के उपनिवेश रहे इलाकों में गैर ईसाई भी जोर-शोर से इसे मनाने लगे।

    क्या कहते हैं एनडब्लू जीईएल चर्च के आर्च बिशप

    नार्थ-वेस्टर्न जीईएल चर्च के आर्च बिशप राजीव सतीश टोप्पो ने ईशू के जन्मदिन पर कहा कि हमारे विद्वान पूर्वजों के द्वारा 25 दिसंबर को भगवान यीशु मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने की परंपरा आरंभ की गई है। यह दिन विश्वासियों के लिए पवित्र दिन है। विश्वासी इस दिन को क्रिसमस डे के रूप में मनाते हैं। धार्मिक परंपरा पर किसी प्रकार की टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।

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