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    ओबीसी आरक्षण: हेमंत सरकार ने विपक्ष से छीना बड़ा मुद्दा, निकाय चुनाव में बदले समीकरण

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 08:02 PM (IST)

    झारखंड सरकार ने नगर निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग के लिए 14% आरक्षण को मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में हुए इस फैसले से भाजपा और आजसू जैसे विपक्षी दलों को झटका लगा है, जो ओबीसी आरक्षण को मुद्दा बना रहे थे। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट मानदंडों को पूरा करते हुए यह निर्णय लिया, जिससे चुनावी समीकरण बदलने की संभावना है और पिछड़े वर्ग का समर्थन सत्ताधारी गठबंधन को मिल सकता है।

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    झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन।

    राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में नगर निकाय चुनावों को लेकर राजनीतिक हलचल जल्द तेज होगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को अंतिम रूप दे दिया है। इसकी मंत्रिपरिषद से मंजूरी मिल चुकी है।

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    यह फैसला विपक्षी दलों, खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आजसू पार्टी के लिए बड़ा राजनीतिक झटका साबित हो रहा है। लंबे समय से भाजपा और आजसू ओबीसी आरक्षण की मांग को मुद्दा बनाकर सरकार पर दबाव बना रही थीं, लेकिन अब यह हथियार उनके हाथ से छिन गया है।

    सरकार के इस कदम से चुनावी समीकरण बदल सकते हैं और पिछड़े वर्ग का वोट बैंक सीधे सत्ताधारी गठबंधन की ओर झुक सकता है।

    ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी कर सरकार ने दिखाई सक्रियता

    आरक्षण लागू करने की राह में सबसे बड़ी बाधा सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट मानदंड थे। इनमें जनसंख्या सर्वे, पिछड़ेपन का वैज्ञानिक आकलन और स्थानीय निकायों में प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना शामिल है। हेमंत सरकार ने इन सभी मानदंडों को समयबद्ध तरीके से पूरा किया।

    राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने विस्तृत सर्वेक्षण किया, जिसमें ओबीसी समुदाय की जनसंख्या अनुपात, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और निकायों में उनकी भागीदारी का गहन विश्लेषण शामिल था। रिपोर्ट के आधार पर 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव तैयार किया गया, जो कुल आबादी के अनुपात में उचित माना गया।

    इस प्रक्रिया में सरकार की सक्रियता रही। जहां विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा था कि सरकार जानबूझकर देरी कर रही है, वहीं अधिकारियों ने आवश्यक दस्तावेज तैयार किए। हाई कोर्ट में दाखिल याचिकाओं का सामना किया गया और कानूनी अड़चनें दूर हुईं।

    विपक्ष की रणनीति पर पानी फेरा, नया मुद्दा तलाशने की मजबूरी

    भाजपा और आजसू ने ओबीसी आरक्षण को अपना प्रमुख हथियार बनाया था। इसे लेकर वे लगातार सरकार पर हमला बोलते पिछड़ों के हितों की अनदेखी का दावा करते थे, लेकिन सरकार के फैसले ने इन दलों से बड़ा मुद्दा छीन लिया। नि

    काय चुनावों में वार्ड स्तर पर आरक्षण से इन समुदायों को सीधा लाभ मिलेगा, और महत्वपूर्ण पदों पर उनकी भागीदारी बढ़ेगी। इससे जमीनी स्तर पर सरकार का प्रभाव मजबूत होगा।