Bihar Politics: बिहार में अनदेखी से हेमंत नाराज, अकेले चुनाव में उतरने की तैयारी; 12 सीटों पर नजर
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले उतरेगा। आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल न होने पर पार्टी ने बिहार की 12 सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है। झामुमो आदिवासी क्षेत्रों में अपनी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं को आकर्षित करने की योजना बना रहा है। इस कदम से गठबंधन में दरार की आशंका है लेकिन झामुमो के लिए बिहार में राजनीतिक जमीन तैयार करने का अवसर है।

राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बिहार विधानसभा के आगामी चुनाव को लेकर स्वतंत्र रूप से तैयारी में जुट गई है। आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल होने की उम्मीद के बावजूद पटना में गठबंधन की हुई पिछली चार बैठकों में झामुमो को आमंत्रित नहीं किया गया, जिससे पार्टी में नाराजगी स्वाभाविक है।
इस कारण गठबंधन के साथ तालमेल की संभावना कमजोर पड़ती दिख रही है। झामुमो ने अब झारखंड से सटी बिहार की 12 विधानसभा सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
झामुमो को उम्मीद थी कि वह बिहार में गठबंधन का हिस्सा होगा, खासकर तब जब झारखंड में उसने गठबंधन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 56 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था, जिसमें झामुमो ने अकेले 34 सीटें हासिल कीं।
बिहार में गठबंधन की बैठकों से न्योता न मिलने पर झामुमो के महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने कहा कि हमारी अपनी तैयारी है। हम अपने दम पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं।
12 सीटों पर नजर, आदिवासी और सीमावर्ती क्षेत्रों पर फोकस
झामुमो ने बिहार में झारखंड से सटी 12 विधानसभा सीटों को चिह्नित किया है, जहां उसका प्रभाव है। इन इलाकों में आदिवासी समुदायों की अच्छी-खासी आबादी है। पार्टी का मानना है कि इन क्षेत्रों में उसकी आदिवासी हितों की नीतियां और झारखंड में किए गए कार्य मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं।
झामुमो ने पहले ही इन सीटों पर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं। झामुमो अपनी कल्याणकारी योजनाओं, जैसे मंइयां सम्मान योजना को बिहार के मतदाताओं के बीच प्रचारित करने की योजना बना रहा है।
झामुमो की नाराजगी से आईएनडीआईए (गठबंधन) में दरार की आशंका बढ़ गई है। बिहार में राजद, कांग्रेस और वाम दल पहले से ही सीट बंटवारे पर मंथन कर रहे हैं, लेकिन झामुमो की अनदेखी से गठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं। यदि झामुमो स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ता है तो यह गठबंधन के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है। दूसरी ओर, झामुमो के लिए यह बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का मौका भी है।
आने वाले महीनों में झामुमो की रणनीति और बिहार में उसका प्रदर्शन क्षेत्रीय राजनीति की दिशा तय कर सकता है। फिलहाल, पार्टी अपने दम पर वहां मैदान में उतरने के लिए कमर कस रही है।
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