Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    चतरा और पलामू में वन भूमि पर आवंटित कर दिया पट्टा, राज्य में पत्थर और बालू के प्रबंधन में अनियमितता का खुलासा

    By Manoj Singh Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Thu, 11 Dec 2025 09:53 PM (IST)

    झारखंड के चतरा और पलामू में आठ वन भूमि पर पट्टे आवंटित किए गए हैं, जिससे राज्य में पत्थर और बालू के प्रबंधन में अनियमितता का खुलासा हुआ है। यह मामला भ ...और पढ़ें

    Hero Image

     महालेखाकार की रिपोर्ट में राज्य में पत्थर और बालू के प्रबंधन और आवंटन में अनियमितता का खुलासा हुआ है

    राज्य ब्यूरो, रांची । महालेखाकार की रिपोर्ट में राज्य में पत्थर और बालू के प्रबंधन और आवंटन में अनियमितता का खुलासा हुआ है। प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने गुरुवार को प्रेसवार्ता में लघु खनिजों के प्रबंधन की अनियमितता की जानकारी दी। कहा कि बालू घाटों के संचालन, पत्थर खदानों के पट्टों की स्वीकृति और नीलामी में भारी गड़बड़ियां हुईं, जिससे राजस्व का नुकसान हुआ है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    महालेखाकार की ओर से राज्य के साहिबगंज, पाकुड़, धनबाद, चतरा, पलामू और पश्चिमी सिंहभूम में पत्थर खनन और बालू खनन के आवंटन और प्रबंधन की जांच की गई। चतरा और पलामू में अंचल अधिकारी की रिपोर्ट पर जिला खनन पदाधिकारी (डीएमओ) ने आठ खनन पट्टा प्रदान कर दिया, जो जमीन वन भूमि की श्रेणी में आते हैं। जिसे खनन के लिए आवंटित नहीं किया जा सकता है।

    विभाग के पास खनन पट्टों के आवंटन के दौरान बकायेदारों की पहचान और भूमि उपयोग की प्रकृति का पता लगाने की कोई प्रणाली नहीं है। राज्य में अनियमित रूप से आवंटन, नवीकरण और विस्तार भी हुआ। जमीन की प्रकृति की जांच के लिए अंचलाधिकारी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। आवंटन के एक साल में खनन की प्रक्रिया शुरू कर देनी है।

    लेकिन वर्ष 2017-2023 तक 276.99 एकड़ खनिज क्षेत्र में खनन कार्य ही नहीं किया गया। इन पट्टों को न तो समाप्त किया गया और न ही निरस्त किया गया। इसके चलते राजस्व की हानि हुई।

    खनन की नीलामी प्रक्रिया बेहद धीमी रही और सिर्फ 3.77 प्रतिशत ब्लाकों की नीलामी हो सकी। वर्ष 2018-2023 के दौरान 292 ब्लाक में 11 की ही नीलामी हो सकी। वर्ष 2017-18 में राजस्व 1,082 करोड़ था जो 2021-22 में घटकर 697 करोड़ हो गया।

    साहिबगंज में अधिकार से बाहर जाकर पट्टा आवंटन

    महालेखाकर की रिपोर्ट में झारखंड के साहिबगंज, चतरा और पलामू जिलों में पट्टा आवंटन में गंभीर गड़बड़ियां उजागर हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि साहिबगंज में उपायुक्त ने अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक 4.74 हेक्टेयर भूमि पर पट्टा स्वीकृत कर दिया, जिसे ई-नीलामी के लिए जाना चाहिए था। इतना ही नहीं 4.74 हेक्टेयर जमीन को 2.8 हेक्टेयर कम दिखाकर खनन आवंटन दिया गया।

    नियमानुसार उपायुक्त को तीन हेक्टेयर से कम क्षेत्र वाले को खनन आवंटित करने का अधिकार है। चतरा और पलामू में तो वन भूमि को गैर-मजरुआ परती दिखाकर आठ पट्टे दे दिए गए। यह उल्लंघन सीधे तौर पर वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन है।

    बना रहे थे चिप्स, लेकिन रायल्टी बोल्डर पर दिया

    महालेखाकर की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में 95 प्रतिशत राजस्व पत्थर के खनन से आता है। इसमें भी कई गड़बड़िया उजागर हुई हैं। अगर कोई खनन कंपनी पत्थर से चिप्स बनाती है, तो उसकी रायल्टी राशि ज्यादा देनी पड़ती है, वहीं, बोल्डर पर कम रायल्टी देना होता है। कई कंपनियों ने इसका लाभ उठाया और दस्तावेज में बोल्डर दिखाकर चिप्स बनाकर बेच रहीं थी।

    जिससे राजस्व की हानि हुई। कई जगहों पर माइनिंग प्लान में खनन क्षेत्र का बाउंड्री नहीं दी गई है। जबकि वर्ष 2015 में सभी रिकार्ड को डिजिटलाइजेशन कराना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। झारखंड इंट्रीग्रेटेड माइंस एंड मिनरल्स मैनेजमेंट सिस्टम (जिम्स) पर इसकी जानकारी उपलब्ध करानी थी।

    वर्ष 2019 से वर्ष 2022 तक 30 मामलों में जिला खनन फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) की राशि में 7.53 करोड़ कम राशि और वर्ष 2016 से वर्ष 2022 तक 15 मामलों में 2.23 करोड़ नियम लगान की वसूली नहीं की गई।अप्रैल 2014 से जुला 2023 के बीच चार जिलों में 26 पट्टाधारियों ने निर्धारित सीमा से 33.21 लाख घन मीटर अधिक खनन किया। इसके एवज में सरकार को 205.21 करोड़ का अर्थदंड लगाया जाना था। डीएमओ कार्यालय ने इसके लिए कोई कार्रवाई नही की।