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    झारखंड में जमीन खरीदने जा रहे हैं? निबंधन अधिकारी से जानें वो जरूरी बातें जो आपको धोखाधड़ी और कानूनी विवाद से बचाएंगी

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 11:25 AM (IST)

    जमीन खरीदना जीवन की बड़ी जमा-पूंजी है, पर लापरवाही से कानूनी समस्या हो सकती है। रांची में जमीन विवाद बढ़ रहे हैं, इसलिए नियमों की जानकारी जरूरी है। नि ...और पढ़ें

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    जागरण के विशेष कार्यक्रम 'प्रश्न पहर' में रांची के अवर निबंधक विवेक कुमार पांडेय।

    स्मार्ट व्यू- पूरी खबर, कम शब्दों में

    जागरण संवाददाता, रांची। जमीन खरीदना किसी भी व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी जमा-पूंजी का निवेश होता है, लेकिन थोड़ी सी लापरवाही इस सपने को कानूनी दुस्वप्न में बदल सकती है। झारखंड, खासकर रांची में जमीन विवाद के बढ़ते मामलों को देखते हुए नियमों की सही जानकारी होना अनिवार्य है।

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    दैनिक जागरण के विशेष कार्यक्रम 'प्रश्न पहर' में रांची के अवर निबंधक विवेक कुमार पांडेय ने पाठकों के उन सवालों के जवाब दिए जो हर जमीन खरीदार के मन में होते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल म्यूटेशन करा लेना ही मालिकाना हक की गारंटी नहीं है।

    सादा पट्टा और एग्रीमेंट के झांसे में न आएं

    अक्सर लोग दलालों के चक्कर में आकर सादे पट्टे या केवल एग्रीमेंट पर जमीन का सौदा कर लेते हैं। विवेक कुमार पांडेय के अनुसार, सादा पट्टा कानूनी रूप से पूरी तरह अमान्य है और इसके आधार पर भविष्य में मालिकाना हक का कोई दावा नहीं किया जा सकता।

    इसी तरहकेवल एग्रीमेंट करना भी असुरक्षित है क्योंकि यह आपको कानूनी अधिकार नहीं देता और विक्रेता उसी जमीन को किसी और को भी बेच सकता है। जमीन के असली मालिक की पुष्टि हमेशा संबंधित अंचल कार्यालय के खतियान और रजिस्टर-2 से ही करनी चाहिए।

    अधिग्रहित भूमि की रजिस्ट्री का बड़ा जोखिम

    जमीन खरीदने से पहले सबसे महत्वपूर्ण जांच यह है कि कहीं वह सरकार द्वारा अधिग्रहित तो नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अनजाने में अधिग्रहित जमीन की रजिस्ट्री करा भी लेता है, तो वह कानूनन अमान्य होगी।

    ऐसी स्थिति में खरीदार को न तो भविष्य में कोई मुआवजा मिलेगा और न ही जमीन पर अधिकार। इसकी सटीक जानकारी जिला भू-अर्जन कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है। प्रतिबंधित सूची में दर्ज जमीनों की रजिस्ट्री पर पूरी तरह रोक होती है।

    सीएनटी एक्ट और म्यूटेशन का असली सच

    झारखंड में जमीन की प्रकृति को समझना बहुत जरूरी है। सीएनटी एक्ट के तहत एसटी (अनुसूचित जनजाति) की जमीन केवल उसी थाना क्षेत्र के दूसरे एसटी व्यक्ति को ही बेची जा सकती है। सामान्य वर्ग के लिए ऐसी जमीन खरीदना पूरी तरह प्रतिबंधित है।

    वहीं म्यूटेशन को लेकर उन्होंने एक बड़ा भ्रम दूर किया। म्यूटेशन केवल सरकारी रिकॉर्ड में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया है। असली स्वामित्व के लिए वैध रजिस्ट्री, पंजी-2 में अपडेटेड एंट्री और जमीन का अधिग्रहण मुक्त होना अनिवार्य शर्त है।

    दखल न मिलने पर क्या करें

    अगर किसी खरीदार के पास जमीन की वैध रजिस्ट्री और म्यूटेशन के कागजात हैं, लेकिन फिर भी उसे जमीन पर कब्जा (दखल) नहीं मिल रहा है, तो उसे तुरंत संबंधित थाने में शिकायत करनी चाहिए।

    कागजात सही होने पर पुलिस प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि वह खरीदार को जमीन पर कब्जा दिलाए। विक्रेता या दलाल की बातों पर आंख मूंदकर भरोसा करने के बजाय अंचल, भू-अर्जन और निबंधन कार्यालय से दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन जरूर कराएं।

    एसटी जमीन को किसे बेचा जा सकता है?

    सीएनटी एक्ट के अनुसार एसटी (अनुसूचित जनजाति) की जमीन केवल दूसरे एसटी को ही बेची जा सकती है। वह भी उसी थानाक्षेत्र के भीतर।

    एससी से एससी और ओबीसी से ओबीसी को जमीन तब ही एक-दूसरे को बेच सकते हैं जब वे एक ही जिले से हो। एसटी जमीन की बिक्री सामान्य वर्ग को पूरी तरह प्रतिबंधित है। 

    बिना रजिस्ट्री के केवल एग्रीमेंट पर जमीन खरीदना कितना सुरक्षित

    केवल एग्रीमेंट पर जमीन खरीदना असुरक्षित है। एग्रीमेंट मालिकाना हक नहीं देता। भविष्य में विक्रेता जमीन किसी और को बेच सकता है और खरीदार को कानूनी परेशानी उठानी पड़ सकती है। 

    पंजी-2 रजिस्ट्री कार्यालय का आधिकारिक रिकार्ड होता है, जिसमें जमीन की रजिस्ट्री का विवरण दर्ज किया जाता है। पंजी-2 में नाम दर्ज होना जमीन के वैध स्वामित्व के लिए आवश्यक माना जाता है।

    लोग अक्सर दलाल या विक्रेता की बातों पर भरोसा कर लेते हैं और सरकारी रिकार्ड की जांच नहीं करते। अंचल कार्यालय और निबंधन कार्यालय से पुष्टि किए बिना जमीन खरीदना सबसे बड़ी भूल होती है।