बंगाल ने रोका हाथियों का रास्ता, झारखंड में आफत; पढ़ें पशुओं की मानव से टकराहट की यह विशेष खबर
Animal Clash with Human Jharkhand News Bengal News मेदिनीपुर वन रेंज में जंगली हाथियों को घुसने से रोकने के लिए खोदे गए गड्ढे आफत बन गए हैं। कॉरिडोर प्रभावित होने से बौखलाए पशुओं की मानव से टकराहट बढ़ी है। खेतों व घरों पर हमले बढ़े हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। अर्जुन सोरेन ने कर्ज लेकर पांच बीघा जमीन पर लगी हरी सब्जी की खेती की। फसल तैयार हो जाती तो अच्छा मुनाफा होता। माथे से कर्ज का बोझ भी उतरता और घर-बाड़ी चलाने में मदद मिलती। लेकिन जंगली हाथियों के झुंड ने पूरी खेती को रौंदकर तहस-नहस कर दिया। गौरांग कर्मकार की भी पीड़ा यही है। हाथियों के झुंड ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया। अब माथे पर घर चलाने की चिंता और कर्ज उतारने का बोझ है।
बंगाल की सीमा से सटे झारखंड के घाटशिला के किसान जंगली हाथियों के उत्पात से ज्यादा परेशान हैं। घाटशिला के अलावा राज्य के 10 से अधिक जिलों में हाथी उत्पात मचा रहे हैं। झारखंड में हाथियों का आतंक बढ़ने की एक बड़ी वजह बंगाल है। दरअसल, बंगाल ने अपने इलाके में हाथियों के प्रवेश को बंद करने के लिए गड्ढे खोद दिए हैं। अपने प्राकृतिक गलियारे (एलिफैंट कारिडोर) से छेड़छाड़ के कारण जंगली हाथियों का गुस्सा किसानों पर उतरता है।
खासकर धान की उपज होते ही हाथियों के झुंड की दस्तक से किसानों की रात की नींद गायब हो जाती है। रात भर जागकर वे मेहनत से उपजाई धान की फसल की पहरेदारी करते हैं, फिर भी वे इसकी रक्षा नहीं कर पाते। काॅरिडोर में ट्रेंच काटना एक बात हुई, अगर किसी दूसरे रास्ते से हाथी झारखंड से बंगाल चला जाए तो मेदिनीपुर वन रेंज के कर्मचारी अपने इलाके से हाथियों को तत्काल खदेड़ कर झारखंड पहुंचा देते हैं।
बंगाल से सटे झारखंड का घाटशिला हाथियों का प्राकृतिक वन आश्रयणी (सेंचुरी) है, जो दलमा एलिफेंट काॅरिडोर से जुड़ा है। हाथियों का झुंड किसानों के खेतों में यहां अक्सर आतंक मचाता है। वन विभाग ने इससे निपटने की कोई तैयारी तो नहीं की है, बस किसानों को थोड़ा-बहुत मुआवजा बांट दिया जाता है। हर वित्तीय वर्ष लगभग 10 करोड़ रुपये इस मद में खर्च हो रहे हैं। बंगाल के ट्रेंच काटने से हाथियों की बौखलाहट बढ़ी है। उसकी एक बानगी है कि 2013-14 में जहां हाथियों ने 56 लोगों की जान ली, वहीं पिछले दो वर्षों में यह आंकड़ा क्रमश: 78 और 71 पर पहुंच गया है।
यानि मानव पर हाथियों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं। मानव का हाथियों के प्राकृतिक आश्रय स्थल के आसपास बढ़ता अतिक्रमण भी इन पशुओं को परेशान कर रहा है। बिहार से झारखंड के अलग होने के 20 वर्ष के भीतर 1400 से ज्यादा लोग मानव-हाथी संघर्ष में मारे गए हैं। वहीं 80 हाथी भी मारे गए हैं। एक आकलन के मुताबिक हर साल औसतन 70 से ज्यादा लोग हाथियों के हमले की भेंट चढ़ते हैं और लगभग 150 लोग घायल होते हैं। हाथियों के खानपान की आदत बदल रही है। अब खेतों से धान की फसल चट कर जाना उनके व्यवहार में शामिल हो रहा है।
खनन गतिविधियों से भी अनियंत्रित हो रहे जंगली हाथी
झारखंड और इसके आसपास के प्रदेशों में देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11 प्रतिशत है। हाथी के हमले के 45 प्रतिशत मामले ऐसे ही क्षेत्रों में हो रहे हैं। सिंहभूम के जंगल हाथियों के प्राकृतिक आवास के लिए काफी मशहूर थे, लेकिन पिछले 50 सालों में हाथियों की प्राकृतिक आश्रय स्थली को काफी क्षति पहुंची है। इसका मुख्य कारण खनन में बढ़ोतरी है। सड़क एवं रेलवे लाइन का विस्तार तथा हाथियों के कॉरिडोर में आबादी का बसना भी एक बड़ी वजह है। इससे हाथियों के आवागमन में समस्या आती है। जब जंगली हाथी झुंड में निकलते हैं तो मानव के साथ टकराव हो जाता है। ज्यादातर हाथियों की मौत गड्ढ़े में गिरने और आबादी वाले क्षेत्रों में बिजली का करंट लगने से हुई है।
झारखंड में बना रखा है नियंत्रण करने को टीम
हाथी-मानव संघर्ष को रोकने के लिए झारखंड सरकार के वन विभाग ने क्विक रिस्पांस टीम गठित की है। यह टीम लोगों को जागरूक करती है और वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीके से हाथियों को वापस जंगल की ओर भेजने का प्रयास करती है। हाथियों के झुंड की गतिविधियों की जानकारी मोबाइल संदेश और रेडियो संदेश के माध्यम से लोगों को दिया जाता है। आगाह किया जाता है कि वे झुंड के साथ छेड़छाड़ नहीं करें। छेड़छाड़ करने पर हाथी उग्र हो जाते हैं और हमला बोल देते हैं। झुंड से बिछड़ा हाथी ज्यादा तबाही मचाता है।
मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा
झारखंड में हाथियों के हमले के शिकार लोगों को सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है। इसके तहत मौत होने पर चार लाख रुपये, घायल होने पर 15 हजार से एक लाख रुपये तक देने का प्रविधान है। हमले में स्थायी अपंग होने पर दो लाख रुपये, फसल के नुकसान पर 20 से 40 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर बतौर मुआवजा दिया जाता है।