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    Jharkhand History: बादशाह अकबर के प्रधान सेनापति मानसिंह की कहानियां सुना रहा झारखंड का राजमहल

    By M EkhlaqueEdited By:
    Updated: Wed, 20 Jul 2022 03:11 PM (IST)

    Mughal Rulers Jharkhand झारखंड केवल प्राकृतिक संपदा का ही धनी नहीं है यहां कई ऐतिहासिक विरासतें भी हैं। इन्हीं में एक है- राजमहल। झारखंड के साहिबगंज जिले का यह अब एक अनुमंडल मुख्यालय है। यहां मौजूद धरोहरों को देखकर आप भारत के इतिहास पर गर्व महसूस करेंगे।

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    Jharkhand History: बादशाह अकबर के प्रधान सेनापति मानसिंह की कहानियां सुना रहा झारखंड का राजमहल

    साहिबगंज, {डा. प्रणेश}। बादशाह अकबर का नाम जैसे ही जुबान पर आता है, राजा मानिसंह का नाम भी स्वत: उभर आता है। अकबर के इस प्रधान सेनापति को दरबार में सर्वश्रेष्ठ स्थान से नवाजा गया था। मानसिंह ने ही ओडिशा और आसाम को जीत कर अकबर की रियासत को विस्तार दिया था। तब ओडिशा, बिहार और झारखंड एक ही में हुआ करते थे। राजा मानिसंह ही यहां शासन किया करते थे। उस समय मानसिंह ने राजमहल को ही राजधानी बनाया था। झारखंड के साहिबगंज जिले का यह हिस्सा वर्तमान में अनुमंडल मुख्यालय है।

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    अकबरी मस्जिद पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

    राजा मानसिंह ने वर्ष 1595-1596 में राजमहल को तेलियागढ़ी दर्रे और गंगा नदी पर सामरिक नियंत्रण के लिए अपनी राजधानी के रूप में चुना था। वर्ष 1608 में बंगाल की राजधानी तत्कालीन 'डक्का' (वर्तमान ढाका) स्थानांतरित हो गई, लेकिन बाद में 1639 से 1660 के बीच राजमहल ने अपनी प्रशासनिक स्थिति को वापस हासिल कर लिया था। राजमहल में बादशाह अकबर के समय की ऐतिहासिक महत्व की अकबरी मस्जिद आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह 1600 ई. की है। यह आज भी उसी तरह बुलंद है।

    रेलवे स्टेशन के समीप वाले भवन में रहते थे मानसिंह

    राजमहल नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन जयंत साह के अनुसार, वर्तमान राजमहल रेलवे स्टेशन के समीप जीर्णशीर्ण भवन में कभी राजा मानसिंह रहा करते थे। औरंगजेब ने शाह शूजा को मारने के लिए राजमहल पर हमला किया तो महल के इस हिस्से को तोड़ दिया था। वर्ष 1860 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता से राजमहल रेल लाइन का विस्तार किया तो इस भवन का पुनरुद्धार कर रेलवे का इसमें जोनल कार्यालय स्थापित कर दिया गया। वर्ष 1941 में राजमहल से रेलवे कार्यालय को हटा लिया गया। इसके बाद यह भवन बेकार हो गया। बताया जाता है कि इसके बाद इस भवन में राजमहल थाना का कार्य संपादित होने लगा।

    यहां देखें जामी मस्जिद, सिंघी दलान व फांसी घर

    राजमहल स्थित जामी मस्जिद और बारादरी को भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है। इसके अलावा यहां सिंघी दालान, फांसी घर भी है। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार, जामी मस्जिद का निर्माण 16वीं सदी के उत्तरार्ध में सम्राट अकबर के राज्यपाल राजा मानसिंह ने कराया था। यह मस्जिद एक ऊंचे स्थल पर स्थित है। इसे हदफ के नाम से जाना जाता है। हदफ अरबी शब्द है। इसका अर्थ होता है- लक्ष्य अथवा धनुष-बान का निशाना। यह ऐतिहासिक राजमहल नगरीय क्षेत्र का हिस्सा था। इस मस्जिद को स्थानीय तौर पर जामी मस्जिद भी कहा जाता है। इसमें एक विशाल प्रार्थना कक्ष है जो पश्चिम की ओर स्थित है। इसके अंदर एक बड़ा आंगन है जो ऊंचे अहाते से घिरा हुआ है।

    मुगल शासनकाल में राजमहल का था अहम स्थान

    प्रसिद्ध इतिहासकार डा. डीएन वर्मा कहते हैं कि मुगल काल में राजमहल का काफी अहम स्थान था। बारादरी को नागेश्वर बाग के नाम से भी जाना जाता है। इसके निर्माता के नाम पर विवाद है। कुछ विद्वान राजा मानसिंह के प्रतिद्वंद्वी फतेह जंग को इस भवन का निर्माता मानते हैं, तो कुछ बंगाल के नवाब मीर कासिम को इसके निर्माण का श्रेय देते हैं। वर्ष 1820 में बुकानन नामक विदेशी इतिहासकार ने इस स्थल का भ्रमण किया था। आज भी देश दुनिया से यहां पर्यटक आते हैं। भारतीय इतिहास के गौरवशाली अध्याय काे समझते हैं।