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    'दुष्कर्म में नाबालिग की सहमति दोष से मुक्ति का आधार नहीं', झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी

    झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नाबालिग की सहमति से यौन संबंध बनाने को वाले को दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने सजा के खिलाफ सचिंद्र सिंह की अपील पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा है कि विचारणीय बात यह है कि क्या पीड़िता की सहमति ने अपराध को नकार दिया है।

    By Manoj Singh Edited By: Shashank Shekhar Updated: Wed, 20 Mar 2024 08:46 PM (IST)
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    'दुष्कर्म में नाबालिग की सहमति दोष से मुक्ति का आधार नहीं', झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नाबालिग की सहमति से यौन संबंध बनाने को वाले को दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने सजा के खिलाफ सचिंद्र सिंह की अपील पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा है कि विचारणीय बात यह है कि क्या पीड़िता की सहमति ने अपराध को नकार दिया है।

    दुष्कर्म के मामले में नाबालिग लड़की की सहमति कोई मायने नहीं रखती है। घटना के समय यानी वर्ष 2005 में जब दुष्कर्म किया गया, उस वक्त सहमति की उम्र 16 वर्ष थी। वर्ष 2013 में किए गए संशोधन के जरिए ही इसे बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया है। ऐसे में सजायाफ्ता को राहत नहीं दी जा सकती है।

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    खूंटी सिविल कोर्ट ने सचिंद्र सिंह को नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में नौ फरवरी 2021 को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी। सचिंद्र सिंह ने खूंटी सिविल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी।

    घटना पांच फरवरी 2005 को हुई

    प्राथमिकी के अनुसार, घटना पांच फरवरी 2005 को हुई। उस समय पीड़िता की उम्र 15 वर्ष ही थी। 19 अप्रैल  2006 को गवाही के समय उसकी उम्र 15 वर्ष बताई गई। पीड़िता की जांच करने वाले चिकित्सक ने रेडियोलाजिस्ट की राय के अनुसार, पीड़िता की उम्र 14-16 वर्ष होने की संभावना जताई थी।

    यह साबित करने के लिए बचाव पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि घटना के समय पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से अधिक थी। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि शारीरिक संबंध बनने के दौरान नाबालिग की सहमति थी। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता की सहमति आरोपित को उसके अपराध से मुक्त करने का आधार नहीं हो सकती है।

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