Jharkhand News: बालू और लघु खनिज आवंटन पर रोक बरकरार, पेसा एक्ट लागू न होने पर झारखंड हाई कोर्ट सख्त
झारखंड हाई कोर्ट ने पेसा एक्ट लागू न करने पर सरकार से जवाब मांगा है और बालू एवं लघु खनिज आवंटन पर रोक बरकरार रखी है। अदालत ने सरकार को पेसा एक्ट कानून ...और पढ़ें

-हाई कोर्ट ने पूछा- कब तक लागू होगा पेसा एक्ट।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में पेसा
एक्ट लागू नहीं करने के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से जवाब मांगा
है। अदालत ने पूछा है कि पेसा एक्ट कानून कितने दिनों बनाकर लागू किया जाएगा।
अदालत ने इसकी पूरी जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा है। मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी। इस दौरान सरकार की ओर से बालू एवं लघु खनिज के आवंटन पर रोक को हटाने का आग्रह किया गया, लेकिन अदालत ने रोक को बरकरार रखा है। इस संबंध में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई है।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि पंचायती राज विभाग ने पेसा नियमावली का प्रारूप तैयार कर लिया है। पहले उक्त प्रारूप कैबिनेट को-आर्डिनेशन कमेटी को भेजा जाएगा था। आपत्ति आने पर फिर से संशोधित करने ड्राफ्ट कमेटी को भेजा गया है। वहां से इसे कैबिनेट भेजा जाएगा। सरकार की ओर से बालू सहित लघु खनिज के आवंटन पर लगी रोक को हटाने का आग्रह किया गया।
इस पर अदालत ने कहा कि पेसा एक्ट लागू करने की तिथि की जानकारी दी जाए। झारखंड हाई कोर्ट ने 29 जुलाई 2024 को जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था।
अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी
अदालत ने कहा था कि संविधान के 73वें संशोधन और पेसा कानून की भावना के अनुरूप नियमावली तैयार कर लागू की जाए। इसके बाद अब तक नियमावली अधिसूचित नहीं की गई है। प्रार्थियों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता तान्या सिंह ने पक्ष रखा।
बता दें कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा कानून) केंद्र सरकार ने 1996 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है।
झारखंड सरकार ने वर्ष 2019 और 2023 में पेसा नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया था। इसके बाद आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से अवमानना याचिका दाखिल की गई है। अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।

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