मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सीधे हाई कोर्ट आना उचित नहीं: HC
झारखंड उच्च न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सीधे उच्च न्यायालय में आना उचित नहीं है। न्यायालय के अनुसार सत्र न्यायालय उपलब्ध होने पर पहले वहीं जाना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय की धारा 482 के तहत शक्तियां केवल विशेष मामलों में ही उपयोग की जानी चाहिए। अदालत ने आरोपियों को सत्र न्यायालय में याचिका दाखिल करने की छूट दी।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत में एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सीधे हाई कोर्ट आना उचित नहीं है।
अदालत ने कहा कि जब एक पक्ष के पास सत्र न्यायालय उपलब्ध हों तो पहले निचली उच्च अदालत यानी सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
मामला धर्म कुमार साव उर्फ धर्म कुमार गुप्ता और अन्य की ओर से दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका से जुड़ा है।
इन आरोपितों ने 2014 के एक शिकायत मामले में डिस्चार्ज याचिका दाखिल की थी, लेकिन मजिस्ट्रेट ने फरवरी 2023 में इसे खारिज कर दिया। इसके बाद आरोपितों ने सीधे हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर दी।
हाई कोर्ट में आरोपितों की ओर से दलील दी गई कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 और 401 (जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में धारा 438 और 442 के रूप में है) के अनुसार, हाई कोर्ट और सत्र न्यायालय दोनों को समान अधिकार हैं।
याचिकाकर्ता को चुनने का हक
ऐसे में याचिकाकर्ता को यह चुनने का हक है कि वह किस अदालत में जाए। उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला भी दिया।
अदालत ने साफ किया कि यद्यपि कानून सीधे हाई कोर्ट में आने से नहीं रोकता, लेकिन न्यायिक शिष्टाचार और परंपरा यही कहती है कि पहले सत्र न्यायालय का सहारा लिया जाए। केवल विशेष और असाधारण परिस्थितियों में ही सीधे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना उचित माना जाएगा।
अदालत ने कहा कि यदि कोई आदेश मजिस्ट्रेट से आता है, तो पहले सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण दाखिल किया जाना चाहिए। वहीं, यदि आदेश सत्र न्यायालय से आता है तो उसके खिलाफ हाई कोर्ट जाना उचित होगा।
इस तरह दोहरा लाभ भी मिलता है। पहले सत्र न्यायालय में राहत पाने का मौका और यदि वहां राहत न मिले तो हाई कोर्ट आने का विकल्प।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी धारा 482 (बीएनएसएस में धारा 528) के तहत अंतर्निहित शक्तियां केवल दुर्लभ और विशेष मामलों में ही इस्तेमाल की जानी चाहिए ताकि न्याय की रक्षा हो और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
अदालत ने आरोपितों की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए यह छूट दी कि वह सत्र न्यायालय में नई याचिका दाखिल कर सकते हैं। अदालत ने पहले से दी गई अंतरिम सुरक्षा को एक महीने तक जारी रखने का आदेश दिया ताकि इस दौरान आरोपित सत्र न्यायालय जा सके।
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