Jharkhand सरकार हर जिले में लगाए ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट, हाई कोर्ट ने दिया तीन माह का अल्टीमेटम
झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को हर जिले में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट लगाने का निर्देश दिया है। अदालत ने सरकार को तीन महीने का समय दिया है ताकि य ...और पढ़ें

हाई कोर्ट ने सरकार को हर जिले में तीन माह में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट (बीसीएसयू) लगाने का निर्देश दिया है,
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने राज्य में खून की कमी को दूर करने के लिए दाखिल जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए कई निर्देश जारी किए हैं।
अदालत ने सरकार को हर जिले में तीन माह में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट (बीसीएसयू) लगाने का निर्देश दिया है, ताकि प्लेटलेट्स, प्लाज्मा और अन्य रक्त घटक समय पर मरीजों को उपलब्ध हो सकें।
अदालत ने राज्य के सभी डे केयर सेंटर को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हिमोग्लोबिनोपैथी (2016) संबंधी गाइडलाइंस तथा सिकल सेल रोग की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के अनुरूप पूरी तरह सक्रिय करने को कहा है।
डेडिकेटेड शिकायत निवारण सेल स्थापित करने का निर्देश
मरीजों की सुविधा और शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए हाई कोर्ट ने एक डेडिकेटेड शिकायत निवारण सेल स्थापित करने का निर्देश दिया है, जिसमें मोबाइल ऐप, वेबसाइट और टोल फ्री नंबर शामिल होंगे।
इस व्यवस्था के माध्यम से खून की आवश्यकता वाले मरीजों को रियल टाइम सहायता (बिना रिप्लेसमेंट) उपलब्ध कराई जाएगी तथा शिकायतों का पंजीकरण भी किया जा सकेगा।
कोर्ट ने राज्य के सभी ब्लड बैंकों का प्रत्येक तीन माह में निरीक्षण करने और स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक (डीजीएचएस) की विशेषज्ञ की रिपोर्ट के अनुसार पर्याप्त कर्मियों की नियुक्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
खून की शत-प्रतिशत उपलब्धता स्वैच्छिक रक्तदान के माध्यम से सुनिश्चित की जाए
इसके अलावा कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग, झारखंड सरकार और स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) को निर्देश दिया कि राज्य में खून की शत-प्रतिशत उपलब्धता स्वैच्छिक रक्तदान के माध्यम से सुनिश्चित की जाए।
इसके लिए नियमित और व्यापक रक्तदान शिविर आयोजित किए जाएं। हाई कोर्ट ने राज्य के सभी निजी अस्पतालों और निजी ब्लड बैंकों को भी अपने-अपने रक्त की आवश्यकता की पूर्ति के लिए रक्तदान शिविर अनिवार्य रूप से आयोजित करने को कहा।
इससे रिप्लेसमेंट डोनर पर निर्भरता समाप्त होगी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई तीन माह निर्धारित की और सरकार एवं सभी पक्षों को 20 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से कोर्ट के बताया गया था कि 60 प्रतिशत ब्लड रक्तदान शिविर से प्राप्त किया जाता है। प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शुभम कटारूका ने कहा कि सरकार का दावा सही नहीं है।
कोर्ट को बताया गया था कि निजी अस्पतालों में अभी भी लोगों को ब्लड की जरूरत होने पर रिप्लेसमेंट मांगा जा रहा है। अदालत ने मामले में अधिवक्ता खुशबू कटारूका को न्यायमित्र नियुक्त किया है।
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे को संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले को गंभीरता से लिया
थैलेसीमिया पीड़ित एक बच्चे को रांची सदर अस्पताल में ब्लड चढ़ाया गया था। उसके बाद उसे एचआइवी संक्रमित पाया गया। बच्चे के पिता ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था।
पत्र को गंभीरता से लेते हुए हाई कोर्ट ने उसे जनहित याचिका में बदल दिया था। इसी तरह पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के बाद पांच बच्चे एचआइवी संक्रमित पाए गए थे, जिनमें एक सात वर्षीय थैलेसीमिया रोगी भी शामिल था।

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