Jharkhand High Court: मेयर पद के लिए आरक्षण नीति पर हाई कोर्ट ने हेमंत सरकार से मांगा जवाब
झारखंड उच्च न्यायालय ने मेयर पद के लिए आरक्षण नीति पर हेमंत सरकार से जवाब मांगा है। अदालत ने सरकार से आरक्षण के आधार और नीति की वैधता पर स्पष्टीकरण देने को कहा है। उच्च न्यायालय ने सरकार को इस मामले में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। हाई कोर्ट चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में नगर निगम चुनाव में मेयर का पद दो वर्गों (आरक्षण) में बांटने के राज्य सरकार के प्रविधान के खिलाफ दाखिल याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई।
सुनवाई के बाद अदालत ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी। इस संबंध में शांतनु कुमार चंद्रा ने याचिका दाखिल की है।
प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया कि संविधान के प्रविधानों के खिलाफ राज्य सरकार ने मेयर के पद को दो वर्गों में बांट दिया है। सरकार कार्यपालक आदेश जारी कर इस तरह का प्रविधान नहीं कर सकती है। सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है। इसे निरस्त किया जाना चाहिए। नगर निगम के चुनाव में मेयर के पद को अलग-अलग निगमों के लिए वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
प्रार्थी ने जनसंख्या के आधार पर धनबाद में मेयर का पद अनारक्षित किए जाने एवं गिरिडीह में मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए जाने की सरकार की नीति का विरोध किया है।
अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने नगर निकाय चुनाव के मद्देनजर राज्य के कुल नौ नगर निगम को दो भागों वर्ग क एवं ख में बांट दिया है। वर्ग क में रांची एवं धनबाद को रखा गया है, शेष अन्य नगर निगम को वर्ग ख में रखा गया है। नगर निकाय चुनाव वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर कराया जा रहा है।
प्रार्थी का कहना है कि वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार धनबाद में अनुसूचित जाति की आबादी करीब दो लाख है। वहां मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होना चाहिए था, लेकिन धनबाद में मेयर का पद अनारक्षित कर दिया गया। गिरिडीह में अनुसूचित जाति की जनसंख्या मात्र 30 हजार है, लेकिन वहां मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया।

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