सागों में छिपा है सेहत का राज, कई रोगों की है अचूक दवा; झारखंड में उगते हैं 70 से ज्यादा प्रकार के साग
Jharkhand Food Variety सागों के औषधीय गुण कई शोध में साबित हुए हैं। झारखंड में साग आदिवासी खानपान का अहम हिस्सा है।

रांची, [मधुरेश नारायण]। झारखंड प्रकृति की गोद में बैठा राज्य है। यहां के जंगल में कई प्रकार के बहुमूल्य औषधियों का भंडार है, जिसे आदिवासी समाज के द्वारा रोज के खाद्य उत्पाद के रूप में खाया जाता है। झारखंड की धरती पर 70 से ज्यादा प्रकार के साग उगते हैं। इसमें से 52 प्रकार के साग को आदिवासी समाज में उपलब्धता के आधार पर रोज के खाने में इस्तेमाल किया जाता है।
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कुछ रिसर्च में यह साबित हुआ है कि राज्य की मिट्टी साग की उपज के लिए सबसे उपयुक्त है। कोरोना के संक्रमण काल में एक तरफ जहां पूरी दुनिया में त्राहि मचा हुआ है, वहीं आदिवासी समाज में अभी तक कोरोना का एक भी मामला सामने नहीं आया है। बताया जा रहा है कि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का एक कारण उनके खानपान में शामिल वन उत्पाद भी है। जंगल में मिलने वाले साग जिन्हें आदिवासी केवल पेट भरने के लिए खाते हैं, वो असल में औषधीय गुण से भरे हैं। इससे उनके शरीर में कई बीमारियों के होने की संभावना न के बराबर होती है।

शहरीकरण में हम भूल गए साग का इस्तेमाल
राज्य के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के औषधि पौध विशेषज्ञ ने डॉ कौशल कुमार ने बताया कि पहले हमारे खानपान में वन उत्पाद, जैसे- वन के फल, कुछ फूल, पत्तियां और जड़ आदि का इस्तेमाल किया जाता था। ये पौष्टिकता से भरे और शरीर को नई ऊर्जा देने वाले होते थे। कई बीमारियों के इलाज में घर की दादी-नानी इसका इस्तेमाल करती थी।

बाद में शहरीकरण में हम उन्हें भूलते गए। मगर इसका इस्तेमाल आदिवासी समाज में आज भी किया जा रहा है। इस साग के खाने में भी उनके द्वारा अनुशासन का पालन किया जाता है। कोई भी साग किसी महीने नहीं खाया जाता। कुछ सागों के लिए महीने बंधे हुए हैं। इससे उनके शरीर में साग का सीमित औषधि गुण शरीर में प्रवेश करते हैं।

समाज में इसे समझने के लिए वे इसे जंगल और वन के देवता की कृपा से जोड़कर देखते हैं। बीएयू के द्वारा पोटेंशियल क्रार्प के रूप में पहचान करके किसानों को प्रेरित कर उत्पादन करने की योजना है। यह योजना आइसीएआर के द्वारा दिए गएफंड से शुरू की गई है। विश्वविद्यालय के द्वारा डॉ जयलाल महतो इस प्रोजेक्ट को कॉर्डिनेट करेंगे।
आइसीएआर के द्वारा साग पर किया गया है शोध
आइसीएआर-पलांडू के द्वारा झारखंड एवं ओडिशा के 13 से अधिक जिलों में जनजातीय समाज के द्वारा इस्तेमाल होने वाली साग-सब्जियों की गुणवत्ता और औषधीय गुण पर शोध किया गया है। इस शोध का नेतृत्व कृषि वैज्ञानिक डॉ अनुराधा श्रीवास्तव ने किया है। उनके इस कार्य को प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल करेंट साइंस में प्रकाशित किया गया। उन्होंने अपने शोध में पाया कि सभी सब्जियां बिना किसी श्रम के आसानी से झारखंड व ओडि़शा के अलग-अलग इलाकों में पैदा होती हैं।

जनजातीय समुदाय की ओर से इसकी पहचान कर प्राचीन समय से भोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। प्रयोगशाला के अध्ययन से इन सब्जियों में मौजूद विटामिन, प्रोटीन सहित औषधीय गुण की भी पहचान की गई। इसमें से कई ऐसे साग हैं जो देश लगभग हर कोने में पाए जाते हैं। मगर उन्हें घास समझकर अब कोई नहीं खाता।
साग और उनके औषधीय गुण
1) पोई का साग: अंग्रेजी में इसे कोरल ट्री भी कहते हैं। पोई का साग खाने में स्वादिष्ट होने के साथ डायरिया, उलटी, बवासीर, गुर्दे की पथरी, पित्ती रोग आदि में उपयोगी होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। आदिवासी समाज में इसे सावन और भादो मास में खाया जाता है।
2) सहजन का साग: पौधों में सहजन या मोंगिया को सुपरहीरो माना जाता है। इसका मोंगिया ओलिफेरा है। इसके पत्ते, फूल, फल और जड़ तक का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है। इससे मधुमेह, ह्रदय रोग, एनिमिया, गठिया, लीवर की बीमारी, किसी भी तरह की सांस की परेशानी, त्वचा और पाचन की बीमारी में इस्तेमाल किया जा सकता है। आदिवासी इसे मौसम बदलते समय ज्यादा खाते हैं।
3) इमली की पत्ती का साग: इमली के पत्तों में प्रचुर मात्रा में विटामिन-सी पाया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में काफी सहायक है। इसके साथ ही अन्य कई बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। आदिवासी समाज में इसे गर्मी शुरू होने के बाद बारिश से पहले तक खाया जाता है।
4) पुनर्नवा का साग: इसके नाम में इसके गुण स्पष्ट हैं। पुनर्नवा का अर्थ होता है शरीर को फिर से नया कर देने वाला। अगर इसके साग का इस्तेमाल एक महीने तक किया जाए तो शरीर से सारे टॉक्सिक बाहर आ जाते हैं। आदिवासी समाज में इसे बारिश के मौसम में संक्रामक रोगों से सुरक्षा के लिए खाया जाता है।
5) बेंग साग: इसका वैज्ञानिक नाम सेंटिला एसियाटिका है। यह बारिश और गर्मी के दिनों में नदी या नाले के किनारे पाया जा सकता है। यह वैज्ञानिक रूप से शोधित ब्रेन टॉनिक है। इसके इस्तेमाल से नसों की समस्या भी दूर होती है।
6) हेम्चा साग: हेम्चा साग आदिवासी समाज में खाया जाने वाला काफी आम साग है। इसका वैज्ञानिक नाम लिमनोफिला इंडिका है। इसका इस्तेमाल बुखार, बुखार के बाद की कमजोरी और संक्रमण से होने वाली लंबी बीमारी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर उसे ठीक करने में किया जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन और खनिज होते हैं।
'साग शरीर के लिए काफी फायदेमंद हैं। इसमें हाइफाइबर और विटामिन और खनिज आदि होते हैं। यह बात सही है कि कुछ सागों में औषधीय गुण होते हैं। इनसे शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है। मगर जिन लोगों की पाचन शक्ति कमजोर हो, उन्हें साग का प्रयोग कम करना चाहिए या किसी आयुर्वेद के डॉक्टर से सलाह लेकर करना चाहिए।' -रमा सुब्रमण्यम, अस्सिटेंट प्रोफेशर, गृह विज्ञान।

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