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    Jharkhand news: अभियंत्रण नियमावली दोबारा कैबिनेट में भेजी, अभियंताओं ने किया विरोध

    By Kumar Gaurav Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Mon, 03 Nov 2025 03:06 PM (IST)

    झारखंड के पथ निर्माण विभाग ने नौ साल पहले न्यायालय द्वारा रोकी गई अभियंत्रण सेवा नियुक्ति नियमावली को फिर से कैबिनेट में भेजा है। अभियंताओं ने इस नियमावली का विरोध किया है, क्योंकि उनका मानना है कि इसमें आरक्षण संबंधी प्रविधान संविधान के विरुद्ध हैं। विधि और वित्त विभाग ने भी इस पर आपत्ति जताई है। पेयजल मंत्री ने स्पष्टीकरण मांगा है और कहा है कि वे इस मामले को कैबिनेट में उठाएंगे।

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    राज्य के पथ निर्माण विभाग ने झारखंड अभियंत्रण सेवा नियुक्ति नियमावली 2016 को एक बार फिर कैबिनेट में भेजा है।

    जागरण संवाददाता, रांची।  राज्य के पथ निर्माण विभाग ने नौ वर्ष पूर्व न्यायालय द्वारा रोकी गई झारखंड अभियंत्रण सेवा नियुक्ति नियमावली 2016 को एक बार फिर 2025 संस्करण के रूप में कैबिनेट में भेजा है।

    मामले में जिले के अभियंताओं ने बताया कि इस नियमावली पर डब्ल्यूपी (एस) नंबर 3027/2016 अशोक कुमार राय बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य में उच्च न्यायालय ने आरक्षण व्यवस्था को अनुच्छेद 14 और 16 के उल्लंघन के रूप में निरस्त किया था।

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    उस समय कैडर विलय के बाद एएमआइई प्रोन्नत सहायक अभियंताओं के लिए कार्यपालक अभियंता पद पर क्रमशः 40 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान था। विभाग ने अब वही नियम दोबारा लागू करने की कोशिश की है, बस प्रतिशत में मामूली परिवर्तन कर डिप्लोमा प्रोन्नत सहायक अभियंता के लिए 28 प्रतिशत और एएमआइई प्रोन्नत सहायक अभियंता के लिए 10 प्रतिशत तक का प्रविधान कर दिया गया है।

    एकीकृत कैडर में सीधी भर्ती के अधिकारियों में पदोन्नति में भेदभाव नहीं किया जा सकता

    वहीं, विधि विभाग ने स्पष्ट कहा है कि रोशन लाल टंडन बनाम यूनियन आफ इंडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय पहले ही यह व्यवस्था दे चुका है कि एकीकृत कैडर में सीधी भर्ती और प्रोन्नति से आए अधिकारियों में पदोन्नति को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

    साथ ही ऐसे किसी विशेष आरक्षण को लागू करने से पहले इसकी अनुमति उच्च न्यायालय से लेने के बाद ही इस दिशा में कुछ भी दिशा निर्देश जारी करने पर सुझाव दिया है। साथ ही दोबारा इसे अनुचित ठहराते हुए दोबारा विधिक जांच के लिए लौटाने की अनुशंसा की है।

    वित्त विभाग ने भी इसे संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध बताते हुए कहा है कि इससे अन्य सेवाओं में भी आरक्षण आधारित असमानता की मांग उठ सकती है। वहीं, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए 13 अक्टूबर को मुख्य सचिव और पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव से स्पष्टीकरण मांगा है, पर जवाब अब तक नहीं मिला है।

    मंत्री ने कहा कि 3 नवंबर को इस मामले को कैबिनेट की बैठक में उठाया जाएगा। बता दें कि राज्य के अभियंता वर्ग में इस प्रस्ताव को लेकर गहरी नाराजगी है, क्योंकि इससे पथ निर्माण विभाग के साथ-साथ भवन निर्माण, ग्रामीण कार्य, पेय जल एवं स्वच्छता विभाग, जल संसाधन और शहरी विकास विभागों के अभियंता भी प्रभावित होंगे।