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    Jharkhand में हाथियों की संख्या में 68 प्रतिशत गिरावट, प्रोजेक्ट एलिफेंट की रिपोर्ट में सामने आया आंकड़ा

    By Kanchan SinghEdited By: Kanchan Singh
    Updated: Wed, 15 Oct 2025 04:07 PM (IST)

    देश में डीएनए आधारित हाथी गणना के अनुसार, 2017 से 2025 तक हाथियों की संख्या में गिरावट आई है। झारखंड में हाथियों की संख्या में 68% की कमी आई है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। मानव-हाथी संघर्ष और आवास नुकसान इसके मुख्य कारण हैं। विशेषज्ञों ने वन्यजीव गलियारों को बहाल करने और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

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    झारखंड के जंगल में विचरण करते हाथी ।

    मृत्युंजय पाठक, रांची।  देश के पहले डीएनए-आधारित हाथी गणना के अनुसार, भारत में जंगली हाथियों की कुल संख्या 2017 के 27,312 से घटकर 2025 में औसतन 22,446 रह गई है, जो लगभग 18 प्रतिशत की गिरावट दर्शाती है।

    लेकिन झारखंड में यह संकट और भी गहरा है, जहां हाथियों की संख्या 679 से घटकर मात्र 217 रह गई है। यानी 68 प्रतिशत की भयावह कमी। यह आंकड़ा पर्यावरण मंत्रालय, प्रोजेक्ट एलिफेंट और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के संयुक्त सर्वेक्षण 'आल इंडिया सिंक्रोनस एलिफेंट एस्टीमेशन (एसएआइईई) 2025' से सामने आया है।

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    झारखंड के छोटा-नागपुर पठार, पलामू, सिंहभूम और धालभूम जैसे क्षेत्र एशियाई हाथियों के महत्वपूर्ण आवास रहे हैं, जो मध्य भारत की हाथी आबादी में बड़ा योगदान देते हैं। राज्य का 31.51 प्रतिशत क्षेत्र (25,118 वर्ग किमी) वनों से आच्छादित है। 

    कुछ विशेष क्षेत्र में सीमित रह गए हैं हाथी

    लेकिन मानवीय अतिक्रमण, हाथियों के आवास का नुकसान और बुनियादी ढांचे के विकास ने हाथियों को कुछ विशेष क्षेत्र में सीमित कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, हाथी कृषि भूमि और मानव बस्तियों से होकर गुजरने को मजबूर हैं, जो उनकी आहार और जल आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रही।

    इस गिरावट के पीछे मानव-हाथी संघर्ष प्रमुख कारण है। 2005 से 2014 के बीच राज्य के विभिन्न वन मंडलों में हाथियों के हमलों से 576 लोगों की मौत हुई, जिसमें रांची वन मंडल में सबसे अधिक 89 मामले दर्ज किए गए।

    वहीं, 2004-2017 के बीच 30 हाथियों की मौत बीमारी, विद्युत करंट, जहर, शिकार और ट्रेन दुर्घटनाओं से हुई। हाल के आंकड़ों के मुताबिक, 89.2 प्रतिशत मानव मौतें वन क्षेत्रों के बाहर ही दर्ज की गईं, जो हाथियों के प्रवास को दर्शाता है।

    हजारीबाग, रांची जैसे क्षेत्रों में बढ़ते संघर्ष ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नई विधि (डीएनए नमूना विश्लेषण और मार्क-रिकैप्चर मॉडल) के कारण पुराने आंकड़ों से सीधी तुलना संभव नहीं, लेकिन यह नया बेसलाइन भविष्य के निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है।

    राज्यों में तेजी से हो रही कमी चिंता का विषय

    फिर भी, दक्षिणी पश्चिम बंगाल (84 प्रतिशत गिरावट), ओडिशा (54 प्रतिशत) और झारखंड (68 प्रतिशत) जैसे राज्यों में तेजी से हो रही कमी चिंता का विषय है। केंद्रीय भारत और पूर्वी घाट क्षेत्र में कुल 41 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल संरक्षण उपाय आवश्यक हैं। वन्यजीव गलियारों का पुनर्स्थापन, मानव-हाथी संघर्ष के लिए जागरूकता अभियान, और प्रभावी प्रबंधन रणनीतियां जैसे कदम उठाने होंगे।

    प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत हाथी आबादी को बचाने के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने की मांग तेज हो गई है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो झारखंड की यह दुर्लभ प्रजाति और खतरे में पड़ सकती है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल संरक्षण उपायों की आवश्यकता है ताकि मानव और हाथी दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। वन्यजीव गलियारों को बहाल करना, मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाना और प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।