राजनीति में बेटे-बेटियों को आगे बढ़ा रहे झारखंड के कांग्रेसी
झारखंड में कई नेताओं ने अपनी अगली पीढ़ी को राजनीतिक डगर पर आगे बढ़ाना आरंभ किया है।
प्रदीप सिंह, रांची। कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप पुराना है। झारखंड में भी पार्टी कुछ इसी ढर्रे पर चल रही है। कई वरीय नेताओं ने हाल में अपनी अगली पीढ़ी को राजनीतिक डगर पर आगे बढ़ाना आरंभ किया है। कवायद इस स्तर पर है कि धीरे-धीरे उन्हें ट्रेंड कर विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारा जाए। प्रोजेक्ट किए जा रहे तमाम कांग्रेस नेताओं के बच्चों में से एकाध को इसका मौका भी मिला जिसमें कुछ सफल रहे तो कुछ औंधे मुंह गिरे।
हालत यह है कि संगठन के अग्रिम संगठनों युवा कांग्रेस और एनएसयूआइ में नेता पुत्रों का दबदबा कायम हो गया है। कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे राजेंद्र प्रसाद सिंह के दूसरे पुत्र कुमार गौरव ने हाल ही में हुए चुनाव में जीत हासिल कर झारखंड प्रदेश युवा कांग्रेस की कमान हाथ में ली है। इससे पहले यह पद उनके बड़े बेटे कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह के पास था। अनूप अब कांग्रेस की मजदूर शाखा इंटक में ज्यादा सक्रिय हैं। उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी भी राष्ट्रीय नेतृत्व से मिल चुकी है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत भी इस रेस में पीछे नहीं हैं। उनके पुत्र अभिनव सिद्धार्थ सर्वाधिक मतों से जीतकर युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव चुने गए। राज्यसभा सदस्य प्रदीप बलमुचू की पुत्री सिंड्रैला बलमुचू भी युवा कांग्रेस की प्रदेश महासचिव बन चुकी हैं। बची खुची कसर कांग्रेस की छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) में पूरी हो गई। एनएसयूआइ के प्रदेश अध्यक्ष पद पर रांची महानगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह के पुत्र ने कब्जा जमाया है। सुरेंद्र सिंह ने पिछला विधानसभा चुनाव रांची विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था।
चुनाव में भी जल्द होगी इंट्री
कांग्रेस के जिन प्रमुख नेताओं ने अपनी बेटे-बेटियों की इंट्री युवा और छात्र शाखाओं के जरिए पार्टी में कराई है, वे जल्द ही उन्हें चुनावी राजनीति में भी उतारेंगे। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में गोड्डा से कांग्रेस के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के पुत्र डा. इरफान अंसारी ने जीत हासिल की थी लेकिन राज्यसभा सदस्य प्रदीप कुमार बलमुचू की बेटी सिंड्रैला बलमुचू को सफलता नहीं मिली।
विरासत आगे बढ़ाने को पुत्र मोह में फंसे ऐसे कुछ नेता जहां अपनी सीट बेटे-बेटियों के लिए छोड़ने की रणनीति बना रहे हैं वहीं अधिकांश नेता अपने बेटों के लिए अलग सीट चाहते हैं। चर्चा है कि बोकारो की दो अलग-अलग विधानसभा सीटों से एक नेता के दो पुत्र चुनाव मैदान में उतरेंगे। संताल परगना और कोल्हान प्रमंडल में भी इसका असर पड़ेगा।
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