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    जैव विविधता के संरक्षण के लिए झारखंड सरकार को 100 करोड़ देगा केंद्र, बनेगा डिजिटल डाटाबेस

    Updated: Sun, 23 Nov 2025 07:52 PM (IST)

    झारखंड में जैव विविधता के संरक्षण और विकास के लिए केंद्र सरकार 100 करोड़ रुपये की सहायता देगी। यह राशि शोध, संरक्षण और डिजिटल डाटाबेस बनाने में उपयोग की जाएगी। राज्य के 15 जिलों में 106 जैव विविधता स्थल चिह्नित किए गए हैं। जंगलों में प्राचीन वृक्षों और वन्यजीवों के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाएगा।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में मौजूद जैव विविधता को संरक्षित करने और इसके विकास के लिए केंद्र सरकार से 100 करोड़ की सहायता राशि मिलेगी।

    केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके लिए योजना बनाई है। यह राशि शोध, संरक्षण, डिजिटल डाटाबेस जैसे कार्यों के लिए चार चरणों में दी जाएगी।

    राज्य के 15 जिलों में 106 जैव विविधता स्थल की पहचान की गई है। रांची जिले में ऐसे चार जैव विविधता स्थल हैं। सारंडा, पलामू टाइगर रिजर्व, दलमा और हजारीबाग के वन क्षेत्र में जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) स्थलों पर शोध की संभावना को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके लिए पहल की है।

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    केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में बायोडायवर्सिटी प्रकोष्ठ के सलाहकार विवेक चौधरी ने बताया कि झारखंड में प्राकृतिक परिवेश में जीव जंतुओं के लिए जीवन यापन की व्यापक संभावना है। इसे डिजिटल तौर पर रिकॉर्ड कर आने वाले समय के लिए संरक्षित रखा जाएगा।

    फ्लोरा और फोना का भी होगा संरक्षण

    रांची विश्वविद्यालय में भूगर्भशास्त्र के अध्यापक और पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि राज्य के जंगलों में प्राचीन वृक्षों जिन्हें फ्लोरा और फोना कहा जाता है, इनकी बड़ी मौजूदगी है।

    केंद्र सरकार के प्रयास से इनका संरक्षण होगा। जंगलों में अवैध कटाई और निर्माण कार्य से फ्लोरा और फोना को नुकसान पहुंचा है। ये वृक्ष पांच सौ से लेकर तीन हजार वर्ष तक पुराने हैं। इनपर शोध कार्य से कई वैैज्ञानिक रहस्यों से भी पर्दा उठेगा।

    बड़े वृक्ष से लेकर सागपात तक जैव विविधता में शामिल

    झारखंड के जंगलों में साल, गम्हार, महुआ, कटहल जैसे बड़े वृक्ष हैं तो करमी और कोयनार जैसे साग भी उगते हैं। यहां बांस की झाड़ियां और शतावर जैसी औषधि उगती है। विवेक चौधरी इसे राज्य के जंगलों की विशेषता बताते हैं।

    इस पर अध्ययन के साथ इनके उत्पादन प्रक्रिया की जानकारी को संरक्षित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा यहां हाथी से लेकर बाघ और चीतल तक प्राकृतिक तौर पर एक ही जंगल में मिल जाते हैं। जीव जंतुओं की इतनी विविध रेंज भी एक साथ मुश्किल है। केंद्र सरकार के प्रयास से अब इनका पुनर्वास भी संभव होगा।