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    राजा जनक के दूसरे नाम विदेह से सीता का नाम वैदेही पड़ा

    रांची मिथिला नरेश जनक को बैसाख शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को खेत में हल जा

    By JagranEdited By: Updated: Fri, 01 May 2020 06:12 AM (IST)
    राजा जनक के दूसरे नाम विदेह से सीता का नाम वैदेही पड़ा

    जागरण संवाददाता, रांची : मिथिला नरेश जनक को बैसाख शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को खेत में हल जोतने के समय मां सीता प्राप्त हुई थीं। राजा जनक को विदेह अथवा मिथि भी कहा जाता है। वहीं सीता को भी राजा जनक के विदेह नाम के कारण वैदेही कहा जाता है। कई धर्मग्रथों में इसका उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण, विष्णु पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार मिथिला नाम महाराज मिथि के नाम पर पड़ा। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इस भूभाग के प्रथम नृपति सूर्य कुलोद्भव महाराज मनु के तनय इच्छवाकु के पुत्र निमि थे। निमि के पुत्र मिथि हुए। उन्हीं के नाम पर भूभाग का नाम मिथिला पड़ा।

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    श्रीमद भागवत में उल्लेख है कि यज्ञ करने के लिए उद्दत राजा निमि का निमंत्रण अस्वीकार कर जब ब्रह्मार्षि वशिष्ठ इंद्र का यज्ञ संपन्न कराने चले गए तब उनकी अनुपस्थिति में मृगु आदि मुनियों की सहायता से निमि ने यज्ञ संपन्न कराया। इंद्र के 500 वर्षो के यज्ञ को समाप्त कर वशिष्ठ जब स्वर्ग से लौटे तो उन्हें निमि के इस कृत्य पर काफी क्रोध हुआ और उन्होंने निमि को विदेह(मृत) हो जाने का शाप दिया। वशिष्ठ के इस कार्य से प्रजा घबरा गई। तब अराजकता रोकने के उद्देश्य से ऋषियों ने निमि के मृत शरीर का मंथन किया। उस मंथन से जो शिशु उत्पन्न हुआ उसका नाम मिथि अथवा मिथिला अथवा विदेह रखा गया। बाद में उन्हीं का नाम जनक पड़ा।

    मत्स्य पुराण के 55वें अध्याय में यह कथा वर्णित है। हालांकि, यहां कहानी कुछ भिन्न बताई गई है। मत्स्य पुराण के अनुसार कुलगुरु वशिष्ठ एक बार राजा निमि की राजधानी पहुंचे। उस समय राजा निमि पत्‍‌नी के साथ प्रम-व्यवहार में लिप्त थे, हलांकि, इसके बावजूद राजा के आज्ञा के वशिष्ठ का खूब आदर सत्कार किया गया लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए और निमि को शरीरपात का श्राप दे दिया। फिर बाद में ऋषियों द्वारा निमि के मृत देह को मथने से एक शिशु का जन्म हुआ। इस प्रकार बिना जनक-जननी के संयोग से जन्म होने के कारण शिशु जनक, मृत देह से उत्पन्न होने के कारण विदेह तथा मंथन से उत्पन्न होने के कारण मिथि कहलाया। मिथि के नाम पर ही मिथिला नगर का निर्माण हुआ।

    हृषिकेष चौधरी, शिक्षक, एचईसी शिशु विद्यालय