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    Jamtara Chit Fund Case: जामताड़ा में चिटफंड कंपनियों के जरिए लोगों को चूना लगाने वालों की बढ़ेगी मुश्किलें, सीबीआई ने टेकओवर किया केस

    By Madhukar KumarEdited By:
    Updated: Fri, 01 Apr 2022 07:04 PM (IST)

    Jamtara Chit Fund Case जामताड़ा थाने में 12 जुलाई 2013 को कांड संख्या 228/13 में वहां के अनुमंडल पदाधिकारी के बयान पर जामताड़ा के न्यू टाउन एलआइसी बिल ...और पढ़ें

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    Jamtara Chit Fund Case: सीबीआई ने दोनों मामले को टेक ओवर कर लिया है।

    रांची, राज्य ब्यूरो। जामताड़ा थाने में वर्ष 2013 व वर्ष 2016 में दर्ज चिटफंड कंपनियों से संबंधित दो अलग-अलग प्राथमिकियों को सीबीआइ की रांची स्थित आर्थिक अपराध शाखा ने टेकओवर कर लिया है। दोनों ही प्राथमिकियों के आरोपितों व कंपनियों पर सीबीआइ ने 31 मार्च को दो अलग-अलग प्राथमिकियां दर्ज की हैं। अब चिटफंड के इस पूरे मामले का अनुसंधान सीबीआइ करेगी। झारखंड हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल 2017 एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया था कि झारखंड राज्य के विभिन्न थानों में नन बैंकिंग कंपनियों, चिटफंड कंपनियों से संबंधित जितनी भी प्राथमिकियां दर्ज हैं, उसका अनुसंधान सीबीआइ करेगी। झारखंड हाई कोर्ट ने इससे संबंधित आदेश सीबीआइ के निदेशक को दिया था। इसके बाद से ही सीबीआइ की आर्थिक अपराध शाखा राज्य में दर्ज चिटफंड कंपनियों से संबंधित प्राथमिकियों को टेकओवर करती आ रही है। जामताड़ा थाने में दर्ज केस को

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    तीन साल में दोगुना राशि का सपना बेचकर ओरियन कंपनी ने लगाया था ग्रामीणों को चूना

    जामताड़ा थाने में 13 जून 2016 को कांड संख्या 159/16 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इनमें जामताड़ा के कोर्ट रोड निवासी मोहम्मद महफूज आलम, मोहम्मद सलिमुद्दीन अंसारी, जामताड़ा के करमाटांड़ निवासी मोहम्मद परवेज आलम, मोहम्मद कमल कौशर, जामताड़ा के ताराबहल निवासी मोहम्मद मजूर आलम व पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान जिले के बर्नपुर थाना क्षेत्र के रंगापाड़ा निवासी मोएज आलम व अन्य को आरोपित बनाया गया था। सभी आरोपित जामताड़ा के कोर्ट रोड स्थित ओरियन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक हैं। इस कंपनी व इसके निदेशकों पर आरोप है कि इसने तीन साल में निवेश की गई राशि को दोगुना करने का झांसा दिया और भारी संख्या में ग्रामीणों को शिकार बनाया। इसमें हजार से अधिक ग्रामीणों ने अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश किया था। इस केस के शिकायतकर्ता जामताड़ा के करमाटाड़ थाना क्षेत्र के डुमरिया गांव निवासी ताहिर अंसारी हैं। उन्होंने स्वयं उक्त चिटफंड कंपनी में 12 लाख 40 हजार रुपये का निवेश किया था। तीन साल के बाद जब कंपनी को दोगुना राशि लौटाने की जिम्मेदारी मिली, तब कंपनी ने टालमटोल करना शुरू किया। एक दिन कंपनी ने अपने दफ्तर में ताला लगा दिया और ग्रामीणों की करोड़ों रुपये की गाढ़ी कमाई लेकर फरार हो गए। अब सीबीआइ की रांची स्थित आर्थिक अपराध शाखा की पुलिस निरीक्षक लिली नूतन मुर्मू को सीबीआइ में दर्ज इस केस का जांच अधिकारी बनाया गया है।

    चिटफंड कंपनी के मैनेजमेंट प्रोजेक्ट ने ग्रामीणों को लगाया था चूना

    जामताड़ा थाने में 12 जुलाई 2013 को कांड संख्या 228/13 में वहां के अनुमंडल पदाधिकारी के बयान पर जामताड़ा के न्यू टाउन एलआइसी बिल्डिंग स्थित मेसर्स एंबिशन डायवर्सिफायड मैनेजमेंट प्रोजेक्ट लिमिटेड को आरोपित किया गया था। तब एसडीओ ने जामताड़ा थाने में दर्ज प्राथमिकी में यह जानकारी दी थी कि उपायुक्त के आदेश पर वे उक्त कंपनी की जांच करने पहुंचे थे।जांच में पता चला कि उक्त कंपनी के पास रिजर्व बैंक आफ इंडिया या सेबी से कार्य करने का अधिकार प्राप्त नहीं था। नियमानुसार कंपनी को सामान्य बैंकिंग का काम नहीं करना था, लेकिन ऐसे प्रमाण मिले थे कि ये अपने एजेंट के माध्यम से सीधे ग्राहकों से जुड़कर बैंकिंग कार्य, जैसे रेकरिंग जमा, सावधि जमा, एफडी आदि उसी नाम से कर रहे थे और ग्राहकों से राशि की उगाही कर रहे थे। इस कंपनी ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ऊंचे दर पर ब्याज भुगतान का वादा किया था। सीबीआइ में दर्ज इस केस के जांच अधिकारी सीबीआइ की रांची स्थित आर्थिक अपराध शाखा के इंस्पेक्टर मुकुंद कुमार कर्ण बनाए गए हैं।