पेट खाली और सपनों से भरी आंखें, देश के लिए सोना जीतना चाहती हैं ये बहनें
दोनों बहनों के सिर से पिता विलियम बारला का साया बचपन में ही उठ गया था। मां रोजिला नवाडीह खेतों में काम कर घर चलाती हैं। लेकिन इन दोनों बहनों के सपने उड़ाने भरने को तैयार हैं।
रांची, [संजीव रंजन]। सिर पर पिता का साया नहीं, भरपेट खाना नहीं, पैर में जूते नहीं फिर भी दोनों बहनों में है उड़नपरी बनने का जज्बा। इस जज्बे को इनकी प्रतिभा व परिश्रम ने मुकाम तक पहुंचाया। हम बात कर रहे हैं रांची के नवाटांड (मांडर) डे बोर्डिंग सेंटर की दो बहनें फ्लोरेंस बारला व आशा किरण बारला की। दोनों बहनों में प्रतिभा ऐसी है कि देखने वाले आश्चर्य में पड़ जाएं।
खाली पैर, उबड़ खाबड़ मैदान में दोनों बहनें ऐसे सरपट दौड़ती हैं कि देखने वाले भी दांतों तले उंगुली दबा लें। दोनों बहनों का सपना भी उड़नपरी बनने का ही है। सपने को साकार करने के लिए दोनों बहनें खाली पेट ही मैदान में घंटों अभ्यास करती हैं। दिल में कहीं देश का प्रतिनिधित्व कर देश के लिए सोना जीतने का भी स्वप्न पल रहा है।
पिछले महीने विशाखापत्तनम में संपन्न अखिल भारतीय अंतर जिला एथलेटिक्स मीट में आशा किरण बारला ने अंडर-14 की 600 मीटर दौड़ एक मिनट 20 सेकेंड में पूरी कर स्वर्ण पदक जीता तो फ्लोरेंस बारला ने अंडर-14 वर्ग की 400 मीटर दौड़ में 58 सेकेंड का समय निकालकर सिल्वर मेडल अपने नाम किया। फ्लोरेंस ने कोलकाता में संपन्न पूर्वी क्षेत्र जूनियर एथलेटिक्स मीट में अंडर-17 वर्ग के 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल भी जीता।
माड पीकर मार रहीं मैदान
दोनों बहनों के सिर से पिता विलियम बारला का साया बचपन में ही उठ गया था। मां रोजिला नवाडीह खेतों में काम कर घर चलाती हैं। मां के साथ खेतों में दौड़ने वाली दोनों बहनें अभ्यास करने के लिए कभी खाली पेट तो कभी माड पीकर ही पहुंच जाती हैं और कई घंटे तक सेंटर के कोच ब्रदर सालेप टोप्पनो की देखरेख में अभ्यास करती हैं। दोनों बहनें कभी दोपहर का खाना खाती हैं तो कभी नहीं। लेकिन उनके जुनून में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती। दोनों बहनों की प्रतिभा को दिब्या जोजो ने देखा व परखा। इसके बाद उन्होंने दोनों बहनों को प्रेरित किया फिर सेंटर लाकर ब्रदर सालेप टोप्पनो से मिलाया। ब्रदर ने दोनों की प्रतिभा को निखारना शुरू किया।
सुविधा व अच्छा भोजन मिले तो प्रदर्शन में होगा सुधार
ब्रदर सालेप का कहना है कि दोनों बहनें काफी गरीब परिवार से आती हैं। एक अच्छे एथलीट के लिए जो भोजन मिलना चाहिए वह इन्हें नहीं मिल पाता। अगर दोनों बहनों को सुविधा और अच्छी डाइट मिले तो दोनों भविष्य में काफी कुछ कर सकती हैं। इनमें वह क्षमता है। पिछले दिनों दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर उम्मीद जगाई है।