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    दारोगा ने मां को लावारिस छोड़ा, पत्‍नी व ससुराल वाले पसंद नहीं करते थे; पढ़ें यह मार्मिक खबर

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Tue, 17 Nov 2020 10:28 AM (IST)

    Jharkhand Latest News अपनी दुख भरी दास्तान बताते हुए बूढ़ी मां के आंखों में आंसू आ जाते हैं। कहती है कि बेटे के ससुराल परिवार को मैं पसंद नहीं थी इसलिए इलाज कराने के बहाने रिम्‍स में छोड़ दिया।

    रिम्‍स में दरोगा मां कव्वाली देवी। जागरण

    रांची, [अमन मिश्रा]। झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्‍पताल रिम्स में लावारिस लोगों की भरमार है। कई बार कुछ सामाजिक संस्था लावारिस को  लाकर रिम्स में छोड़ जाते हैं तो कई बार खुद अपने ही अस्पताल में इलाज कराने के नाम पर लाकर छोड़ जाते हैं। फिर महीनों-सालों तक बूढ़ी आंखें अपने बेटे-बेटियों का इंतजार करती रहती हैं। रांची के रिम्स में वर्तमान में कई लोग ऐसे हैं जो वारिस होने के बावजूद लावारिस की तरह जीवन यापन कर रहे हैं।

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    दैनिक जागरण ने ऐसे ही एक वृद्ध महिला से बातचीत की। उसकी बातें सुनकर किसी का भी दिल रो पड़ता है। रिम्स में लावारिस की तरह रह रही बिहार के छपरा जिले की कव्वाली देवी ने बताया कि उसका बेटा असम पुलिस में दारोगा है। लंबे समय तक असम के तिनसुकिया के किसी थाने में पदस्थापित था, अब नहीं पता वह कहां है। बातों-बातों में उसने बताया कि बेटे के ससुराल वालों को मैं पसंद नहीं थी, इसलिए यहां इलाज कराने के बहाने छोड़ गया। बहु भी पसंद नहीं करती थी।

    वृद्धा ने बताया कि करीब आठ महीने पहले शरीर दर्द की समस्या का इलाज कराने के लिए बेटे ने रिम्स लाया था। इसके बाद यहां छोड़कर चला गया। इन आठ महीनों में बेटा एक बार भी देखने नहीं आया। परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में पूछने पर वृद्ध महिला बताती है कि दारोगा बेटा के अलावा उसका एक और बेटा व बेटी है। नाती-पोता से भरे-पूरे परिवार में वह पहले साथ रहती थी। बताती है कि पति हैं जो कभी-कभी मिलने आते हैं। इतना बताते-बताते उसकी आंखें नम हो गईं और बेटा-बहू, नाती-पोतों को याद कर बिलखने लगी।

    बेटों को देखने का बहुत मन करता है

    रिम्स के ऑर्थोपेडिक वार्ड के कॉरिडोर में लावारिस की तरह रह रही वृद्ध महिला कव्वाली देवी कहती है कि बेटों और परिवार के बाकि सदस्यों को देखने का बहुत मन करता है लेकिन मिलने के लिए कोई नहीं आता। इधर, सुरक्षाकर्मी व अन्य कर्मचारी बताते हैं कि महिला वार्ड के कॉरिडोर में यहां-वहां भटकती रहती है। सप्ताह भर पहले तक दूसरे मरीज के परिजन जो भी निवाला दे जाते, उसी से वह गुजर बसर कर रही थी।

    कभी कोई मिक्सचर व कोई बिस्कुट दे जाता तो उसको आशीर्वाद देने के साथ लंबी उम्र की कामना भी करती थी। लेकिन अब एक सप्ताह से इन लोगों की देखभाल खुद रिम्स प्रबंधन कर रहा है। इन्हें रहने के लिए छत दिया गया है। यहां इन सभी को तीनों समय का खाना और इलाज के साथ दवाई भी मिलती है।

    पेंशन मिलता है 20 हजार, खा जाते हैं परिजन

    इसी तरह रिम्‍स में परमेश्‍वर भी लावारिस की तरह रह रहे हैं। इनका भी बेटों-बेटियों से भरा-पूरा एक परिवार है, जो रिम्स के ही क्वार्टर में रहते हैं। लेकिन पिता को एक लावारिस की तरह छोड़ दिया है। जान कर यह हैरानी होगी कि परमेश्वर रिम्स से ही सेवानिवृत्त हैं। रिम्स में ही धोबी के पद पर स्थायी कर्मचारी रह चुके हैं। ड्यूटी के दौरान ही इन्‍हें रिम्स पोस्टमॉर्टम के सामने एक क्वार्टर दिया गया था। यहां से उन्‍हें बेघर कर दिया गया है।

    सेवानिवृत्त होने के बाद परमेश्वर को रिम्स से पेंशन भी मिलता है। हर महीने करीब 20 हजार रुपये की राशि का भुगतान किया जाता है। इसे उसकी पत्नी व बच्चे खा जाते हैं। वर्तमान में परमेश्वर एक-एक रुपये के लिए मोहताज हैं। लावारिस अवस्था में रिम्स परिसर में यहां-वहां भटकने के बाद कभी इमरजेंसी के आगे सीढ़ी के नीचे तो कभी ऑर्थो वार्ड के कॉरिडोर में सोकर अपने आखिरी दिन गिन रहे हैं। रिम्स के ही कर्मचारी बताते हैं कि परमेश्वर मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ है। परिवार वाले इसे अपनाना नहीं चाहते।

    दो बेटी व एक बेटा रिम्स में ही है कार्यरत

    रिम्स के कर्मचारियों ने बताया कि परमेश्वर के पांच बच्चे हैं। चार बेटी व एक बेटा और उसकी पत्नी। दो बेटियों की शादी हो चुकी है, जबकि एक ब्लड बैंक में दैनिक वेतनमान कर्मचारी है और दूसरी गर्ल्‍स हॉस्टल में सफाई कर्मचारी का काम करती है। बेटा रिम्स में ही कपड़े धुलाई का काम करता है और पत्नी खुद भी स्त्री व प्रसूति रोग विभाग में कार्यरत है। इसके बाद भी परिवार वाले मिलकर इसके पेंशन की सारी राशि हड़प लेते हैं।