फिर से बिरसा के उलगुलान की भारत को है जरूरत
बिरसा मुंडा के पोते सुकरा मुंडा बताते हैं कि देश को एक बार फिर उलगुलान की जरूरत है।
रांची : बिरसा मुंडा के पोते सुकरा मुंडा बताते हैं कि आजादी का मतलब हमारे लिए आज भी बिरसा का उलगुलान ही है। हमारी जल, जंगल और जमीन पर हमारा राज हो, यही आदिवासी समाज के लिए आजादी का मतलब है। मगर अब वर्षों के बाद हमें ऐसा लगता है कि अब बिरसा के उलगुलान की जरूरत पूरे देश को है। बिरसा का उलगुलान देश को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराने के लिए था। मगर अब इसकी जरूरत देश के व्यापार और राजनीति को दूसरे देशों के प्रभाव से बचाने के लिए है। उलगुलान वही है, केवल उसका रूप राज्य और समय के अनुसार बदल गया है। हम चीनी सामानों के बहिष्कार की बात करते हैं। जंगल में रहने वाले आदिवासी तो उसका इस्तेमाल कम से कम या न के बराबर करते हैं। फिर शहर के लोग उसका उत्पादन करने के लिए क्यों नहीं सोचते। अब उलगुलान का अर्थ आत्मनिर्भरता है। बिरसा ने जल जंगल जमीन पर अपना अधिकार समाज को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए भी तो मांगा था। बिरसा की सीख की वजह से ही आज हमारे समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत, लिग भेद आदि नहीं है। बिरसा के आजादी का मतलब हमारे लिए आज इन गलत प्रथाओं से भी मुक्ति है। ऐसी प्रथा समाज को खोखला कर रही है। हमें पता भी नहीं चल रहा और अनजाने में हम गलती करते जा रहे हैं। ऐसे में समाज को बिरसा के उलगुलान को समझने और जानने की जरूरत है। उनकी बातें जल, जंगल और जमीन तक सीमित नहीं है। ये प्रथा, सभ्यता, और समाज की संरचना का भी विषय है। आजादी का अर्थ समझकर हर किसी को अपने उत्तरदायित्व का पालन करने की जरूरत है। फिर सही मायने में हम आजादी का जश्न मना सकेंगे।