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    'वैवाहिक मामलों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की प्रवृति बढ़ी' झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी

    By Manoj Singh Edited By: Shashank Shekhar
    Updated: Mon, 19 Feb 2024 07:01 PM (IST)

    झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा है कि वैवाहिक विवाद के मामलों में पति के रिश्तेदारों को केस में फंसाने की प्रवृति बढ़ रही है। रिश्तेदारों के खिलाफ लगाए गए आरोप का कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं रहता है। यह मामला गढ़वा जिले का है।

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    'वैवाहिक मामलों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की प्रवृति बढ़ी' झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा है कि वैवाहिक विवाद के मामलों में पति के रिश्तेदारों को केस में फंसाने की प्रवृति बढ़ रही है।

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    रिश्तेदारों के खिलाफ लगाए गए आरोप का कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं रहता है। अदालत ने प्रार्थी नीरज कुमार, उमेश कुमार एवं शिवा सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके खिलाफ निचली अदालत के संज्ञान और चल रही कार्यवाही को निरस्त कर दिया।

    क्या है पूरा मामला 

    यह मामला गढ़वा जिले का है। पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इस पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया था। निचली अदालत के संज्ञान के खिलाफ पति के रिश्तेदार नीरज कुमार, उमेश कुमार और शिवा सिंह ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की और निचली अदालत के संज्ञान को निरस्त करने का आग्रह किया।

    सुनवाई के दौरान प्रार्थियों की ओर से अदालत को बताया गया कि इस मामले में उनके खिलाफ आरोप बेबुनियाद है और इसके पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है। पुलिस ने सिर्फ महिला के आरोपों को सच मान लिया है और बिना किसी जांच के प्राथमिकी दर्ज की है। निचली अदालत ने इस पर संज्ञान भी लिया है।

    निचली अदालत का संज्ञान उचित नहीं- हाई कोर्ट

    सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि पत्नी ने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ मानसिक रूप से परेशान और दहेज की मांग करने का आरोप लगाया था, लेकिन याचिकाकर्ताओं में से किसी को भी उनके खिलाफ लगाए गए सामान्य आरोप को आगे बढ़ाने में कोई विशिष्ट भूमिका निभाते हुए नहीं दर्शाया गया है।

    इसलिए, निचली अदालत का संज्ञान उचित नहीं है। इसके बाद अदालत ने प्रार्थियों के खिलाफ निचली अदालत के संज्ञान और आपराधिक मामलों को रद्द कर दिया।

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