Jharkhand Politics: दिग्गज आदिवासी नेताओं की अनदेखी से झारखंड कांग्रेस में बढ़ सकती है गुटबाजी
झारखंड कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ रही है। हाल ही में राहुल गांधी की बैठक में कुछ प्रमुख आदिवासी नेताओं की अनुपस्थिति ने पार्टी के भीतर असंतोष पैदा कर दिया है। इस बैठक का उद्देश्य संगठन को मजबूत करना था, लेकिन प्रभावशाली आदिवासी नेताओं जैसे बंधु तिर्की और रामेश्वर उरांव को शामिल न करने से विवाद गहरा गया है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं सांसद राहुल गांधी।
प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड कांग्रेस में गुटबाजी एक बार फिर बढ़ने के आसार हैं। हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने झारखंड के प्रमुख आदिवासी नेताओं, विधायकों और सांसदों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक में पार्टी संगठन को मजबूत करने और आगामी रणनीतियों पर चर्चा हुई।
हालांकि, इस बैठक में कुछ प्रभावशाली आदिवासी नेताओं की अनुपस्थिति ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। विशेष रूप से, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव और प्रदीप बलमुचू जैसे दिग्गज नेताओं को इस बैठक में शामिल नहीं किया गया। इस अनदेखी ने पार्टी के भीतर गुटबाजी को और हवा दी है।
राहुल गांधी की इस बैठक का उद्देश्य झारखंड में कांग्रेस संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करना और 2024 विधानसभा चुनाव में मिली जीत को भुनाने की रणनीति तैयार करना था। झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 81 में से 56 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था, जिसमें कांग्रेस ने 16 सीटें हासिल की थीं।
इस जीत के बावजूद, संगठन के भीतर असंतोष की चिंगारी सुलग रही है। बंधु तिर्की काग्रेस मेनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं और आदिवासी समुदाय में मजबूत पकड़ रखते हैं। तिर्की ने हाल ही में दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल और मुकुल वासनिक से मुलाकात कर संगठन को मजबूत करने पर चर्चा की थी।
इसी तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक रामेश्वर उरांव समेत प्रदीप बलमुचू भी बैठक में नहीं दिखे। बताया जाता है कि आलाकमान को जो सूची सौंपी गई, उन्हें ही बुलावा भेजा गया और इन दिग्गज नेताओं की अनदेखी की गई। बैठक में लोहरदगा के सांसद सुखदेव भगत समेत तमाम प्रमुख विधायक और नेता मौजूद थे। इन नेताओं की अनदेखी को पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा जानबूझकर उठाया गया कदम माना जा रहा है।
ओबीसी बनाम आदिवासी का भी विवाद
झारखंड कांग्रेस में ओबीसी नेताओं को बढ़ावा देने की रणनीति को भी विवादों से जोड़ा जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश और विधायक दल के नेता प्रदीप यादव, दोनों ही ओबीसी समुदाय से हैं। यह रणनीति आदिवासी बहुल झारखंड में पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक को नाराज करने का कारण बन सकती है, क्योंकि आदिवासी, ईसाई और मुस्लिम समुदाय लंबे समय से कांग्रेस के कोर वोटर रहे हैं।
आदिवासी नेताओं की अनदेखी का यह मुद्दा तब और गंभीर हो गया, जब कुछ नेताओं ने ओबीसी कोटे की अनदेखी का आरोप लगाया था। 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओबीसी नेताओं को टिकट देने में जोर दिया, लेकिन इनमें से कई उम्मीदवार जैसे अंबा प्रसाद, बन्ना गुप्ता और जलेश्वर महतो हार गए।
झारखंड में आदिवासी समुदाय की राजनीति में अहम भूमिका है। राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 28 आदिवासी सुरक्षित सीटें हैं और इन सीटों पर जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन का दबदबा रहा है। ऐसे में, प्रभावी आदिवासी नेताओं की अनदेखी से पार्टी का जनाधार कमजोर हो सकता है।
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