Jharkhand के एक आइएएस अधिकारी का गौ प्रेम, नाम के लिए नहीं, बेजुबानों की सेवा में हैं समर्पित
झारखंड के यह आइएएस अधिकारी ढोल पीटकर छोटे-छोटे काम से दुनिया को इंटरनेट मीडिया पर अवगत कराने में दिलचस्पी नहीं रखते। वे परदे के पीछे रहकर सारा काम करते हैं। उनके गौ प्रेम और पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता बताती है कि सच्ची सेवा वही है जो बिना ढोल पीटे की जाए। आइएएस अधिकारी एमबीबीएस डाक्टर हैं और पिछले छह-सात वर्षों से गायों और अन्य पशु-पक्षियों की सेवा में लगे हैं।

प्रदीप सिंह, रांची। यह कहानी जरा अलग हटकर है। सामान्य तौर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के अधिकारी फाइलों और विभागीय कार्यों में उलझे रहते हैं।
उनकी व्यस्तता उन्हें कुछ और करने का मौका नहीं देती। लेकिन इस भीड़ में भी कुछ ऐसे अधिकारी हैं जो आत्मसंतुष्टि के लिए वैसे कार्य करते हैं, जो उन्हें आंतरिक प्रसन्नता की अनुभूति कराए।
सबसे बड़ी बात यह है कि ढोल पीटकर छोटे-छोटे काम से दुनिया को इंटरनेट मीडिया पर अवगत कराने के युग में वे अपना नाम तक जाहिर नहीं करना चाहते ।
परदे के पीछे रहकर सारा काम करते हैं। झारखंड कैडर के 2001 बैच के एक आइएएस अधिकारी की दास्तां कुछ ऐसी है।
यह कहानी न केवल उनके गौ प्रेम और पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्ची सेवा वही है, जो बिना ढोल पीटे की जाए।
आइएएस अधिकारी एमबीबीएस डाक्टर हैं और पिछले छह-सात वर्षों से गायों और अन्य पशु-पक्षियों की सेवा में लगे हैं।
घर के बाहर सुरक्षा गार्डों का शेड बना गायों की शरणस्थली
उक्त आइएएस अधिकारी के सरकारी आवास के बाहर सुरक्षाकर्मियों का शेड अब गायों के आश्रय स्थल में बदल चुका है। वे सड़कों पर घायल या बीमार गायों को देखते ही उनके मालिकों से संपर्क करते हैं और अनुमति लेकर इलाज कराते हैं।
अब तक उन्होंने पशु चिकित्सकों की मदद से 50 से अधिक गंभीर रूप से घायल गायों का उपचार कराया है। इतना ही नहीं, वे गायों का टीकाकरण भी सुनिश्चित करते हैं ताकि वे बीमारियों से बची रहें।
उनकी पत्नी भी इस नेक कार्य में उनका साथ देती हैं। इस अधिकारी का गौ प्रेम केवल गायों तक सीमित नहीं है। वे घायल पक्षियों के उपचार के लिए भी हमेशा तत्पर रहते हैं।
जैसे ही उन्हें किसी बीमार या घायल पशु-पक्षी की जानकारी मिलती है, वे तुरंत पशु चिकित्सा पदाधिकारी डा. सुरंजन सरकार को सूचित करते हैं।
अधिकारी न केवल चिकित्सा की व्यवस्था करते हैं, बल्कि चालक और गाड़ी जैसी आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध कराते हैं। उनके घर के बाहर गायों का जमावड़ा लगा रहता है और वे उनके लिए चारे का प्रबंध समेत अन्य चिंता भी करते हैं।
बेजुबानों के संग आत्मिक जुड़ाव
उनके निर्देश पर गायों व पक्षियों की देखभाल करने वाले पशु चिकित्सकों के साथ वे अनौपचारिक बातचीत में गायों को 'कामधेनु'और बछड़ों को 'नंदी' का रूप बताते हैं, जो उनके गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है।
इस अधिकारी की सेवा भावना पशु चिकित्सकों को भी प्रभावित कर रही है। पशु चिकित्सक उनके समर्पण और निस्वार्थ भाव की तारीफ करते नहीं थकते।
उनके अनुसार, यह अधिकारी न केवल पशुओं के प्रति संवेदनशील हैं, बल्कि उनके कार्य समाज के लिए एक प्रेरणा हैं। आज के दौर में, जब लोग छोटे-छोटे कार्यों को भी इंटरनेट मीडिया पर प्रचारित करते हैं ।
यह अधिकारी अपनी पहचान छिपाकर काम करना पसंद करते हैं। उनका यह अनूठा प्रयास बेजुबानों के प्रति संवेदना का प्रतीक है।
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