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    भोगनाडीह में जली थी स्वतंत्रता संग्राम की पहली मशाल हूल दिवस पर विशेष

    साहिबगंज व भोगनाडीह की गिनती भले ही पिछड़े इलाकों में होती हो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग केा लोग याद करते हैं।

    By JagranEdited By: Updated: Wed, 30 Jun 2021 06:02 AM (IST)
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    भोगनाडीह में जली थी स्वतंत्रता संग्राम की पहली मशाल हूल दिवस पर विशेष

    डा. प्रणेश, साहिबगंज : साहिबगंज व भोगनाडीह की गिनती भले ही पिछड़े इलाकों में होती हो, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश के स्वतंत्रता संग्राम की पहली मशाल यहा ही जली थी। 30 जून 1855 को संतालों ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ आदोलन किया था। इस आदोलन में 15 हजार से अधिक संथालियों की जान गई। सिदो, कान्हू व चाद, भैरव नामक चार भाइयों को फासी दी गई थी। यह आदोलन बहुत सफल तो नहीं हुआ मगर देश की आजादी की नींव रख गया। भोगनाडीह संताल आदिवासियों का सबसे पवित्र स्थल है। करीब एक दशक से 30 जून को यहा विशाल कार्यक्रम होता रहा। कोरोना की वजह से दो साल से यह बंद है। दो साल पूर्व यानी 2019 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा होनी थी, तब भोगनाडीह की महत्ता को ध्यान में रख यहा सभा हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया था। भोगनाडीह में प्रतिमा पर माल्यार्पण करनेवाले वे पहले प्रधानमंत्री हैं।

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    इतिहासकार डॉ. डीएन वर्मा कहते हैं कि लंबे समय से यहा के लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष था, बावजूद ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार व रेलवे के अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी। बकौल वर्मा लगान वसूली बड़ा मुद्दा था पर महिलाओं के साथ अत्याचार से उनका धैर्य टूट गया। 30 जून 1855 को आदिवासियों ने विद्रोह कर दिया। सिदो-कान्हू की अगुआई में मालगुजारी नहीं देने के साथ ही अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो का घोष कर दिया। घबराए अंग्रेजों ने विद्रोहियों का दमन प्रारंभ किया। अंग्रेजी सरकार की ओर से आए जमींदारों और सिपाहियों को संतालों ने मौत के घाट उतार दिया। अंग्रेजों ने क्रूरता की हदें पार कर दीं। बहराइच में चाद और भैरव को अंग्रेजों ने मौत की नींद सुला दिया। दूसरी तरफ सिदो और कान्हू को भोगनाडीह गाव में ही पेड़ से लटका कर 26 जुलाई, 1855 को फासी दी गई। इन्हीं शहीदों की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है। इस महान क्राति में सरकारी रिकार्ड के अनुसार 15 हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा गया। हालाकि हकीकत में यह संख्या इससे बहुत ज्यादा थी।

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    हूल दिवस पर 1000 स्थानों पर कार्यक्रम करेगी भाजपा

    राज्य ब्यूरो, रांची : हूल दिवस पर भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा पूरे प्रदेश में 1000 आदिवासी गांवों में कार्यक्रम आयोजित कर शहीद सिदो-कान्हू को श्रद्धांजलि अर्पित करेगी। भाजपा एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष शिवशंकर उरांव ने बताया कि भाजपा के सभी प्रमुख जनजाति नेता अलग-अलग स्थानों पर इस कार्यक्रम में भाग लेंगे। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी रांची प्रदेश कार्यालय, एसटी मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव रांची ग्रामीण, सांसद सुनील सोरेन दुमका, पूर्व मंत्री डॉ लुइस मरांडी, मसलिया, पूर्व स्पीकर दिनेश उरांव गुमला, पूर्व आईपीएस डॉ अरुण उरांव भरनो, पूर्व मंत्री हेमलाल मुर्मू भोगनाडीह, पूर्व मंत्री सह विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा खूंटी नगर, पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू जमशेदपुर नगर, जेबी तुबिद चाईबासा के कार्यक्रम में शामिल होंगे।

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    हूल कांति : सिदो-कान्हू के वंशजों को नौकरी न आवास

    -हूल क्रांति के नायक के वंश के 17 परिवारों में 79 सदस्य, सिर्फ छह को सरकारी नौकरी

    -तीन परिवारों को आवास भी नहीं मिला, ऐतिहासिक गांव में बुनियादी सुविधाएं भी बदहाल

    -हूल क्रांति के गवाह भोगनाडीह गांव में सिंचाई की भी सुविधा नहीं, वर्षा आधारित खेती का ही सहारा

    ब्रजनंदन कुमार, बरहेट (साहिबगंज): आज हूल दिवस है। 1855 में आज ही के दिन हूल क्रांति की शुरुआत हुई थी। सिदो, कान्हू, चांद व भैरव समेत शहादत देने वाले शूरवीर योद्धाओं को याद किया जाएगा। कोरोना काल के चलते संतालों के तीर्थस्थल साहिबगंज के भोगनाडीह में दो साल से हूल दिवस पर सादा समारोह होता है। हूल क्रांति का गवाह भोगनाडीह गांव में विकास की वह तस्वीर नहीं दिखती, जिसका यह हकदार था। इस क्रांति के नायक सिदो कान्हू के वंश के 17 परिवार यहां रहते हैं। इनमें 79 सदस्य हैं, मगर सिर्फ छह को सरकारी नौकरी मिली। सिविल इंजीनियरिग की पढ़ाई कर चुके उनके वंश के मंडल मुर्मू आज भी रोजगार के लिए भटक रहे हैं। वंश के किसी परिवार के पास तीन तो किसी के पास चार बीघा जमीन है। किसी तरह गुजर बसर चल रहा है। जाहिर है हमारे नायकों का परिवार जिस सम्मान की हकदार है, वह उन्हें नहीं मिल पाया है।

    भोगनाडीह गांव की आबादी करीब 17 सौ है। इनमें आदिवासी, मुस्लिम, अनुसूचित जाति, यादव, कुम्हार समाज के लोग हैं। गांव के अधिकतर लोग कृषि पर आश्रित हैं। सिदो-कान्हू के वंश के मंडल मुर्मू ने बताया कि 17 परिवारों में से 14 को सरकारी योजना से आवास का लाभ मिला है। साहेब राम मुर्मू, सिदो मुर्मू व पानी हांसदा को आवास नहीं मिल सका है। झारखंड का गठन हुआ, उसके बाद इस वंश के छह लोगों को सरकारी नौकरी मिली है। वंशज परिवारो के पास करीब 60 बीघा जमीन है। अधिकतर परिवार इसी जमीन पर आश्रित हैं। प्रत्येक परिवार के पास तीन-चार बीघा ही खेती योग्य जमीन है। गांव में सिचाई की कोई व्यवस्था नहीं है। सिर्फ वर्षा पर ही खेती कर पाते हैं हम लोग। पूरे गांव का यही हाल है। इससे गांव के लोगों के आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है।

    गांव के रामू मरांडी ने बताया कि हम कृषि पर निर्भर हैं, बावजूद भोगनाडीह गांव में इसके लिए कोई सुविधा नहीं है। जबकि हर वर्ष हूल दिवस पर भोगनाडीह गांव को वीरों का गांव कहा जाता है। इसे पूरे सम्मान की नजर से देखा जाता है, इसे आदिवासियों का तीर्थ स्थल भी कहा जाता। लेकिन इस गांव और वंशजों को जो सम्मान मिलना चाहिए, उसका आज भी इंतजार है। मनोज यादव कहते हैं कि सिदो-कान्हू के नाम पर बड़े शिक्षण संस्थान बने। मगर, इस गांव के लोगों को इसका कोई लाभ तो मिला नहीं। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बिजली की स्थिति गांव में खराब है। हल्की हवा चलते ही बिजली दो-तीन दिन के लिए गायब हो जाती है। गांव में कई समस्याएं हैं, समाधान आज तक नहीं हुआ है। एक डीप बोरिग हो जाती तो खेतों की सिचाई में सहायता मिलती। सिदो कान्हू के वंश के मंडल मुर्मू ने सिविल इंजीनियरिग की डिग्री रांची से 2016 में ली। मगर उनको नौकरी का आज भी इंतजार है। मंडल कहते हैं कि पूर्व की पूर्व की सरकार को भी कई बार आवेदन दिया। सुनवाई नहीं हुई। हेमंत सरकार से उम्मीद है। वह हम वंशजों का दर्द समझेंगे, सबके जीवन यापन के लिए उचित कदम उठाएंगे।