Oldest Church: झारखंड का सबसे पुराना GEL चर्च, चार गोलों के बाद भी नहीं हुआ था नुकसान
Oldest Church 18 नवंबर 1851 को जीईएल चर्च की नींव डाली गई थी। इस चर्च में 500 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।
रांची, जेएनएन। Oldest Church शहर के मुख्य मार्ग पर स्थित जीईएल चर्च झारखंड का पहला चर्च है। स्थापत्य की दृष्टि से यह श्रेष्ठ गिरजाघरों में शुमार है। गोथिक शैली में बने इस गिरजाघर की भव्य इमारत देखने लायक है। इस विशाल गिरजाघर की स्थापना का श्रेय फादर गोस्सनर को जाता है। बताया जाता है कि उस वक्त उन्होंने 13 हजार रुपये चर्च के निर्माण के लिए दान में दिया। झारखंड में गोस्सनर मिशन की स्थापना नवंबर 1845 को हुई थी। इस चर्च की नींव जर्मनी से रांची पहुंचे कुछ पादरियों ने 18 नवंबर 1851 को डाली गई। इसके बाद इस चर्च का संस्कार 1855 में हुआ। बताया जाता है कि रांची में पहली बार 24 दिसंबर की रात को मसीहियों ने यहां पहली बार प्रार्थना की थी। यहां पहला बपतिस्मा 25 जून 1846 को मारथा नाम की बालिका का हुआ था। वो यहां पहली मसीही है।
जीईएल चर्च का इतिहास जितना पुराना है उतना ही रोचक भी है। बताया जाता है कि जर्मनी से फादर गोस्सनर से आदेश पाकर मिशनरियां म्यांमार के मेरगुई शहर में कारेन जाति के लोगों के बीच धर्म का प्रचार करने के लिए निकले थे। मगर किसी कारण से उन्हें कोलकाता ही रुकना पड़ गया। वो कोलकाता में बाइबिल सोसाइटी के अहाते में रहने लगे। इस दौरान उनकी मुलाकात कुछ कुली मजदूरों से हुई जो छोटानागपुर से वहां मजदूरी करने गये थे। उनसे मुलाकात के बाद उन्होंने म्यांमार नहीं जाकर छोटानागपुर के लिए रवाना हो गये। इसके बाद छोटानागपुर के इस हिस्से में धर्म के अनुयायी बढऩे लगे।
बताया जाता है कि 1857 के विद्रोह के आरंभ हो जाने के बाद गोस्सनर कलीसिया में मिशनरियों पर घोर विपत्ति आ गयी। मिशन और विदेशी लोगों के खिलाफ लोगों में बड़ा गुस्सा था। उस वक्त जीईएल गिरजाघर पर चार गोले दागे गए। लोगों की मनसा गिरजाघर को तोडऩे की थी। गोलों के निशान आज भी गिरजाघर के पश्चिमी द्वार पर देखी जा सकती है। बताया जाता है कि चार गोलों के बाद भी गिरजाघर को बहुत नुकसान नहीं हुआ था। कहा जाता है कि ये प्रभु यीशु की कृपा से संभव हुआ। 1915 में विश्व युद्ध के समय जर्मनों को वापस अपने देश जाना पड़ा। इसके बाद चर्च की जिम्मेदारी छोटानागपुर के बिशप डॉ. फोस्स वेस्सकॉट को दिया गया। इसके बाद से आज तक तीस फादर इस चर्च के प्रमुख बन चुके हैं।
चर्च में है जर्मन पाइपबाजा
चर्च की पूरी डिजाइन जर्मन वास्तुकला का नमूना है। इसमें 500 के आसपास लोगों के बैठने की व्यवस्था है। इसके साथ ही चर्च में एक विशेष जर्मन पाइपबाजा भी है। चर्च के कर्मचारी विनय बताते हैं कि चर्च की स्थापना के बाद कुछ सालों बाद से बाजा यहां लगाया गया। ये बाजा किसी ने जर्मनी से गिफ्ट के रूप दिया था। इसे बजाने के लिए चर्च में लोगों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा चर्च के पश्चिमी दरवाजे के अंदर एक टूटा हुआ घंटा रखा है। ये घंटा भी जर्मनी से आया था। इसे चर्च के शीर्ष पर लगाया गया था। मगर समय के साथ खराब होकर टूट जाने से, इसे शीशे में संरक्षित करके रख दिया गया।
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