Jharkhand Politics: हेमंत सोरेन ने बखूबी निभाया गठबंधन धर्म, अन्य दलों पर उठ रहे सवाल
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने महागठबंधन में अपनी भूमिका का निर्वाह बखूबी किया है। उन्होंने गठबंधन के सिद्धांतों का पालन किया और उसे मजबूत करने में योगदान दिया। झारखंड स्थापना दिवस के रजत जयंती समारोह में कांग्रेस कोटे के वरिष्ठ मंत्री राधाकृष्ण किशोर और राजद के संजय प्रसाद यादव को मंच पर प्रमुखता से स्थान मिला।
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स्थापना दिवस समारोह में मंच पर सीएम हेमंत सोरेन, राधाकृष्ण किशोर, संजय यादव व अन्य। (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बार फिर गठबंधन धर्म का पालन करते हुए महागठबंधन के सहयोगियों को भरपूर सम्मान दिया है।
शनिवार को संपन्न झारखंड स्थापना दिवस के रजत जयंती समारोह में कांग्रेस कोटे के वरिष्ठ मंत्री राधाकृष्ण किशोर और राजद के संजय प्रसाद यादव को मंच पर प्रमुखता से स्थान मिला। कांग्रेस प्रभारी भी मंच पर मौजूद रहे। यह कदम हेमंत सोरेन की उस नीति को दर्शाता है, जिसमें वे गठबंधन की एकजुटता को प्राथमिकता देते हैं।
हालांकि, गठबंधन के अन्य घटक दलों कांग्रेस, राजद समेत वामदल भाकपा-माले की उदारता पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर बिहार चुनावों के संदर्भ में।
झारखंड स्थापना दिवस के भव्य रजत जयंती समारोह में हेमंत सोरेन ने कांग्रेस और राजद नेताओं को मंच साझा करने का अवसर दिया। कांग्रेस के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश को भी मंच पर जगह मिली। दोनों मंत्रियों के अतिरिक्त मंच से प्रदेश प्रभारी के राजू ने भी भाषण दिया।
यह भव्य आयोजन न केवल राज्य की प्रगति का प्रतीक था, बल्कि गठबंधन की एकजुटता का संदेश भी दे गया। हेमंत सोरेन की यह पहल पिछले वर्षों की निरंतरता है, जहां उन्होंने सरकार गठन से लेकर चुनावी रणनीति तक में सहयोगियों को पूरी प्राथमिकता दी।
सरकार गठन और सीट बंटवारे में उदारता
हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन धर्म बखूबी निभाया। सीट बंटवारे में कांग्रेस समेत राजद और भाकपा (माले) को भी उचित स्थान मिला। इसके फलस्वरूप ये दल झारखंड में मजबूत हुए। कांग्रेस ने मोर्चा के समर्थन से कई क्षेत्रों में अपनी स्थिति सुधारी, जबकि राजद और माले ने भी पूरी लाभ उठाया।
कांग्रेस के 16 और माले के दो विधायक निर्वाचित हुए। मोर्चा इस नीति पर चला कि गठबंधन की जीत सामूहिक प्रयासों से होती है और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर पार्टी ने सहयोगियों को आगे बढ़ाया।
बिहार चुनाव में झामुमो अनदेखी से आहत
झारखंड से इतर बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन के घटक दलों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ एकदम उदारता नहीं दिखाई। जबकि इस बाबत हुई बैठकों में सीट देने के आश्वासन मिले। जब बंटवारे की बारी आई तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक भी सीट नहीं दी गई।
बिहार में राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस, माले और अन्य दलों ने सीटों का बंटवारा किया, लेकिन मोर्चा को नजरअंदाज कर दिया। यह घटना गठबंधन की असमानता को उजागर करती है। मोर्चा के नेताओं का कहना है कि झारखंड में उन्होंने सहयोगियों को मजबूत बनाया, लेकिन बिहार में बदले में कुछ नहीं मिला।
चुनाव परिणामों ने निराशा को और बढ़ा दिया, जहां एनडीए ने शानदार बहुमत हासिल कर लिया। अब परिणाम के मद्देनजर गठबंधन में घोर निराशा व्याप्त है। मोर्चा पूर्व में ही समीक्षा की बात कह चुका है।
हालांकि, स्थापना दिवस कार्यक्रम में कांग्रेस और राजद की सक्रिय मौजूदगी से किसी उलटफेर की संभावना नजर नहीं आती। लेकिन भविष्य में इससे आपसी मतभेद उत्पन्न हो सकता है। असंतुलन लंबे समय तक गठबंधन को कमजोर भी कर सकता है।

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